केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कर शुल्कों में दी गई राहत का आम उपभोक्ताओं को लाभ सुनिश्चित करने की तकनीकी विकसित करना ज़रूरी – एड किशन भावनानी
मानव जीवन यापन में ज़रूरी करीब-करीब हर वस्तु एवं सेवा पर अनेक प्रकार के करों शुल्कों का बोझ होता है जो जीएसटी, आयात शुल्क, सेस लोकल टैक्स इत्यादि के रूप में होता है। किस वस्तु पर कितना आयात उत्पाद शुल्क, जीएसटी, सेस है इसकी जानकारी अधिकतम आम उपभोक्ताओं को नहीं होती। एक साधारण सी बात है, हम मार्केट में दुकानदारों से वस्तुएं खरीदते हैं, कुछ लोग मोलभाव करके, कुछ लोग मुंहमांगी कीमत पर खरीद लेते हैं। परंतु हमें पता नहीं होता इसकी कीमत में कितना सरकारी शुल्क और उत्पादक, होलसेलर और चिल्लर विक्रेता का कितना मुनाफ़ा शामिल है? हमें कुछ पता नहीं होता। बहुत बार वस्तुओं की कीमतों में किसी कारण से वृद्धि हो जाती हैतो ऑटोमेटिली बाज़ार में सभी दुकानदार, कीमतें बढ़ा देते हैं!! इसके विपरीत अगर किन्ही कारणों से, जिसमें सरकार द्वारा टैक्स शुल्कों को कम करना भी शामिल है, जिसके कारण कीमतों में कमी होती है तो कुछ अपवादों को छोड़कर कीमतें गिरती नहीं जस की तस रहती है!!! जब तक कि संबंधित थोक, माध्यमिक और चिल्लर दुकानदारों और उसके बाद ग्राहकों को पता ना चले!! इसमें भी दुविधा यह है कि कीमतें गिरने का पता उत्पादकों को तो शीघ्र चल जाता है, परंतु उस स्पीड से मध्यम और चिल्लर दुकानदारों को पता नहीं चलता और उपभोक्ताओं की तो बात ही नहीं!! उन्हें तो पता ही नहीं चल पाता!! किस उत्पाद में कितना टैक्स है, तो फिर टैक्स शुल्क कम होने की जानकारी का तो सवाल ही नहीं!! अब सवाल उठता है, जीएसटी काउंसिल की बैठक में जो टैक्स दरों या शुल्कों की स्लैब में जो फेरफ़ार होता है, मसलन 12 प्रतिशत से 5 प्रतिशत या 28 प्रतिशत से 12 प्रतिशत हुआ तो इसकी जानकारी एक आम उपभोक्ता को नहीं मिल पाती और उसमें इसका आंकलन का भी पता नहीं चल पाएगा। हम कई उत्पादों पर सभी शुल्कों सहित एमआरपी देखते हैं,पर उस एमआरपी का डिटेल हमें पता नहीं होता। और कई उत्पादों पर जितनी एमआरपी होती है उससे आधे से भी कम रेट में वह वस्तु कुछ बुद्धिमान और जानकर ग्राहकों को उपलब्ध हो जाती है!!! साथियों बात अगर हम सीधी कुछ पॉइंट्स में करें तो, 1) एमआरपी का डिटेल हमें पता नहीं चलता 2) उत्पादों के भाव में कमीं की ख़बर नहीं मिलती, जबकि वृद्धि कि शीघ्र वसूली होती है, 3) सरकारों द्वारा शुल्क कमीं की जानकारी और उसका प्रभाव पता नहीं चलता 4) वैश्विक अपरिहार्य कारणों से आई मंदी से भाव गिरावट की जानकारी हम आम उपभोक्ताओं को नहीं मिलती।… साथियों इसके लिए नीति निर्धारकों को ऊपर लेवल से इस संबंध में नीतियों की समीक्षा करनी होगी और किसी भी उत्पाद या सेवा का ऊपर से भाव गिरने की जानकारी अंतिम उपभोक्ता तक आए, इसके लिए कुछ तकनीकों का विकास करने के लिए रणनीतिक रोडमैप बनाना होगा, ताकि कर शुल्कों सहित किसी भी उत्पाद या सेवा में आई कमीं का,अंतिम उपभोक्ता तक लाभ पहुंचे, इसलिए ऐसी तकनीकी का विकास किया जाए ताकि उत्पादों तथा सेवाओं के भाव, शुल्क में कमी या राहत की जानकारी मंत्रालय से सीधे ग्रामपंचायत स्तर तक देने की प्रक्रिया का निर्धारण हो और हरस्तर पर ज़वाब देही की निश्चितता हो।…साथियों बात अगर हम दिनांक 14 अक्टूबर 2021 को पीआईबी की विज्ञप्ति की करें तो उसके अनुसार खाद्य तेलों की कीमतों में भारी वृद्धि और त्योहारों को देखते हुए सरकार ने आयात शुल्क में कटौती की है,किसी तेल की आयात शुल्क शून्य तो, किसी तेल में 20 प्रतिशत से 5 प्रतिशत कर दी है!! अब इसकी जानकारीआम उपभोक्ता तक कैसे आए?? और चिल्लर दुकानदार कैसे रेट कम करें?? इसकी तकनीकी सुनिश्चित करना सरकार का काम है पीआईबी के अनुसार,, पिछले एक साल से खाद्य तेलों की कीमतों में हो रही लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए केंद्र सरकार ने कच्चे पाम ऑयल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर बुनियादी शुल्क को 2.5 प्रतिशत से घटाकर शून्य कर दिया है। इन तेलों पर कृषि उपकर में भी भी कटौती की गई है। जिसे कच्चे पाम ऑयल के लिए 20 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत और कच्चे सोयाबीन तेल एवं कच्चे सूरजमुखी तेल केलिए 5 प्रतिशत कर दिया गया है। आरबीडी पामोलिन ऑयल, रिफाइंड सोयाबीन तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर मौजूदा 32.5 फीसी के बुनियादी शुल्क को घटाकर 17.5 फीसदी कर दिया गया है। शुल्क में कटौती 14 अक्टूबर, 2021 से 31 मार्च, 2022 तक प्रभावी रहेगी। आज की कटौती से पहले सभी कच्चे खाद्य तेलों पर कृषि बुनियादी ढांचा उपकर 20 प्रतिशत था। कटौती के बाद कच्चे पाम ऑयल पर प्रभावी शुल्क 8.25 प्रतिशत होगा जबकि कच्चे सोयाबीन तेल एवं कच्चे सूरजमुखी तेल में से प्रत्येक के लिए 5.5 प्रतिशत होगा। पहले कच्चे पाम ऑयल, कच्चे सूरजमुखी तेल व कच्चे सोयाबीन तेल के लिए शुल्क 22.5 प्रतिशत और आरबीडी पामोलिन, रिफाइंड सोयाबीन तेल एवं रिफाइंड सूरजमुखी तेल के लिए शुल्क 32.5 प्रतिशत था। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने सभी प्रमुख तेल उत्पादक राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए उचित एवं तत्काल कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा है कि खाद्य तेलों की कीमतों को आयात शुल्क में कटौती के अनुरूप स्तर पर लाया जाए। यह पत्र राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को लिखा गया है जो प्रमुख तेल उत्पादक राज्य हैं। निर्देश में कहा गया है कि अब राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि खाद्य तेलों की मौजूदा उच्च कीमतों से तत्काल राहत प्रदान करने के लिए केंद्र द्वारा की गई शुल्क में कमी का पूरा लाभ उपभोक्ताओं को दिया जाए खासकर आगामी त्योहारी सीजन में। इससे खाद्य मुद्रास्फीति को कम करने में भी मदद मिलेगी और खाद्य तेलों की कीमतों में 15 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम (लगभग) की कमी किए जाने से आम उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि जीएसटी, आयात शुल्क, सेस में सरकारों द्वारा कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को मिला या नहीं इसकी सुनिश्चित ज़रूरी है। तथा केंद्र, राज्य सरकारों द्वारा कर भुगतान में दी गई राहत का आम उपभोक्ताओं को लाभ सुनिश्चित करने की तकनीकी विकसित करना ज़रूरी है।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
Home » लेख/विचार » जीएसटी, आयात शुल्क में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को मिला या नहीं इसकी सुनिश्चितता ज़रूरी