मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे इस गाने के बोल बहुत कुछ कहते है, आवाज़ के भीतर शब्द और भाव का संमिश्रण तोलता है इंसान की शख़्सीयत को। शब्दों की, बोल की, और वाणी की कीमत अनमोल है। पर तब…जब बोल मिश्री से मीठे हो नाप तोल कर शहद की डली से उभरे हो, शांति का संदेश हो। जंग का एलान करते जो शब्द वाग्बाण से छूटते है, ऐसे शब्द हलक की ही शोभा बने रहे तो ठीक है। वरना लबों पर बैठकर तबाही मचा सकते है।
मौन कभी अनमोल होता है तो कभी छटपटाते विद्रोह का रुप भी ले लेता है। वाणी का शृंगार सोच है और सोच का रिश्ता समझ से। सोच समझकर बोले हुए शब्दों का भी ज़ायका होता है। अगर परोसने से पहले चख लिया जाए तो ज़िंदगी में सारे रस बने रहेंगे। सामने वाले की पसंद और रस पहचान कर शब्दों की सजावट करते संवाद का सेतु जोड़िये रिश्ते में मिठास घुल जाएगी।
एक शब्द ज़लज़ला भी ला सकता है और मौन कभी बिगड़े रिश्तें बचा लेता है। बोल पर बिक्री भी होती है और मौन रहने वाला नौ गुणों की खान भी कहलाता है। बोल में रजोगुण और सहने में तमोगुण व्यक्ति श्रेष्ठ है।
पर ध्वनिहीनता को मौन मत समझ लेना उस मौन के भीतर एक गूँज भी हो सकती है समझ की, सोच की, शांत मन की। जो अनगिनत बड़बडाहट से कई गुना ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
शब्दों का नाप तोल सही रहेगा तो ज़िंदगी की राह में उतार चढ़ाव कम आएँगे। शब्द बाण की तरह है जैसे तरकश से निकल कर कमान से छूटा हुआ बाण वापस नहीं आता वैसे जुबाँ से फिसल कर गिरे हुए शब्दों को नहीं समेटा जाता। इसलिए क्रोध आने पर शब्दों को हलक की दहलीज़ लाँघने की इज़ाज़त ना दो, और सामने वाला जब क्रोधित हो तब मौन की गर्द में शब्दों को सहज कर सुला दो ज़िंदगी आसान बन जाएगी।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)