आजकल बच्चों के साथ हो रहे शारीरिक उत्पीड़न के किस्से बहुत ज़्यादा देखने, सुनने में आ रहे है। मासूम बच्चों के साथ होनी वाली शारीरिक उत्पीड़न की घटनाएं मन को झकझोर कर रख देने वाली होती है। बच्चें ना कह पाते है, न सह पाता है। बच्चों की इस दशा के पीछे जिम्मेदार माता-पिता की लापरवाही जिम्मेदार होती है। बच्चों को नौकर के भरोसे छोड़ देना, या पिड़ीत बच्चों के मनोभाव को नजरअंदाज करना ठीक नहीं होता। अगर माँ-बाप दोनों कामकाजी है और बच्चों को नौकर के भरोसे छोड़कर जाते है तो घर पर सीसी टीवी कैमरे लगाईये ताकि आपके पीछे बच्चे को किस हालात में रखा जाता है ये पता चले।
बच्चे के साथ कहीं भी शारीरिक शोषण हो सकता है। अगर आप घर को बच्चे के लिए सुरक्षित मानते हैं तो ऐसा नहीं है। बच्चा कहीं भी इन चीज़ों का शिकार हो सकता है। वो चाहे घर हो, पास-पड़ोस हो या फिर स्कूल। कई लोगों की मानसिकता होती है बच्चों को प्यार करने के बहाने उनके शरीर के अंगत अंगों को छूकर या दबाकर अपनी विकृति का आनंद लेते है। ज़्यादातर बच्चीयों के साथ ऐसी घटना घटती रहती है।
अगर कोई बच्चा इस तरह के अनुभव से गुज़र रहा है तो वो लोगों से बचने लगता है। अकेलेपन का शिकार होते भीड़ में जाने से कतराता है या कई बार वो कुछ ख़ास लोगों के पास जाने से साफ़ इनकार कर देता है। आस-पास की मार्केट तक जाना उसके लिए डरावना हो जाता है। ऐसी हालत में बच्चे को प्यार से पास बिठाकर पूछें और उनकी शिकायत पर गौर करें, और शोषण करने वालों के खिलाफ़ कारवाई करें भले चाहे कोई घर का व्यक्ति ही क्यूँ न हो।
इसके अलावा अगर बच्चा प्राइवेट पार्ट्स में दर्द की शिकायत करे तो इसे अनदेखा नहीं करना चाहिए। अगर बच्चे के साथ कुछ गलत हुआ है तो बच्चे को विश्वास दिलाकर उस हादसे की जड़ तक जाकर बच्चे को उस चेष्टा से निजात दिलाए।
और ऐसे हालात में कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चे ख़ुद के शरीर को छिपाना शुरू कर देते हैं। मां अगर बोले कि मैं नहला दूं, या कपड़े पहने दूँ तो वो मना कर देते हैं या कपड़े पहनकर नहाने की ज़िद करते हैं।
बच्चों का शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न करने वाले उनके करीबी और नजदीकी ही होते हैं। दरअसल, ऐसा करने वाले एक अलग तरह की बीमारी से ग्रसित होते हैं। यह बीमारी पीडोफिलिया कहलाती है। यह एक मानसिक रोग है। इस रोग के शिकार लोगों की नजर बच्चों पर होती है। ऐसे लोगों में तीव्र यौन विकृति होती है। ऐसे रोगियों पर शोध में यह सामने आया है कि उनका बचपन तनावग्रस्त गुजरा होता है। कई बार तो वह खुद यौन शोषण के शिकार हो चुके होते हैं और इसी वजह से उनकी मानसिकता दूसरे बच्चों के साथ वही व्यवहार करने कि होती है।
जरूरी नहीं बच्चों का यौन शोषण सिर्फ़ पीडोफिलिया के रोगी ही करते हैं। इन रोगियों के अलावा भी कुछ लोगों की मानसिकता ऐसी होती है जो यौन शोषण करते है। वह बाहर से तो सामान्य दिखते है लेकिन अंदर से उसकी प्रकृति गंदी और घिनौनी होती है। बच्चों को ऐसे लोगों से बचाए रखने का एकमात्र ज़रिया है उनकी गतिविधियों पर ध्यान देना और उन व्यक्तियों पर नजर रखना, जो अनावश्यक बच्चों से ज्यादा प्रेम दिखाने की कोशिश करते हैं।
सभी मा-बाप घर में बच्चों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हैं, लेकिन घर से बाहर या स्कूल में बच्चों के साथ हुए दुर्व्यवहार पर वह चाहकर भी नजर नहीं रख पाते। दूसरी तरफ जब घर के बाहर बच्चों के साथ यौन शोषण की घटना होती है तो बच्चें समझ ही नहीं पाते कि उनके साथ क्या हो रहा है। वह अपने अभिभावक को कुछ बता नहीं पाते और अवसाद में चले जाते हैं। ऐसे में माँ-बाप के पास एक ही रास्ता बचता है कि वह बच्चों की मनोदशा और हाव-भाव पर नजर रखें। बच्चों में यौन शोषण से पीड़ित होने का कोई भी लक्षण दिखे तो समझ जाएं कि उसके साथ कुछ गलत हो रहा है। अकेलेपन की आदत बनना, खुद पर विश्वास की कमी हो जाना, किसी खास व्यक्ति या रिश्तेदार से दूर रहने की कोशिश करना, आदि ऐसे लक्षण हैं, जो ज्यादातर यौन शोषण से ग्रसित बच्चों में ही देखने को मिलते हैं। अगर आपका बच्चा ऐसी मानसिकता से ग्रसित है तो आपको चौकन्ना होने की जरूरत है।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)