Tuesday, November 26, 2024
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नारी नर से ज़रा भी कमतर नहीं

नर और नारी एक दूसरे का पर्याय है, न केवल नर के बिना संसार की कल्पना शक्य है न नारी के बिना। फिर सदियों से नारी को कमतर क्यूँ आँका जाता है? क्यूँ कुछ दिमागों में आज भी पितृसत्तात्मक वाली मानसिकता पनप रही है। ईश्वर ने जब सृष्टि का सर्जन किया तब स्त्री और पुरुष को एक जिम्मेदारी देकर मैथुनी क्रिया से सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए पैदा किया। नर नींव, तो नारी स्तंभ है, दोनों ही जीवनाधार है फिर कोई एक कैसे अति महत्वपूर्ण हो गया? नारी आईने में दिखते प्रतिबिम्ब की भाँति पुरुष का पर्याय है।शिवजी के अर्धनारीश्वर स्वरुप का अर्थ है आधी स्त्री और आधा पुरुष। भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर स्वरुप के आधे हिस्से में पुरुष रुपी शिव का वास है तो आधे हिस्से में स्त्री रुपी उमा यानि शक्ति का वास है। भगवान का यह रुप यही दर्शाता है की स्त्री और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलु है और दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे है।
जब ब्रह्मा जी को सृष्टि की उत्पत्ति की जिम्मेदारी सौंपी गई तब तक भगवान शिव ने सिर्फ विष्णु और ब्रह्मा जी को ही अवतरित किया था और किसी भी नारी की उत्पति नहीं हुई थी। जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का काम शुरु किया, तब उनको एहसास हुआ की उनकी सारी रचनाएं तो जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी और हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना पड़ेगा। उनके सामने बड़ी दुविधा थी कि इस तरह से सृष्टि की वृद्धि आखिर कैसे होगी। तभी एक आकाशवाणी हुई कि वे मैथुनी यानी प्रजनन सृष्टि का निर्माण करें, ताकि सृष्टि को बेहतर तरीके से आगे बढ़ाया जा सकें। अब उनके सामने एक नई दुविधा थी कि आखिर वो मैथुनी सृष्टि का निर्माण कैसे करें? तब ब्रह्मा जी भगवान शिव के पास पहुँचे और शिवजी को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मा जी ने कठोर तपस्या की और उनके तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा जी के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर स्वरुप में दर्शन दिया। उनके शरीर के आधे भाग में साक्षात शिव नज़र आए और आधे भाग में स्त्री रुपी शिवा यानि शक्ति अपने इस स्वरुप के दर्शन से भगवान शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशिल प्राणी के सृजन की प्रेरणा दी। उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे इस अर्धनारीश्वर स्वरुप के जिस आधे हिस्से में शिव हैं वो पुरुष है और बाकी के आधे हिस्से में जो शक्ति है वो स्त्री है। आपको स्त्री और पुरुष दोनों की मैथुनी सृष्टि की रचना करनी है, जो प्रजनन के ज़रिए सृष्टि को आगे बढ़ा सकें। इस तरह शिव से शक्ति अलग हुईं और फिर शक्ति ने अपनी मस्तक के मध्य भाग से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति को प्रकट किया। इसी शक्ति ने फिर दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिसके बाद से मैथुनी सृष्टि की शुरुआत हुई।
यूँ संसार के दो अहम भूमिका अदा करने वाले दो किरदारों का निर्माण हुआ, जिसमें ईश्वर ने पुरुष को परिवार निर्वहन का अहम किरदार बनाया, जबकि जीव को जन्म देने का अधिकार स्त्री को दिया गया। ईश्वर जानते है स्त्री शक्ति का स्वरूप है, प्रसूति की पीड़ा झेलने में सक्षम। क्यूँकि जीव को जन्म देने के लिए सौ भुजाओं का बल चाहिए, नासिका में से नारियल निकालने का दम नारी ही रखती है तो कहो नारी नर से कैसे कमतर या कम अक्कल हुई। बेटियाँ हर लिहाज से अपने आप में एक शक्ति का और उर्जा का प्रमाण है बस मौके की मोहताज है, मौका देकर देखिए अपना परचम लहराकर मानेगी।
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर