सीएसजेएमयू के परीक्षा नियंत्रक राजबहादुर यादव को हाईकोर्ट के परमादेश से मतलब नहीं!
स्क्रूटनी विभाग के अनिल अवस्थी के बोल हाईकोर्ट से ही करा लो मूल्यांकन, वहीं से लो मार्कशीट
पंकज कुमार सिंह-
कानपुर। सीएसजेएमयू के नौकरशाहों की हिमाकत तो देखिए कि उच्च न्यायलय के आदेष को मानने से इंकार तक कर बैठते है। यह मामला कानपुर के छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू) का है। जहां परीक्षा नियंत्रक राजबहादुर यादव को हाईकोर्ट का आदेश कोई मायने नहीं रखता। वहीं स्क्रूटनी विभाग के अनिल अवस्थी का कहना है कि हाईकोर्ट का परमादेश है तो हाईकोर्ट से ही कराओ।
मामला कानपुर देहात रनियां के निकट करसा रामपुर निवासी राज कुमार का है। राजकुमार ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2015 में सीएसजेएम विश्वविद्यालय से प्राईवेट तौर पर एमए की परीक्षा दी थी। जिसके परिणाम में नम्बर कम आने की वजह से उन्होंने एक विशय का बैक पेपर परीक्षा दी थी। राजकुमार ने बताया कि जब बैक पेपर का रिजल्ट आया तो उनके नम्बर कम आए थे जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने स्क्रूटनी कराई। स्क्रूटनी की स्कैन काॅपी राजकुमार को प्राप्त हुई तो उन्होंने काॅपी के मूल्यांकन की जांच की। इस दौरान उन्होंने देखा कि एमए फाईनल के चतुर्थ पेपर भारतीय साहित्य का खण्ड ‘स’ प्रश्न संख्या 6 का मूल्यांकन नहीं किया गया है। इस सम्बन्ध में उन्होंने विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक को प्रार्थना पत्र देकर मूल्यांकन से छूटे प्रश्न को जांच कर मूल्यांकन कराने की बात कही।
राजकुमार का कहना है कि लगातार कई चक्कर काटने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने इलाहाबाद हाईकोट में रिट दाखिल की। इस सम्बन्ध में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने 24 मार्च 2017 को सीएसजेएम विश्वविद्यालय को मूल्यांकन कर रिजल्ट जारी करने का परमादेश जारी कर दिया। राजकुमार ने बताया कि लीगल सेल के सुधीर शुक्ला को हाईकोर्ट के परमादेश को रिसीव करा दिया गया है। वे आए दिन टरकाते रहे हैं। इसी कड़ी में परीक्षा नियंत्रक राजबहादुर यादव को हाईकोर्ट का आदेश कोई मायने नहीं रखता। वहीं स्क्रूटनी विभाग के अनिल अवस्थी का कहना है कि हाईकोर्ट का परमादेश है तो हाईकोर्ट से ही कराओ। राज कुमार ने बताया कि दो माह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी विश्वविद्यालय द्वारा कोई कर्रवाई नहीं की गई है। राजकुमार का कहना है कि रिजल्ट क्लीयर न हो पाने की वजह से वे उच्च शिक्षा के लिए आवेदन नहीं कर पा रहे हैं।
मुफलिसी में दरदर भटकने को मजबूर राजकुमार
एक बीघा कृषि भूमि से पैदा अनाज से ही सालभर परिवार का भरण-पोषण करने वाले राजकुमार हक के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने को मजबूर है। विश्वविद्यालय प्रशासन की तानाशाही के चलते राजकुमार कड़ी धूप में अधिकारियों का दवाजा खटखटा रहे हैं। राजकुमार के दो छोटे बच्चे भी हैं।