“खाली जेब मुफ़लिसी का प्रमाण है पास नहीं पैसे तो आप ठन-ठन गोपाल हो, दुनिया पूजती है बस पैसों की खन-खन को”
ये कहने में ज़रा भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इंसान के पास अगर पैसा हो तब आधी से ज़्यादा परेशानी ख़त्म हो जाती है। खासकर बुढ़ापे में इंसान किसीका मोहताज नहीं होना चाहिए।कभी किसीने सोचा है बुढ़ापे में जब कमाई का और कोई ज़रिया नहीं होता तब पेंशन मीठे झरने का काम करती है। पेंशन पाने वालें बुज़ुर्ग खुशकिस्मत होते है। पास पैसे होंगे तब सेवा करने वाले मिल जाएंगे, या तो घर वाले भी पैसों की लालच में ही सही ढंग से देखभाल कर लेते है।60 सालों तक लगातार काम करते इंसान का शरीर थकान महसूस करता है। आम इंसान की पूरी ज़िंदगी तो जुगाड़ों से जूझते जैसे तैसे कट जाती है, बुढ़ापे की धूप बड़ी जल्लाद होती है। जब तक पूरी तन्ख्वाह हाथ पर आती है तब तक तो दो सिरे आसानी से जुड़ जाते है। पर रिटायरमेंट के बाद पगार आधी हो जाती है, तब पेंशन के तौर पर मिलती राशि से गुज़ारा करना मुश्किल हो जाता है। फिर भी कम से कम गुज़ारा हो जाता है।घर के खर्चों के साथ एक उम्र के बाद दवाईयों के खर्चे बढ़ जाते है। आजकल पचास साल तक पहुँचते ही इंसान कई बीमारियों का शिकार बन जाते है, और आजकल मैडिकल जितनी महंगी चीज़ शायद कोई नहीं। उस परिस्थिति में पेंशन महज़ चंद हज़ार रुपये नहीं होती, बुढ़ापे की एक चद्दर होती है जिससे एक इंसान अपनी इज्ज़त को ढ़कता है।हर कर्मचारी को पेंशन इसलिए भी मिलनी चाहिए क्यूँकि कभी-कभी हम देखते है कुछ बच्चें एक उम्र के बाद माँ-बाप को बोझ समझने लगते है। माँ-बाप पाई-पाई के लिए बच्चों के मोहताज बन जाते है। ऐसे में बुज़ुर्गों के पास कोई आय नहीं होगी तब गुज़ारा कैसे करेंगे। पेंशन होगी तो कम से कम इज्जत की रोटी तो खा सकेंगे। पेंशन वृद्धावस्था काटने का सबसे मजबूत स्त्रोत है। बुढ़ापे में जिनकी जेब खाली होती है उनकी हालत बड़ी खस्ता होती है बच्चों के रहमों-करम पर जीना पड़ता है या आख़री मंज़िल वृध्धाश्रम की दहलीज़ होती है, या तो दर-दर की ठोकरें खाते उम्र काटनी पड़ती है। बहुत कम लोगों को बिना पैसों के भी घर में 5 स्टार सी सुविधा मिलती है। अगर आपकी नौकरी में पेंशन की सुविधा मिलती है तब ठीक है, वरना ज़िंदगी का आख़री पड़ाव शांति से काटने के लिए शुरू से ही बचत करते रहो, ताकि बुढ़ापे में अपने खर्चे के लिए किसी ओर पर आधारित न रहना पड़े। इंसान जवानी तकलीफ़ में काट सकता है पर बुढ़ापा नहीं।
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर