Saturday, November 23, 2024
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‘’तुम सबकुछ हो जानते’’

सूर्य सनातन देव दृष्टि जो सृष्टि पर ठहरा है,
नित्य अहर्निश उस गतिमय का पग पग पर पहरा है.
नीर कोई आँसू के लेकर लेख पीर का लिखता
अहंकार में उलझा कोई पाप पुण्य ना दिखता
उन्मत प्यास लिए जन्मों तक यूँ हीं आता जाता
कर्मों का उत्तरदायी फिर कैसे हुआ विधाता
खुला तथ्य है खुली कहानी रंच नहीं कोहरा है.
नित्य अहर्निश उस गतिमय का पग पग पर पहरा है.
यहीं शेष है, यहीं अंत है, यहीं श्रांतहै सब कुछ
सपनों की टूटन भी, सुख भी, यहीं क्लांत है सब कुछ
लघु, अघन, सुक्ष्मोत्तर भी रह पाता ओट नहीं है
निरखे दृष्टा एक टुक सब कुछ गिरे पपोट नहीं है
तोल तराजू स्थिर पलक, फिर न्याय सतत झहरा है
नित्य अहर्निश उस गतिमय का पग पग पर पहरा है.
संज्ञा बोध नियन्ता प्रज्ञा शक्ति के विश्वास
घोर कालिमा में भी देते दिनकर आप प्रकाश
ढूंढे कहाँ बावरा रे मन इधर उधर क्या झांके
सदा प्रगट है तेरे आगे ईश्वर की ये आँखें
आत्म स्वरुप परमात्म स्वरुप हे काल और कालोत्तर
पथ प्रकाश आयुष्य आप हीं जगत ब्रह्म के उत्तर
आप सदा रहकर निष्पक्ष अहर्निश जगत निहारें.
काल पृष्ठ के शाश्वत साक्षी नमन मेरा स्वीकारें.
– कंचन पाठक, कवियित्री, लेखिका, नई दिल्ली.