उत्तर प्रदेश का कानपुर जिला जीका वायरस और डेंगू का हॉटस्पॉट बना है। कानपुर के अलावा पिछले कुछ दिनों में कन्नौज, लखनऊ, मथुरा सहित कई जिलों में जीका वायरस के मामले सामने आ चुके हैं और अब फतेहपुर में भी जीका का केस सामने आने के बाद वहां स्वास्थ्य विभाग अलर्ट मोड में है।
देश में कोरोना संक्रमण के मामलों में भले ही लगातार कमी देखी जा रही है लेकिन पिछले कुछ महीनों से देश के कई राज्यों में डेंगू के बढ़ते मामलों के साथ कुछ दिनों से जीका वायरस ने भी नई चिंता को जन्म दिया है। उत्तर भारत और खासकर उत्तर प्रदेश में जीका वायरस के मामले जिस तेजी के साथ सामने आए हैं, उससे चिंता का माहौल बनना स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश के कानपुर, कन्नौज, लखनऊ, मथुरा सहित कई जिलों में जीका वायरस के मामले सामने आए हैं और अब फतेहपुर जिले में भी जीका वारयस का केस सामने आने के बाद वहां स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा है। उत्तर प्रदेश का कानपुर जिला तो जीका वायरस और डेंगू का हॉटस्पॉट बना हुआ है, जहां जीका का पहला मामला 24 अक्तूबर को सामने आया था और उसके बाद से वहां पिछले करीब एक महीने में ही इसके 140 से भी अधिक मरीज सामने आ चुके हैं।
जीका संक्रमण को लेकर चिंताजनक स्थिति यह है कि यह वायरस सामान्य लोगों के अलावा गर्भवती महिलाओं को भी संक्रमित कर रहा है। अब तक कई गर्भवती महिलाएं जीका वायरस से संक्रमित मिल चुकी हैं। इस वर्ष जीका वायरस का पहला मामला केरल में 8 जुलाई 2021 को सामने आया था, जिसके बाद केरल में जीका वायरस के मामले अचानक सामने आने लगे और ऐसे मामलों की संख्या 64 तक पहुंच गई थी। वहां जीका से एक मरीज की मौत की खबर सामने आई थी। महाराष्ट्र में भी जीका वायरस का मामला सामने आया था लेकिन अब उत्तर प्रदेश में जीका का प्रकोप चिंता का सबब बना है। केरल के बाद अब उत्तर प्रदेश में जीका के बढ़ते मामलों को देखते हुए स्पष्ट है कि बारिश के बाद मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए सरकारी तंत्र द्वारा लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए समुचित प्रबंध नहीं किए गए। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि जहां शहरी और महानगरीय क्षेत्रों में ही करीब 80 फीसदी लोगों को इस वायरस और इससे होने वाली बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, वहीं ग्रामीण परिवेश में तो लोग इससे पूरी तरह अनजान हैं, इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग द्वारा अब तक देशभर में कहीं ऐसा कोई अभियान नहीं चलाया गया है, जिससे लोगों में जीका वायरस संक्रमण के प्रति जागरूकता पैदा की जा सके।
आज भी देश में अधिकांश लोग नहीं जानते कि जीका आखिर है क्या, इससे क्या बीमारियां पैदा होती हैं और उनके क्या लक्षण सामने आते हैं। जीका एक खतरनाक वायरस है, जो उसी एडीज मच्छर के काटने से फैलता है, जो डेंगू, चिकनगुनिया, निपाह, जापानी इन्सेफेलाइटिस, फाइलेरिया, मलेरिया इत्यादि बीमारियों का जनक है, यह मच्छर प्रायः दिन के समय सक्रिय रहता है। अधिकांशतः गर्भवती महिलाएं इस वायरस की शिकार बनती हैं। इससे गर्भपात और मृत बच्चे के पैदा होने का भी खतरा रहता है। यह जन्म लेने वाले बच्चे के विकास पर बहुत दुष्प्रभाव डालता है, इससे पीडि़त महिलाओं के बच्चे अविकसित दिमाग के साथ पैदा होते हैं। करीब 70 से 80 फीसदी मामलों में जीका संक्रमित व्यक्ति में लक्षणों की पहचान नहीं हो पाती, इसलिए जीका वायरस से बचने के लिए सबसे बड़ा हथियार जागरूकता को ही माना गया है।
जीका वायरस पर नियंत्रण के लिए दुनियाभर में अब तक कोई कारगर वैक्सीन नहीं बनी है। जो उपाय डेंगू, चिकनगुनिया इत्यादि फैलाने वाले मच्छरों से बचने के लिए बताए जाते रहे हैं, वही उपाय जीका वायरस फैलाने वाले मच्छर से बचने के लिए भी किए जाते हैं, जैसे अपने आसपास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना, कहीं भी पानी को ठहरने न देना, मच्छरदानी का प्रयोग, मच्छरों की अधिकता वाले क्षेत्रों में पूरे कपड़े पहनना, मच्छरनाशक चीजों का इस्तेमाल तथा बगैर जांच के रक्त शरीर में न चढ़वाना इत्यादि। जीका वायरस से संक्रमित होने पर दर्द तथा बुखार की सामान्य दवाएं दी जाती हैं किन्तु लक्षण प्रबल होने पर विशेषज्ञ से परामर्श करना अत्यावश्यक हो जाता है। जीका वायरस खतरनाक इसलिए माना जाता है क्योंकि इसके इंफैक्शन तथा उससे होने वाली बीमारियों का अभी तक कोई उपचार उपलब्ध नहीं है और कुछ मामलों में इससे लकवे के साथ मौत होने की संभावना भी रहती है।
जीका वायरस गर्भवती मां से बच्चे में तथा शारीरिक संबंधों से भी स्थानांतरित होते हैं। इससे प्रभावित लोगों को हल्का बुखार, आंखों में संक्रमण, सिरदर्द, मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द, त्वचा पर चकते इत्यादि लक्षण सामने आते हैं, जो प्रायः 2-5 दिन तक रहते हैं। हालांकि कुछ लोगों में कई दिनों तक कोई लक्षण सामने नहीं आते। जीका वायरस से गुलियन-बार सिंड्रोम नामक नर्वस सिस्टम की बीमारी भी हो जाती है। इसकी अनुमानित मृत्यु दर 8 प्रतिशत से ज्यादा है। इस वायरस के संक्रमण से अस्थायी रूप से लकवा भी मार जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जीका वायरस वीर्य में पहुंच जाए तो यह करीब दो सप्ताह तक जीवित रह सकता है और यही कारण है कि जीका वायरस के संक्रमण से प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को सुरक्षित यौन संबंध बनाने की सलाह दी जाती है और ऐसे क्षेत्रों में रक्तदान भी प्रतिबंधित किया जाता है।
लेखक – योगेश कुमार गोयल वरिष्ठ पत्रकार हैं