Saturday, November 23, 2024
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टीका-टिप्पणी का कीड़ा

कुछ समय पहले ही पार्वती और सरस्वती की दोस्ती हुई। दोनों के पतियों की नौकरी स्थानांतरण वाली थी और उनमें काफी कुछ समानता थी। दोनों का एक साथ खाना-पीना, उठना-बैठना, घनिष्ठ मित्रवत व्यवहार सबकुछ बहुत अच्छा था। पार्वती के दो बच्चे थे जो पूर्णतः स्वस्थ थे। एक कृष्ण स्वरूप और एक लक्ष्मी स्वरूप। सरस्वती की एक लड़की थी जो दिव्यांगता का शिकार थी, पर ईश्वर की कृपा से दूसरी लड़की पूर्णतः स्वस्थ हुई। मित्रता का इतना अच्छा दिखावा था की सभी को लगता की इतनी अच्छी मित्रता विरले ही लोगों में होती है। उनकी एक और मित्र थी कल्याणी, पर कल्याणी की घनिष्ठता पार्वती और सरस्वती से अत्यधिक नहीं थी। बस केवल हल्की-फुल्की बातचीत थी। पर कल्याणी मन-ही-मन सोचती थी की ये कितने अच्छे मित्र है। एक साथ घूमने जाते है, घंटों-घंटो बैठकर अपने मनोभाव एक दूसरे को बताते है, खाने-पीने के व्यंजनों के साथ खूब खुशियों भरा जीवन जीते है।
कुछ समय पश्चात सरस्वती को किन्हीं कारणों से अचानक अपने मायके जाना पड़ा, तब कल्याणी पार्वती के संपर्क में आई। पार्वती ने कल्याणी के साथ कुछ समय बिताया। कभी-कभी वॉक पर जाते वक्त और कभी ऐसे ही साथ में बैठते वक्त। पर यह क्या था पार्वती तो सरस्वती की जीवन शैली, बच्चों की देखरेख, उसका घूमना-फिरना इत्यादि पर बेवजह की टीका-टिप्पणी करने लगी। वह सरस्वती की कमियों को भी कल्याणी के सामने गलत तरीके से उजागर करने लगी। उसने उसके पहले बच्चे की दिव्यांगता को लेकर भी अलग-अलग अर्थों में टीका-टिप्पणी की। उसके पश्चात पहले और दूसरे बच्चे की परवरिश पर टीका-टिप्पणी, फिर उसके पति के व्यवहार के बारे में आलोचनात्मक बातें। जब कल्याणी ने यह सब जाना तो वह हतप्रभ रह गयी। कल्याणी के मन में पार्वती की बातें चुभ रही थी। वह मन-ही-मन बोली यह कैसी बनावटी दोस्ती जो केवल प्रत्यक्ष ही वफादार है और पीठ पीछे पूर्णतः दगाबाज। वह मन ही मन प्रार्थना करने लगीं की क्यों हम दूसरों के जीवन में बेवजह टीका-टिप्पणी करते है और किसी मासूम के मन को अनायास ही आहात करते है। वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी की हे ईश्वर ऐसा टीका-टिप्पणी का कीड़ा किसी और को न काटें।
वर्तमान समय में कोरोना त्रासदी ने हमें जीवन के सत्य से साक्षात्कार कराया है जिसमें जीवन के सभी पक्षों से आडंबर और दिखावे का पर्दा हट गया है। अर्थ और अनर्थ के बीच का तांडव, मृत्यु की कड़वी सच्चाई और ईश्वर की असीम कृपा। ऐसा कुछ भी नहीं है जो उजागर नहीं हुआ। इस लघु कथा से यह शिक्षा मिलती है की हम क्यों किसी रिश्ते के प्रति वफादार नहीं रहते। क्यों किसी के मनोभाव हमारे लिए मात्र उपहास और मनोरंजन का पात्र होते है। किसी की सच्चाई से सीखने की बजाए क्यों दूसरों के मन को पीड़ा पहुंचाने में हमें खुशी मिलती है। हम दूसरों के जीवन का अतिरिक्त विश्लेषण और कुछ गलत फहमियों के चलते अनायास ही टीका-टिप्पणी कर बेवजह किसी बेबस का माखौल बनाने में सहयोग करते है।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)