Tuesday, November 26, 2024
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अतिक्रमण पर विराम कब?

चाहे देश की राजधानी हो या देश के अन्य राज्यों के महानगर अथवा कस्बाई क्षेत्र, यहां पर सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे बढ़ते चले आये हैं और नतीजा यह हुआ है कि अतिक्रमण एक राष्ट्रव्यापी समस्या बन चुका है। वहीं राजनीतिक फायदों को देखते हुए समय समय पर कई शहरों में तो सरकारी जमीनों पर कब्जे के चलते बसी अवैध बस्तियों को नियमित करने का भी सिलसिला चल निकला है। यह कहना कतई गलत नहीं कि नियमितीकरण की नीति के चलते अनेक शहरों में झुग्गी माफिया पैदा हो गये हैं, जो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों से मिलकर अवैध कब्जे करवाते रहते हैं। ऐसी परिस्थितियों के चलते यह सवाल उठना लाजिमी है आखिरकार अतिक्रमण अथवा अवैध कब्जों पर विराम कब?यह कटु सत्य है कि अवैध कब्जे शहरों की सूरत बिगाड़ने के साथ अन्य कई तरह की समस्याएं पैदा करते हैं क्योंकि गरीब परिवारों की आड़ में अपराधियों को यहां पर अपना आशियाना बनाना आसान हो जाता है और इन बस्तियों में रहकर वो आसानी से संज्ञेय अपराधों को अंजाम देते हैं और जब उन्हें लगता है कि वो पकड़े जा सकते हैं तो बिना देर किये अपना स्थान बदल लेते हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि परिस्थितियों को देखते हुए अतिक्रमण हटाने से ज्यादा जरूरी है, उसे होने ही न देना और यदि कहीं हो जाए तो सबसे पहले उसके लिए जिम्मेदार विभागों के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना अति आवश्यक है। लेकिन यह कतई ठीक नहीं कि जब कोई घटना घट जाए, तब नगर निकाय अथवा सरकारें अतिक्रमण हटाने की सुध लें। और फिर समय गुजरे नतीजा स्थितियां जस की तस। फिलहाल ऐसा ही होता दिख रहा है कि जब कोई मामला हो जाता है तो इस क्रम में अक्सर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई हड़बड़ी में अथवा तय प्रक्रिया की अनदेखी करके की जाती है। इससे न केवल वैसे सवाल उठते हैं, बल्कि नेताओं को बयानवाजी करने का मौका मिल जाता है। वहीं समय-समय पर कई हिंसक मामले भी प्रकाश में आ चुके हैं जिनमें हिंसा पनपी और जनधन की हानि हो चुकी है।
ऐसे में यह कहना कतई अनुचित ना होगा कि अवैध कब्जा अथवा अतिक्रमण करने वाले जितने दोषी होते हैं उससे भी कहीं ज्यादा कहीं दोषी नगर निकाय अथवा जिला प्रशासन होता है। यह एक तथ्य है कि नगर निकायों की अनदेखी अथवा भ्रष्ट आचरण से ही अतिक्रमण और अवैध कब्जे होते हैं। वहीं जब ये अतिक्रमण हटाये जाते हैं तो खूब हो हल्ला मचता है और हंगामा बरपाया जाता है।
ऐसे में माननीय सुप्रीम कोर्ट को जहां अवैध कब्जों के खिलाफ सख्ती दिखानी होगी, तो वहीं दूसरी ओर नगर निकायों की अनदेखी अथवा स्थानीय स्तर पर भ्रष्ट आचरण वाले अफसरों के प्रति भी कठोर कदम उठाना चाहिये, उनकी जिम्मेदारी तय करनी चाहिये जिससे कि अवैध कब्जों के माध्यम से बसने वाली बस्तियों अथवा अतिक्रमण होने पर विराम लग सके!