कभी-कभी बीमार होना सामान्य बात है, पर कई लोग ऐसे होते हैं जो अक्सर ही बीमार रहते हैं। ऐसा या तो रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से होता है या उन्हें एलर्जी की शिकायत होती है। लेकिन बार-बार बीमार पड़ना न केवल हमारे शरीर बल्कि हमारे दिमाग को भी प्रभावित करता है। इससे व्यक्ति धीरे-धीरे कमजोर और चिड़चिड़ा हो जाता है। संक्रामक तो वजह है ही मौसम बदलने और एलर्जी की वजह से भी लोग बीमार पड़ते हैं, पर कुछ लोग इन सब चीजों से दूसरों की अपेक्षा ज्यादा प्रभावित होते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से होता है।
यह रोग प्रतिरोधक क्षमता क्या है ? यह काम कैसे करती है ? क्या आप इसे ठीक रखने के लिए बेहतर खान-पान या जीवन शैली में परिवर्तन करते हैं। चिकित्सा विज्ञान के मुताबिक शरीर को सुरक्षा देने की एक यह एक सहज प्रक्रिया है। यह शरीर को बाहरी संक्रमण और सूजन से बचाता है। यह किसी भी वायरल फंगल सेलुकर (कोशिकीय) आक्रमण से शरीर को बचाने की क्षमता रखता है। यह शरीर में एंटीबायोटिक का निर्माण करता है जिसके कारण हमारा शरीर बाहरी कीटाणुओं के हमले से सुरक्षित रहता है।
इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता को हम तीन हिस्सों में बांट सकते हैं-सहज, अनुकूल और कृत्रिम।
सहज प्रतिरक्षक क्षमता वह है जो इंसान के शरीर में जन्म से ही मौजूद होती है। इससे शरीर सुरक्षित रहता है। यह एक सामान्य सुरक्षा रहती है, सहज प्रतीक शरीर का बाहरी रक्षक होता है। त्वचा और झिल्ली (म्यूकस मेंब्रेन) छिल जाने या कट जाने पर हमारी त्वचा उसे जल्द ही ठीक करने की कोशिश में लग जाती है। प्रतिरक्षक कोषिकाएं बाहरी कीटाणुओं से रक्षा करती है। पर कई बार यह रक्षक दीवार अपना काम ढंग से नहीं कर पाती। दरअसल बहुत ज्यादा धूम्रपान की लत इन कोयिाकाओं पर बुरा प्रभाव डालती है और इनकी प्रतिरक्षक क्षमता भी प्रभावित होती है। इस प्रकार लोग गले में संक्रमण, खांसी और बुखार के शिकार रहते हैं। बहुत ज्यादा स्टेरायड का सेवन, तनाव, जंक फूड, हाई शुगर लेबल भी प्रतिरोधक क्षमता कम करती है। मां के दूध में बहुत सारे एंटीबॉडीज होते हैं जो नन्हें षिषु को प्रतिरक्षक क्षमता देते हैं। शुरू के कुछ सालों तक यही स्तनपान शिशु की कई बीमारियों से रक्षा करता है।
अनुकूल प्रतिरक्षक क्षमता शरीर में कुछ सालों में बननी शुरू होती है। अगर हमारा शरीर किसी संक्रमण का शिकार होता है तो दवाइयां और टीके से ठीक किया जाता है। पर कुछ सालों बाद अगर यही संक्रमण दोबारा होता है तो शरीर इससे लड़ने के लिए तैयार रहता है। जैसे अगर आपको बचपन में चिकन-पॉक्स जैसी बीमारी हुई है तो जब आप बड़े होते हैं तो दोबारा होने की संभावना कम होती है कारण आपके शरीर में मौजूद एंटीबॉडीज उस समय से ही उन कीटाणुओं से लड़ना सीखना शुरू कर देते हैं। पर उन वायरस का क्या जिसके कारण हमेशा खांसी, जुकाम तथा बुखार होता रहता है। ये वायरस बहुत ही चालाक होते हैं। वह हमेशा अपने आप को परिवर्तित कर हमारे शरीर में प्रवेश करने में कामयाब हो जाते हैं। इसलिए हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इन्हें पहचान नहीं पाती और हम बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। हर बार हमारे शरीर को इन वायरल संक्रमण से लड़ने के लिए या बीच- बचाव के लिए नई प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करना पड़ता है।
कृत्रिम प्रतिरक्षक क्षमता वह है जो प्राकृतिक नहीं है। मतलब यह है कि कई बीमारियों से लड़ने के लिए हमें टीके लगवाने पड़ते हैं और यही टीके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करते हैं और बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं। जैसे इन्फलुएंजा, डिप्थीरिया और स्माल पॉक्स।
इसीलिए हर मनुष्य की प्रतिरक्षा क्षमता अलग होती है। कुढ लोग कभी-कभी बीमार पड़ते हैं तो कुछ हमेशा बीमार रहते हैं। हमारे जीन्स से लेकर मेटाबॉलिज्म तक, हमारे जीवन शैली से लेकर हमारे खान-पान, सब हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने या घटाने में मदद करते हैं। बच्चों में जहां यही प्रतिरोधक क्षमता बढ़ रही है वहीं बुजुर्गों में यह बनना ही बंद हो जाती है। जिससे षक्ति क्षीण होती जाती है। बहुत ज्यादा प्रदूषण के करीब रहने से अच्छा है आप प्रकृति के करीब ज्यादा रहें, इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जो बच्चे ज्यादातर घर के बाहर की गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं उनमें ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता होती है बजाय उन बच्चों के जो घर में ही पड़े रहते हैं।
मगर सीधी और सच्ची बात तो यह है कि स्वस्थ रहने के लिए संतुलित जीवनशैली और सही खान-पान का होना बहुत जरूरी है। प्रोटीन युक्त और रेशेदार भोजन, मौसमी फलों का सेवन नियमित, व्यायाम और अच्छी नींद यह सब एक स्वस्थ शरीर का निर्माण करते हैं। धूम्रपान और शराब से खुद को दूर रखना चाहिए।
सबसे बड़ी बात हमेशा अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखें तभी आपका शरीर सही मायने में प्रतिरक्षित रह सकता है। यह आपका सुरक्षा चक्र है, इसे हमेशा बनाए रखिए।
-डॉ. हनुमान प्रसाद उत्तम