Sunday, November 24, 2024
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तुलसी गौड़ा : इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट – वीरेंद्र बहादुर सिंह

किसी को भी सम्मान, इनाम और अवार्ड मिलता है तो ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि गलत व्यक्ति को अवार्ड दिया गया है। खास कर जब सरकार की ओर से मान, सम्मान या अवार्ड दिया जाता है, तब हमेशा इस तरह की बातें होती हैं। देश में सर्वोच्च अवार्ड दिए जाने का इतिहास हमेशा विवादास्पद रहा है। ऐसे में 9 नवंबर सोमवार को राष्ट्रपति के हाथों पद्म, पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण अवार्ड दिए गए। उनमें से कुछ ऐसे व्यक्ति भी अवार्ड लेने वाले थे, जिन्हें देख कर चौंके बिना नहीं रहा गया।
9 नवंबर को राष्ट्रपति भवन में आयोजित अवार्ड वितरण समारोह में जब तुलसी गौड़ा का नाम अवार्ड लेने के लिए पुकारा गया तो जो महिला अवार्ड लेने के लिए आई, उसे देख कर सभी की नजरें उसी पर टिकी रह गईं। उनकी सादगी ने सब का मन मोह लिया। अवार्ड लेने आने वाली वृद्ध महिला नंगे पैर आई थी। उसके शरीर पर मात्र एक धोती (साड़ी) जैसा कपड़ा लिपटा था। गले में आदिवासी जीवनशैली की कुछ मालाएं थीं। 72 साल से अधिक उम्र वाली उस महिला को जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश के चौथे सब से बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री अवार्ड देकर सम्मानित किया तो राष्ट्रपति भवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
कर्नाटक के हलक्की जनजाति से आने वाली तुलसी गौड़ा ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। क्योंकि वह बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुई थीं। फिर भी पर्यावरण में उनके योगदान और पेड़-पौधों सहित जड़ी-बूटियों की तमाम प्रजातियों के बारे में उनके अथाह ज्ञान के कारण आज उनकी पहचान ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरे’ के रूप में होती है। वह आज भी तमाम नर्सरियों की देखभाल करती हैं। इससे पहले भी उन्हें और कई अवार्डों से सम्मानित किया गया है। इससे पहले उन्हें ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवार्ड’, ‘राज्योत्सव अवार्ड’, ‘कविता मेमोरियल’ जैसे अवार्ड उन्हें मिल चुके हैं। तुलसी गौड़ा को पद्मश्री अवार्ड मिलने पर बहुत लोगों ने दिल खोल कर उनकी प्रशंसा की है।
कर्नाटक के फाॅरेस्ट डिपार्टमेंट में 10 साल की उम्र से ही मां के साथ जंगल में काम करने के लिए जाने वाली तुलसी ने अब तक जंगल में 30 हजार से भी अधिक पेड़ लगाए होंगे। वन विभाग में दैनिक मजदूरी पर काम शुरू करने वाली तुलसी को इसी विभाग में परमानेंट नौकरी मिल गई थी। अपने फर्ज अदा करते हुए उन्होंने अपनी समझ से इतनी जानकारी प्राप्त कर ली है कि जंगल में उगने वाले लगभग 3 सौ पौधे इंसान के लिए दवा के काम आते हैं। देखा जाए तो वह 10 साल की उम्र से पर्यावरण संरक्षण का काम कर रही हैं। एक तरह से उन्होंने अपना पूरा जीवन ही प्रकृति की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया है।
तुलसी जिस जनजाति से आती है, वह हलक्की जनजाति औषधीय वनस्पति के ज्ञान के लिए जानी जाती है। तुलसी ने जंगल में रह कर अपने इस परंपरागत ज्ञान को बढ़ा कर असंख्य लोगों की आदिव्याधि का वानस्पति के उपयोग से निवारण किया है। कौन सा वृक्ष किस समय बीज देता है, उस बीज को कब (रोपा) बोया जाए तो वह उगेगा, इस बात की एकदम सही जानकारी तुलसी गौड़ा को है। जंगल में मदर ट्री को खोजना बहुत ही मुश्किल काम है। क्योंकि इस मदर ट्री का बीज सब से ज्यादा असरदार होता है। तुलसी जंगल के लाखों वृक्षों में से मदर ट्री को खोज सकती हैं। उनकी इस तरह की असंख्य जानकारियों की ही वजह से कर्नाटक के जंगल समृद्ध हुए हैं। तुलसी के इन्ही कामों की वजह से कर्नाटक राज्य सरकार ने भी उन्हें समय-समय पर सम्मानित किया है।
0 शिक्षा की ज्योति जलाई हरेकाला ने
इसी तरह कर्नाटक के ही 64 साल के हरेकाला हजबा को निक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय काम के लिए पद्मश्री अवार्ड दिथा गया है। हरेकाला भी अनपढ़ हैं। सफेद धोतीकुर्ता पहन कर आए हरेकाला को जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अवार्ड दिया तो पूरे देश की नजरें टीवी पर स्थिर हो गई थीं कि इस व्यक्ति को किस लिए अवार्ड दिया जा रहा है? मैंगलोर के बस डिपो पर टोकरी में रख कर संतरा बेचने वाले इस मुस्लिम ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन दिल्ली जा कर राष्ट्रपति के हाथों अवार्ड प्राप्त करेगा।
परिवहन निगम की बसों के यात्रियों को संतरा बेचने वाले हरेकाला ने अपनी कमाई से पैसा बचा कर अपने गांव न्युपाडापु में स्कूल बनवाया है। आज इस स्कूल में 175 बच्चे पढ़ रहे हैं। आज से 20 साल पहले सन 2000 में हरेकाला ने अपने गांव में स्कूल बनवा कर बच्चों को शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराई है।
संतरा बेचने वाले हरेकाला के पास ऐक विदेशी संतरा खरीदने आया तो उसने संतरा का भाव पूछा। मात्र कन्नड़ भाषा जानने वाले हरेकाला को उसकी बात समझ में नहीं आई। हरेकाला को यह बात बहुत खली। बस, उसी दिन उन्होंने तय कर लिया अब वह गांव में किसी को अपनी तरह अनपढ़ नहीं रहने देंगें। बस, उसी दिन उन्होंने कमर कस ली कि वह अपने गांव में स्कूल बनवा कर रहेंगें। इसके लिए उसी दिन से उन्होंने पैसा भी इकट्ठा करना शुरू कर दिया।
हरेकाला ने गांव में एक एकज़ जमीन खरीदी और स्थानीय विधायक और सरकार की मदद से स्कूल बनवाने का अपना सपना पूरा किया। पद्मश्री अवार्ड पाने के बाद हरेकाला का स्वप्न है कि गांव में एक प्री यूनिवर्सिटी जिसमें गांव के बच्चे कक्षा 10 से कक्षा 12 तक की शिक्षा प्राप्त कर सकें।