आज रुद्र का जन्मदिन था और रुद्र अपने बचपन की यादों में खो गया। माता-पिता ने उसे जन्मदिवस कुछ अलग तरीके से मनाना सिखाया था। पुरानी फोटो देखकर वह मन-ही-मन प्रफुल्लित हो रहा था। रुद्र को याद आ रहा था की नाना ने सिखाया था की जन्मदिवस पर मोमबत्ती नहीं बुझाना बल्कि जन्मदिवस के अनुरूप दीप प्रज्वलित करना, क्योंकि हम बोलते है “तमसो माँ ज्योतिर्गमय” अर्थात हम अंधकार से प्रकाश की तरफ जाए। मेरे जन्मदिवस पर मेरी आयु के अनुरूप ही दीप प्रज्वलित किए जाते थे। नानी की सलाह थी की ईश्वर की कृपा से आज के दिन तुम कई सारी योनियों में भटकने के पश्चात मनुष्ययोनि में आए, अतः आज का दिन तुम्हें ईश भक्ति जैसे सत्यनारायण कथा, रुद्राभिषेक, रामदूत हनुमान का श्रंगार या किसी भी प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान जो भी संभव हो सके वह करना चाहिए। किसी तीर्थ स्थल के दर्शन या आसपास किसी मंदिर में पूजन अर्चन भी आज के दिन अवश्य करना चाहिए। रुद्र अपने प्रथम जन्मदिवस से ही ईश्वर से जुड़ना शुरू हो गया था।
माँ से भी प्यारी मासी की जिंदगी का लक्ष्य तो केवल नन्हें रुद्र की खुशियों के सरोकार से था। वह तो ईश्वर के समक्ष मेरी ही खुशियों के लिए हमेशा प्रार्थना करती थी। पिताजी सिखाते थे की हमें अपनी सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुरूप दान-पुण्य भी करना चाहिए, पर वह एक बात पर अत्यधिक बल देते थे की यदि तुम मुक पशुओं की सेवा करोगे तो वह तुम्हारे लिए अत्यधिक हितकारी होगा। रुद्र सोच रहा था की पिताजी ने मुझे झूठे दिखावे और आडंबर से दूर रहकर सदैव ईश्वरीय सत्ता के समीप जाने को प्रेरित किया। माँ बहुत अच्छी लेखिका थी इसलिए वह अपने मनोभावों को मेरे जन्मदिवस पर कलम की मदद से कागज पर उतारने का प्रयास करती थी। वह पंक्तियाँ माँ का मेरे प्रति अपनत्व था जो हमारे रिश्ते को गहरा बनाता था। पिताजी समय निकालकर मेरे अच्छे से अच्छे से फोटो को विडियो का रूप दिया करते थे। मेरे जन्मदिवस के दिन नानी माँ को समझाती थी की मेरे दुलारे की खूब नजर उतारना। रुद्र के जन्मदिन की यहीं सब यादें उसके मानस पटल पर जीवंत हो रही थी।
इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है की बच्चों को जन्मदिवस पर महँगे-महँगे तोहफों की आदत न डालें, बल्कि उसे अपनत्व से भरी यादें दे। उसे धर्म और आध्यात्म से जोड़ने का प्रयास करें। रुद्र के लिए सब कुछ उपलब्ध था पर उसकी शर्तों पर नहीं। रुद्र दूसरों के जन्मदिवस से जो एक महत्वपूर्ण अंतर महसूस कर रहा था वह यह था की वह तोहफे लेने से ज्यादा सामर्थ्य अनुरूप देने की प्रवृत्ति सीख रहा था। रुद्र के माता-पिता रुद्र में करुणा और दया के भाव जगाना चाहते थे। उनका प्रयास ईश्वरीय शक्ति के प्रति आस्था और बाहरी दुनिया की सच्चाई से परिचय कराना भी था।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)