Tuesday, November 26, 2024
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सेनाओं को हटाने का निर्णय

गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स पीपी-15 के क्षेत्र में भारत और चीन का सेना हटाने का निर्णय बहुत अच्छा है। किंतु इसका ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए, क्योंकि चीन की ओर से ऐसा होता नहीं है। उस पर आंख बन्द करके भरोसा नहीं किया जाना चाहिये। चीन अपनी बात पर प्रायः टिकता नहीं है। वह एक जगह समस्या खत्म करता है। दूसरी जगह नया मोर्चा शुरू कर देता है। इसी लिये कहा जाता है कि चीन हमेशा अपनी कला दिखाने से बाज नहीं आता है। हालांकि सुर्खियों की मानें तो लद्दाख सीमा से अच्छी खबर है और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स पीपी-15 के क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों ने समन्वित और नियोजित तरीके से पीछे हटना शुरू कर दिया है। भारत-चीन की ओर से संयुक्त बयान में ये जानकारी दी गई। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि भारत-चीन कोर कमांडर स्तर की बैठक के 16वें दौर में बनी आम सहमति के अनुसार, गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स के क्षेत्र में भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों ने समन्वित व नियोजित तरीके से पीछे हटना शुरू कर दिया है। यह एक सुखद संकेत है और इससे सीमावर्ती क्षेत्रों में शांतिपूर्ण माहौल बनाने में सहायता मिलेगी।
वहीं सेना के पीछे हटने के बारे में बताया कुछ भी जा रहा हो किंतु सच्चाई यह है कि चीन सेना हटाने को लेकर इसलिए सहमत हुआ क्योंकि 15-16 सितंबर को उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन का वार्षिक शिखर सम्मेलन है। सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति शामिल होंगे। शायद चीन को ऐसा महसूस हुआ होगा कि इस तनावपूर्ण माहौल में बैठक की कामयाबी की उम्मीद नही की जा सकती। वहीं यदि उज्बेकिस्तान में यह बैठक न होती तो चीन शायद कभी भी अपनी हरकत से बाज न आता। उसकी सेनाएं कतई पीछे नहीं हटायीं जातीं! क्यों ऐसा ही नजारा डोकलाम विवाद के समय हुआ था। तीन माह से भारत और चीन की सेना यहां आमने-सामने थीं। चीन यहां सड़क बनाने पर अड़ा था और भारत को इस पर कड़ी आपत्ति थी। इसी दौरान भारतीय सैनिकों ने चीन के सड़क बनाने के उपकरण ठेल कर नीचे गिरा दिए थे। इस वजह से वहां भी तीन महीने तक हालत नाजुक बने रहे थे। इसी दौरान चीन में ब्रिक्स देशों का सम्मेलन होना था। इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री को भी जाना था। ऐसे में चीन को डर सता रहा था कि उसके रवैये के कारण यदि भारत के प्रधानमंत्री ने बैठक में शामिल होने से इंकार कर दिया तो ये बैठक व्यर्थ रहेगी। इसके बाद यह सारी तोहमत चीन के सिर पर डाल दी जाएगी। और काफी सोंच विचार कर उसने उस समय अपनी सेना की वापसी का निर्णया लिया था। शायद ऐसा ही इस बार शंघाई शिखर सम्मेलन की बैठक के कारण फैसला लिया गया है और दोनों देशों की सेनाओं को पीछे हटाया जाना शुरू कर दिया गया है।
अतीत पर अगर नजर डालें तो, दरअसल चीन सीमावर्ती क्षेत्र में इस तरह के विवाद खड़े करके निज स्वार्थ हेतु विवादित काम करने का आदी रहा है। वह सामने वाले देश को डराने के लिए अपनी सेना तैनात कर देता है और इसी आड़ में वह अपने क्षेत्र के उस क्षेत्र में निर्माण करने लगता है, जो विवादास्पाद है।
फिर भी जितनी जगह से सेना हटाने का निर्णय हुआ है। अच्छा हुआ है। जो भी है बहुत अच्छा है। किंतु चीन पर यकीन नही किया जा सकता। समझौतों के प्रति वह कभी ईमानदार नहीं रहा। लद्दाख सीमा से सेना की पूरी वापसी होनी जरूरी है। वैसे अच्छा भी है युद्ध न हो। युद्ध से जानमाल का बहुत नुकसान होता है। देशों की विकास दर प्रभावित हो जाती है।