पूरी दुनियां यह जानती है कि आतंकवादी गतिविधियों का सबसे बड़ा कारखाना भारत का पड़ोसी पाकिस्तान है। यह बात जानने के बावजूद अमेरिका वर्षों से पाकिस्तान को हथियार और अरबों डॉलर की मदद करता चला आ रहा है। इसमें कतई दो राय नहीं कि अमेरिका को यह सब पता नहीं। अमेरिका यह सब कुछ जानता था कि इस मदद का इस्तेमाल पाकिस्तान, भारत के खिलाफ कर रहा है फिर भी अमेरिका अपने रणनीतिक हितों की पूर्ति के लिए वह सब कुछ करता रहा जो नहीं करना चाहिये था और आतंकी देश की पहचान बना चुके पाकिस्तान को मदद देता रहा है। हालांकि पाकिस्तान की नकेल कसने की शुरुआत बराक ओबामा ने की थी लेकिन जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने सबसे बड़ा कदम उठाते हुए अमेरिकी जनता की मेहनत की कमाई को पाकिस्तान पर लुटाना बंद कर दिया था। परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान अब पूरी तरह चीन की गोद में बैठ गया है। चीन ने मदद भी की लेकिन अब चीन ने पाकिस्तान को झिड़कना शुरू किया तो पाकिस्तान को फिर से अमेरिका की याद आई। उसने फिर अमेरिका की शरण ले ली। इसी बीच ताइवान पर चीन दबाव बढ़ा रहा है इससे अमेरिका सहित कई देशों की चिन्तायें बढ़ गई है जिसको देखते हुए अमेरिका का प्रयास है कि ज्यादा से ज्यादा एशियाई और दक्षिण एशियाई देशों को अपने साथ जोड़कर खड़ा किया जाये। लेकिन अमेरिका जिस तरह से अभी हाल में पाकिस्तान को आर्थिक मदद मुहैया करवायी है व सवालों के घेरे में है। क्योंकि पाकिस्तान इस मदद का उपयोग देशहित में कम बल्कि आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने व ऐसोआराम में ज्यादा करेगा। पाकिस्तान की आदत रही है कि उसने मदद पाकर उसका कभी सदुपयोग नहीं किया है बल्कि दूसरे देशों में अशान्ति फैलाने हेतु किया गहै।