Tuesday, November 26, 2024
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कितने तलबगार होते जा रहे है हम

“अपनों से दूर आभासी लोगों से प्यार होने लगा है परिवारों में खिलखिलाहट की जगह शांति का माहौल बनने लगा है, एक ही घर में रहते हुए मौन का चोला पहनकर संवाद को टालते मैसेज का आदी हर इंसान होने लगा है”
सच में इंटरनेट की दुनिया ने इंसान को अपनी गिरफ़्त में ऐसे जकड़ लिया है कि मोबाइल की छोटी सी स्क्रीन में हम सबकुछ ढूँढ रहे है। रिश्ते, अपनापन, दोस्ती, प्यार, संगीत, हंसी और खुशी हमारे आसपास बसी दुनिया से अपनों से विमुख होते जा रहे हैं। न अब साथ बैठकर पारिवारिक चर्चा होती है, न साथ बैठकर खाना खाते है, न साथ मिलकर ताश खेला जाता है, न कैरम या व्यापार खेले जाते है। हर कोई अपनी आभासी दुनिया में मस्त होते है हाथ में मोबाइल सर नीचे और न जानें क्या क्या तलाशते रहते है। यहाँ तक की खाने के टेबल पर भी सब मोबाइल में व्यस्त दिखते है। मोबाइल ने बच्चों को भी नहीं बख़्शा बच्चें भी कार्टून दिखाओ तो ही खाना खाते है।पहले हम अपनी खुशी के लिए घूमने, फिरने या पिकनिक मनाने जाते थे, पर अब तो वो भी फेसबुक के लिए जाने लगे। कोई पूछेगा वो कैसे? तो जवाब है हर कुछ दिन बाद नई-नई तस्वीरें जो अपलोड करनी होती है। घूमने जाते भी है तो कुदरती नज़ारों का लुत्फ़ कहाँ उठा पाते है, साथ मिलकर खेल कूद कहाँ कर पाते है फोटो खींचने और खिंचवाने के चक्कर में महज़ गाड़ी में लोंग ड्राइव करके ढ़ेर सारे फोटोस लेकर वापस आ जाते है। और कई बार तस्वीरें लेने के चक्कर में हादसों के शिकार हो जाते है। कोई पानी में गिर जाता है तो कोई चट्टान से फ़िसल जाता है, तो कभी एकल-दुकल किस्से में जान से भी हाथ धो बैठते है।
सोचिए हम इस छोटे से मशीन के कितने एडिक्ट होते जा रहे है। आभासी दुनिया के करीब और अपनों से दूर होते जा रहे है। न किसीके घर आने-जानें का चलन रहा, न मिलने मिलाने का समय है किसीके पास। शुभेच्छा देनी हो तो बस मैसेज कर दो। हर बात अब मैसेज पर होने लगी है हर इंसान आज दिन में कम से कम पाँच से सात घंटा मोबाइल के भीतर घूसकर बिताता है। हर चीज़ की एक लिमीट और समय तय होना चाहिए। सोचिए वही समय किसी काम या अपनों के साथ बिताएंगे तो अपना, परिवार का, समाज का और देश का कितना विकास होगा।खासकर युवा वर्ग को इस खतरनाक नशे से दूर रहना चाहिए, मोबाइल का उपयोग अच्छी बातें जानने, समझने के लिए और पढ़ाई-लिखाई के लिए कीजिए। पर आजकल मोबाइल का उपयोग से ज़्यादा दुरुपयोग हो रहा है। बच्चे 12/14 साल में पोर्नोग्राफि देख देखकर सेक्स के आदी होते जा रहे है। जिसकी वजह से भी बलात्कार जैसी घटनाएं घटती रहती है। विडियो गेमिंग के ज़रिए बच्चों के दिमाग ख़ुफ़िया और शैतान बनते जा रहे है। और भी न जानें कितनी ऐसी एप्स है जो बच्चों के लिए हानिकारक होती है। बच्चों के हाथ में मोबाइल दर असल 18 साल के बाद देना चाहिए। गली मोहल्ले में खेल कूद का तो मानों चलन ही नहीं रहा बस हर छोटे बड़ों की दुनिया मोबाइल नाम के छोटे से मशीन में सिमटकर रह गई है।
नहीं लगता हमें थोड़ा यू टर्न लेकर वापस उसी दुनिया में लौटना चाहिए, जहाँ घर की खिडकीयों से हंसी खुशी की किलकारियां बहती हो, दोस्तों से मिलने का समय निकाल पाते थे और चाय की किटली पर बैठे गप्पें लड़ाते थे। मैसेज के बदले मिलकर बताएं और कमेन्ट बोक्स में लड़ने की बजाय पास पड़ोस में भाईचारे की भावना जगाएं। जरूरत के हिसाब से मोबाइल चलाएं और आभासियों के बदले साक्षात के संग अपनापन बढाएं। मोबाइल में हर चीज़ मिलेगी पर परिवार सा प्यार दोस्तों का अपनापन और वो खुशी कभी नहीं मिलेगी जो आज से दस साल पहले सब मिलकर ज़िंदगी को जश्न सा मनाते थे।
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर