Sunday, November 24, 2024
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विवाह की अनमोल भेंट

प्रायः देखा गया है कि अभी भी समाज का कुछ वर्ग दहेज के मायाजाल में उलझा हुआ है। विवाह का मूल उद्देश्य तो खुशहाल जिंदगी में निहित है, जो किसी भी धनराशि पर निर्भर नहीं है, परंतु विवाह की नींव इसी धनराशि को तय करने के बाद रखी जाती है। शंकर के माता-पिता दहेज को लेकर बहुत सारे सपने बुन रखे थे। जब उन्होने शंकर के सामने दहेज की बात रखी तो उसने अपनी उदार सोच उनके सामने रखी। उसने कहा कि मेरी जीवनसाथी की तुलना आप धनराशि से करना चाहते हो। मेरी होने वाली पत्नी भी तो किसी माँ की जिंदगी होगी। चौबीस घंटे अपनी गुड़िया के लिए सुंदर सपने बुनने वाली माँ की जान होगी। अपना सब कुछ लुटाकर उसकी खुशियों के लिए जीने वाले पिता के लिए उनकी बेटी के क्या मायने है यह शायद माता-पिता के लिए शब्दों में व्यक्त करना तो संभव भी नहीं है। वह तो अपने भाई-बहन की छाया और दोस्त होगी। उस परिवार की जिंदगी होगी। मैं तो विवाह के पश्चात यूंही अमीर बन जाऊंगा और आप मुझे पैसो के तराजू पर तौलने की कोशिश कर रहे है।
जो माता-पिता उसके भावों को देखकर उसका दु:ख-दर्द समझ जाते है, वह अब मुझे और मेरे परिवार को समझने में अपना सारा समय व्यतीत करेंगी। अपनी ख़्वाहिशों को भूलकर मेरे लिए सब कुछ त्याग करेंगी। उसके समर्पण, त्याग की मैं क्या कीमत लूँ। मैं इतना स्वार्थी नहीं होना चाहता। मेरी जीवनसाथी मेरे लिए अमूल्य है। मुझे दहेज के मायाजाल में नहीं फंसना है।
इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है कि यदि पुरुष अपनी उदार सोच का परिचय दे तो दहेज जैसी समस्या को मूल से समाप्त किया जा सकता है। समाज में परिवर्तन की दिशा में सबक़ों मिलकर प्रयास करने होंगे और अच्छी सोच का खुलकर स्वागत करना होगा। शंकर ने माता-पिता अंधभक्त बनना स्वीकार नहीं किया बल्कि पूरे तथ्यों के साथ अपने मनोभाव माता-पिता के सामने रखें और सही सोच को अपनाने पर बल दिया, इसलिए सदैव सत्य के लिए लड़े केवल आज्ञाकारी बनकर गलत निर्णय को स्वीकार न करें और न ही करने को बढ़ावा दे।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)