बेशक राज कुंद्रा ने गलत किया और गुनहगार है, हर जुर्म कि सज़ा उन्हें मिलनी चाहिए, पर इस मामले में ये कांड होते ही एक-एक करके जो लड़कियां आरोपों का पिटारा खोल रही है उस बात पर एक बार संदेह जरूर होता है। अब देखिए शर्लिन चोपड़ा ने उन पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। शर्लिन चोपड़ा ने कथित तौर पर पुलिस को दिए अपने बयान में राज कुंद्रा पर सेक्सुअल असॉल्ट का आरोप लगाया है। शर्लिन चोपड़ा का दावा है कि राज कुंद्रा दो साल पहले 2019 में एक दिन अचानक उनके घर पहुंचे थे और उनके साथ सेक्सुअल मिसकंडक्ट यानी यौन दुराचार किया। शर्लिन का आरोप है कि राज कुंद्रा ने उन्हें जबरन किस किया था।
ये 2019 कि बात है तो दो साल तक ये दर्द कहाँ था? अब इस मामले में सच क्या है ये तो वक्त ही बताएगा, पर देखने वाली बात ये है कि राज कुंद्रा के मामले में पूनम पांडे, पुनीत कौर, सागरिका सोना और शर्लिन चोप्रा से लेकर जितनी भी लड़कियां अब बारी-बारी बिल में से बाहर निकल रही है वह सारी अब तक कहाँ थी? क्यूँ उनके साथ गलत होते ही गलत करने वालों के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाई। किस चीज़ का इंतज़ार कर रही थी? की राज कुंद्रा का कोई कांड हो तो हम भी थोड़ी सुर्खियां बटोर लें और अपना नाम कमा लें।
या फिर किसी बात का डर था, और अगर डर रही थी तो अब हिम्मत कैसे हुई? यहाँ पर राज कुंद्रा का पक्ष लेने की बात नहीं है, नांहि लड़कियों को गलत साबित करने की, बात है लोगों की मानसिकता की। इसी बात से पता चलता है की कोई दूध का धुला नहीं होता, सबको लाइमलाईट रहना पसंद है। किसी सेलिब्रिटी के चर्चा में आते ही सब बहती गंगा में हाथ धोने निकल पड़ते है।
राज कुंद्रा की गिरफ्तारी के बाद हर कोई अपनी अलग-अलग प्रतिक्रिया दे रहा है और तथाकथित आरोप लगा रहे है। किसी ने उनकी गिरफ्तारी को सही बताया तो किसी ने गिरफ्तारी का विरोध किया है। मुद्दा यहाँ पर ये है कि हर किसीको इसी वक्त राज कुंद्रा पर आरोप लगाना क्यूँ सूझा? और आरोप लगाने वाली महज़ महिलाएं है तो इसका मतलब ये भी नहीं कि आरोप सही है। आजकल की कुछ लड़कियां पैसों के लिए और काम पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
ये फिल्म इंड्रस्टीज का मशहुर डायलाॅग है की मुझसे डरा धमकाकर जबरदस्ती काम करवाया। पहले पैसे लेकर काम के साथ-साथ रंगरैलिया मना लेना और पकडे जाने के डर से या नाम खराब होने के डर से इल्जाम लगा देना बहुत आसान बात है। इल्ज़ाम लगाने वाली कोई 12 साल की बच्ची तो नहीं, सारी की सारी पढ़ी लिखी समझदार लगती है इनसे कोई कैसे जबरदस्ती कुछ करवा सकता है। क्यूँ आप और हमसे कोई ऐसी जबरदस्ती नहीं करता।
राज कुंद्रा पर आरोप लगाने वाली एक पीड़िता ने पुलिस को बताया कि बड़े बैनर की फिल्मों में काम देने का झांसा देकर पोर्न फिल्म बनवाई। तो क्या लड़कियां इतनी बेवकूफ़ होती है जो कोई कुछ भी करने के लिए बोलें वो खुशी-खुशी मान लें? कोई किसीके साथ जबरदस्ती करके ऐसी चीज़ें नहीं करवा सकता। कहीं न कहीं फ़ेमश होने की चाह और पैसों की लालच में आकर लड़कियां खुद ऐसे काम करने पर तैयार हो जाती है, बाद में ऐसे कांड होने पर खुद का बचाव करते पब्लिसिटी बटोरने बयान बाज़ी करने निकल पड़ती है। आजकल वेब सिरीजों में जिस तरह के सिन्स लड़कियां दे रही है उससे यही साबित होता है कि लड़कियों को कपड़े उतारने में कोई छोछ नहीं रहा। टीवी पर प्रस्तुत हो रही कोई वेब सिरीज ऐसी नहीं जिसे पूरा परिवार एक साथ बैठकर देख सकें। हर डायलोग्स में बिनजरूरी गालियां और सेक्स ऐसे परोसे जाते है कि लड़कीयों को ऐसी पोज़िशन में देखकर शर्म से आँखें झुक जाए।
ऐसे में संदेह जरूर होता है कि राज कुंद्रा किसी लड़की को मजबूर करके जबरदस्ती ये काम करवाता होगा।
अगर लड़कियां खुद दायरा ना लाँघे तो किसी माय के लाल में दम नहीं होता कि जबरन कोई काम करवाएं। सहमति दोतरफ़ा होती होगी, अगर ऐसा नहीं तो जिस वक्त राज कुंद्रा ने उनके सामने पोर्नोग्राफिक में काम करने की ऑफ़र रखी, या पोर्न फ़िल्म में काम करने के लिए मजबूर किया उसी वक्त क्यूँ पुलिस याद नहीं आई? क्यूँ चुप रही, और क्यूँ ऐसे काम करवाने वालों का पर्दाफाश नहीं किया।
अगर सच में आप प्रताड़ित हुई है तो उसी वक्त पुलिस स्टेशन का दरवाज़ा खटखटाना चाहिए, उसी वक्त आरोपी को सज़ा दिलवानी चाहिए। दो चार साल बाद घटती घटना के साथ अपना पक्ष रखने का क्या मतलब यहाँ पर सिर्फ़ संदेह ही खड़ा करेगा कि महज़ नाम कमाने के लिए आरोप लगाए जा रहे है।
अपनी इज्जत अपने हाथों में होती है, दुनिया में काम की कमी नहीं पर जल्दी और ज़्यादा पैसे कमाने की लालच में कोई भी काम करने के लिए तैयार हो जाना और बाद में पछताना गलत बात है। हर लड़की हर महिला को हिम्मतवान बनने की जरूरत है। काम मांगते वक्त अगर काम के बदले कोई आपसे शरीर मांगता है या कोई बेतुकी शर्तें रखता है तो उसी वक्त पुलिस स्टेशन का दरवाज़ा खटखटाईये और ऐसे लोगों को समाज के सामने खुल्ला कीजिए।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)