आजकल पठान फ़िल्म सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है। खासकर दीपिका के भगवा रंग के आउटफ़ीट को लेकर बवाल मचा हुआ है। सनातन हिन्दू धर्म में भगवा रंग को पवित्र माना जाता है, जो मंदिरों की ध्वजा से लेकर साधु संतों के द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों का रंग होता है। इसका मतलब ये तो नहीं की केसरी रंग और कोई पहन ही नहीं सकता या किसी और चीज़ों के लिए उपयोग में नहीं लिया जाना चाहिए।
मुद्दा यहाँ दीपिका ने भगवा रंग पहनकर डांस किया उसका नहीं, मुद्दा ये है कि क्या हर भगवे रंग के भीतर बैठा इंसान पवित्र है? निर्माेही है? साफ़ दिल और असल में साधू संतों वाला जीवन जी रहा होता है?
हमने पुराणों में एक कथा सुनी है कि, सीता जी जब बारह साल की बालिका थे तब शिवजी का धनुष आराम से उठाकर खेला करते थे। वही धनुष बलशाली रावण रत्ती भर हिला भी नहीं पाया था और सीता जी को वनवास के दौरान वही रावण फूल की तरह कँधे पर उठाकर ले गया था। रावण भी भगवा धारण करके साधु के भेष में आया था न? तो कहाँ उस रंग का सम्मान हुआ? इस मुद्दे पर तो आज तक कोई बहस कहीं नहीं सुनी।
हमारे यहाँ सदियों से भगवा के सामने झुकने की परंपरा चली आ रही है। जिस परंपरा को निभाने से सीता जी भी नहीं चुके और रावण की फैलाई जाल का शिकार हो गए। कहने का मतलब ये है की भगवा रंगधारी हर चीज़ हर इंसान की नीयत साफ़ नहीं होती। न हर भगवाधारी गलत या राक्षस होता है।
हमारे देश में कई भगवाधारीओं के कांड आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनते रहते है, रंग मायने नहीं रखता इंसान की नीयत और पवित्रता पूज्य होती है। बहुत सारे संत भगवा धारण करके असल में साधु सा जीवन जीते भी है। बेशक संस्कृति, परंपरा और धर्म भावना के लिए हमारा देश जाना जाता है, पर हर बात को धार्मिकता का रंग देकर उछालना अब जैसे एक और परंपरा बन गई है। दीपिका एक हीरोइन है, पब्लिक फ़िगर है, अपनी नौकरी करती है, उस काम के लिए उसको पैसे मिलते है और उसका घर चलता है। अश्लीलता का विरोध जायज़ है क्योंकि जरूरी नहीं अंग प्रदर्शन से ही फ़िल्म को हीट करवाया जाए। स्क्रिप्ट और डायरेक्शन मजबूत होगा तो फ़िल्म अपने आप आसमान छुएगी। रंगों को लेकर धर्मांधता फैलाना गलत बात है। विद्रोह करना ही है तो पाखंड़ियों का करो जो भगवा की आड़ लेकर रासलीला रचाते है।
रंगों पर कॉपी राइट का हंगामा क्यूँ? रंगों पर सबका अधिकार है। हरा, केसरिया रंगों को लेकर हंगामा करने वालों का मकसद सिर्फ़ देश की शांति भंग करने के सिवाय और कुछ नहीं होता। सूरज कि रश्मियाँ केसरी होती है और पेड़ पौधों की पत्तियों का रंग हरा। सूरज ने तो कभी ये नहीं कहा कि मैं हिन्दुओं के घरों पर ही उजाला फैलाऊँगा, न पेड़ों ने कहा हम मुस्लिम को ही फल फूल और छाँव देंगे। सोचिए अगर ऐसा होता तो? मुस्लिम धूप को तरस जाते और हिन्दु ऑक्सीजन को; फिर इंसान क्यूँ रंगों पर राजनीति करते ज़हर फैला रहा है? ष्मत बाँटो देश को रंगों की तुला में तोलकर, एकता और अखंडता की मिसाल बनों मेरा भारत महान बोलकरष् और भारत महान तब बनेगा जब नींव मजबूत होगी। धर्मांधता की आड़ में वैमनस्य की दीमक देश की दीवारों को खोखला कर रही है।
-भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर