सभी मां-बाप से मेरा एक सवाल यह है कि मानलीजिए कि आप का शादीशुदा बेटा अचानक एक दिन सुबह आप से कहे कि ‘मेरी आमदनी कम है, मैं पूरे घर का खर्च नहीं चला सकता। इसलिए मैं अपनी पत्नी को ले कर अलग रहने आ रहा हूं।’ उस समय आप का पहला रिएक्शन क्या होगा? आप उसे अलग रहने के लिए जाने देंगे या ‘मैं ने अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे पीछे खपा दी, अब हमरा कौन है’, यह कह कर रोक लेंगें? या पत्नी के आते ही मां-बाप को किनारे लगाने का आरोप लगाएंगें?
आप की संतान आप के लिए क्या है? 15-20-25 लाख की फिक्स डिपाजिट ? उसे पढ़ा-लिखा-खिला-पिला कर बड़ा करने की प्रक्रिया कहीं आप के भविष्य में अच्छा रिटर्न देने वाला एकाध म्युचुअल फंड का इन्वेस्ट तो नहीं बन गया न? आप अपने हृदय पर हाथ रख कर कहिएगा कि आप ने अपनी संतान को बड़ा करते समय आप के मन में एकाध बार यह विचार तो आया ही होगा कि भविष्य में वह आप के हाथ की लाठी बनने वाला है? आप की संतान बड़ी हो जाने के बाद मन के किसी कोने में एकाध बार यह इच्छा भी हुई होगी कि उसके बचपन और जवानी में उसके पीछे खर्च किया गया पैसा और समय वह तुम्हें ब्याज सहित वापस करेगा।
पक्षी घोषले में रहने वाले अपने बच्चों को खिलाता है, तब ऐसी अपेक्षा बिलकुल नहीं रखता कि उसका बच्चा उसके बुढ़ापे में उसे खिलाएगा। वह बूढ़ा होगा तो उसके घोषले में उसके साथ रहेगा। प्रकृति में इस तरह का लेनदेन है ही नहीं।
मैं ने तुम्हें मोबाइल दिलाया, तुम ने मांगा नहीं, फिर भी तुम्हें लेटेस्ट लैपटॉप खरीद कर दिया, तुम्हारी पढ़ाई के पीछे कितना खर्च कर दिया, यह कभी पूछा है? इस तरह की सूची के पीछे हर मां-बाप का यही मानना होता है कि हम ने अपनी संतान के पीछे जितना कुछ किया है, उतना कोई मां-बाप नहीं कर सकता।
आप ने संतानों के साथ जो फर्ज निभाया है, उसके हिसाब से संतानों पर आप का अधिकार है। बिलकुल है, पर फर्ज और अधिकार के बीच एक पतली लक्ष्मण रेखा है व्यवहार की, सौदेबाजी की। ज्यादातर मां-बाप जाने-अनजाने में इस रेखा को लांघ जाते हैं। उन्हें याद नहीं रहता और वे कभी-कभी सौदागर बन जाते हैं। म्युचुअल फंड में एक पाॅलिसी है सिस्टमैटिक विड्राल प्लान। इस प्लान में आप इच्छा के अनुसार पैसा डाल सकते हैं और इच्छा के अनुसार पैसा विड्रो कर सकते हैं। ज्यादातर मां-बाप के लिए संतानें इसी तरह के एकाध प्लान बन जाते हैं। वे बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते हैं तो उस प्लान में थोड़ा इन्वेस्ट करते हैं। उसे फाॅरेन वेकेशंस पर ले जाते हैं तो दूसरी थोड़ी सिल्क जमा कराते हैं। लैपटॉप, मोबाइल, गहने और कार आदि दिलाते हैं तो इस तरह थोड़ा-थोड़ा जमा करते रहते हैं। बच्चा बड़ा होता है तो फिर इच्छा के अनुसार नफा विड्रो करते रहते हैं।
आप अपने बच्चे को 25 साल तक पाला-पोसा, इसलिए आप का बेटा आप को 50-85 साल तक आप को पाले-पोसे? अगर आप ऐसा मानते हैं तो उसके लिए किया गया आप का खर्च एक व्यवहार है। उसके साथ किया गया आप का प्यार सौदेबाजी है, प्यार नहीं।
ज्यादातर मां-बाप जिंदगी में एकाध बार संतानों से यह तो कहते ही हैं ‘हम ने तुम्हारे पीछे अपनी पूरी जिंदगी खपा दी। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि आप की संतान आप के लिए एक इन्वेस्टमेंट था और अब बैंक चली गई तो इसके लिए आप अपनी संतान को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
जब भी आप के मन में आपकी संतान के लिए निभाए गए फर्ज या जिम्मेदारी या उसे दी गई कम्फर्ट की सूची तैयार होने लगे तो साफ मान लीजिएगा कि आप के मन में उसके लिए प्यार कम हो गया है। उसके लिए प्यार में कमी आई है। आप ही उसे बड़ा करने में कहीं कमजोर रह गए हैं। जबजब आपकी संतान को आप के मातृत्व या पितृत्व की महानता की दास्तान सुनाने का मन हो, तब यह मान लेना कि ममता, स्नेह और प्यार की इमारत का मूल आप ने अपनी अपेक्षाओं से बनाया है।
मैं जिम्मेदारियों से हाथ झटक लेने वाली संतानों का बचाव बिलकुल नहीं कर रहा हूं। बूढ़े हो रहे मां-बाप के प्रति दया न रखने वाली संतानें माफी के लायक नहीं हैं, पर वास्तव में ऐसा होना चाहिए कि बिना मांगे, बिना इच्छा रखे आप की संतान आप की देखभाल करे। आप के बुढ़ापे को संभाल ले। आप को प्यार करे, आप को कम्फर्ट दे। बचपन में आप ने उसके लिए जो भी किया, पर इस वजह से आप के लिए जो करे, उससे उसका कुछ लेनादेना नहीं होना चाहिए। अगर आप चाहते हैं कि आप का बेटा राम बने तो आप को भी दशरथ बनने की कोशिश करनी होगी। अगर आप कृष्ण जैसा बेटा चाहते हैं तो भरी बरसात में उसके अधिकारों को छोड़ने की परिपक्वता होनी चाहिए। बच्चों की मां-बाप के प्रति जिम्मेदारी निश्चित बनती है, पर जब इन जिम्मेदारियों को फर्ज बना दिया जाता है तो कभी यह फर्ज जुल्म की हद पार कर जाता है।
एक मां-बाप के रूप में अपने बेटे या बेटी पर भरोसा रखें। आप द्वारा दिलाए मोबाइल को वह नहीं भूलेगा। जब खुद अपने मोबाइल का बिल भरने लगेगा तो आपने उसका कितना बिल भरा है, यह उसे यह खुद ही याद आ जाएगा। आप का प्यार, आप का स्नेह, आप की ममता और आप के संस्कार उसके पीछे खर्च किया गया पैसा और समय वह जाया नहीं जाने देगा।
अपनी संतान अपनी वृद्धावस्था की प्लानिंग नहीं। हमारे बूढ़े होने पर हमें संभालना उसकी जिम्मेदारी जरूर है, पर जब वह छोटा था, तब हमारी दुनिया उसके आसपास घूमती थी, इसलिए जब हम बूढ़े हों तो उसकी दुनिया भी हमारे आसपास घूमे, इस तरह का लेनादेना नहीं होना चाहिए।
वृद्धावस्था के लिए हमें अलग प्लानिंग करनी पड़ेगी। उम्र के कारण नौकरी से रिटायर होने के बाद संतान की जिंदगी से भी रिटायर होना पड़ेगा। हम 70 साल के हो जाएं और हमारी संतान को हमारे कहे अनुसार अपनी जिंदगी जीना पड़े तो इसे हिटलरशाही कहा जाएगा। वृद्धत्व संतान के लालन-पालन के दौरान उसके पीछे किया गया खर्च और समय का इन्वेस्टमेंट का रिटर्न पाने का समय नहीं। आप अपने बुढ़ापे को अच्छी तरह जी सकें, इसके लिए प्लानिंग करना हो तो खुद की बचत करें, संतानों में इन्वेस्ट न करें।
वीरेंद्र बहादुर सिंह