फिरोजाबाद। रामलीला मैदान में आयोजित संत सम्मेलन में सोहम पीठाधीश्वर स्वामी सत्यानंद महाराज ने कहा कि ग्रहस्थ आश्रम मे रहकर ही आचार, व्यवहार और र्कत्तव्य की शिक्षा प्राप्त होती है। छोटे बड़ों का आदर सम्मान करना सिखाया जाता है। उन्होंने कहा कि पत्नी का रिश्ता सबसे पवित्र रिश्ता होता है उसकी बिना कोई भी यज्ञ धर्म कार्य संपन्न नहीं हो सकता है। ग्रहस्थ आश्रम ही धन का सही परमार्थ कार्यों में लगाना सिखाता है। अन्य तीन आश्रम ग्रहस्थ आश्रम के सहारे चलते है। स्वामी शुकदेवानंद ने कहा कि हमारा घर आनंद से भरा होना चाहिए। बिना धन के गृहस्थी नहीं चलती है। स्वामी प्रणवानंद महाराज ने कहा कि जो अपने माता-पिता, गुरु की बात मान लेते हैं वह गृहस्थाश्रम में सुखी रहते हैं। इनके अलावा स्वामी भारत आनंद, अनंतानंद, प्रज्ञानंद, प्रीतमदास नारायण, आनंद ब्रह्मचारी, अरुण देव आदि संत जनों ने भी धर्म पर चर्चा की। श्रीमद् भागवत कथा में रविवार को कथा व्यास पंडित राम गोपाल शास्त्री ने सती चरित्र, ध्र्रुव चरित्र, प्रहलाद चरित्र तथा वामन अवतार की कथा का मनोहारी वर्णन करते हुए कहा कि भगवान की भक्ति में कोई लोभ नहीं होना चाहिए, भक्ति में एकाग्रता होनी चाहिए। जिस प्रकार बालक ध्रुव एवं भक्त प्रहलाद ने अपनी छोटी सी उम्र में मोह त्याग कर भक्ति में मन को लगाया उसके फलस्वरूप उन्हें भगवान की प्राप्ति हुई। उन्होंने कहा कि जीव को निर्मल मन से भक्ति करनी चाहिए। भगवान की प्राप्ति वही करता है जिसका मन निर्मल होता है।