राजनीतिक दलों के नेताओं पर भ्रष्टाचार व घोटाले करने का आरोप लगना कोई नई बात नहीं रही है। सत्तासीन रहे दलों के नेताओं पर समय समय पर गम्भीर आरोप लगते रहे हैं और उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी है। हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोप कई नेताओं पर साबित नहीं हो पाये और उन्हें दोष मुक्त किया तो अनेक नेताओं पर भ्रष्टाचार के लगे आरोप सही साबित हुये तो उन्हें जेल में सजा भी भुगतनी पड़ी है अर्थात भ्रष्टाचार का मुद्दा कोई नया मुद्दा नहीं है किन्तु आश्चर्य का विषय यह है कि भ्रष्टाचार का विरोध कर और खात्मा का संकल्प लेकर उदय होने वाली पार्टी अर्थात आम आदमी पार्टी (आप) भी भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसती नजर आ रही है। भ्रष्टाचार का आरोप लगने के चलते ‘आप’ नेता सत्येन्द्र जैन जेल में हैं। आरोप-प्रत्यारोपों के दौर में ‘आप’ ने अपने आपको अलग व स्वच्छ दिखाने का प्रयास किया है किन्तु इसी बीच दिल्ली के उप मुख्यमन्त्री, ‘आप’ के दिग्गज नेता, जोकि ‘आप’ सुप्रीमों के निकट माने जाने वाले मनीष सिसोदिया पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप व उनकी गिरफ्तारी होना, ‘आप’ के लिये मुश्किल का दौर और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। पिछले साल पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के बाद मनीष सिसोदिया भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद से सिसोदिया की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थीं और सिसोदिया, विरोधियों के निसाने पर थे, क्योंकि सिसौदिया एक ताकतवर नेता थे जोकि दिल्ली सरकार में शिक्षा और स्वास्थ्य सहित 18 विभाग संभाल रहे थे।
शिक्षा विभाग में अमूल-चूल परिवर्तन करने का तमगा सिसौदिया के सिर रहा है, उन्हें ‘भारत का सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मंत्री’ बताया जाता रहा है, किन्तु अब उनकी गिरफ्तारी से सबसे बड़ा झटका शिक्षा विभाग को लग सकता है।
इसके साथ ही अरविन्द्र केजरीवाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती दिल्ली सरकार के बजट को निर्धारित तरीके से पेश करने और सिसोदिया की जगह दूसरा चेहरा ढूंढने की बन गई है क्योंकि 2014 से मनीष सिसोदिया ही दिल्ली सरकार का बजट पेश करते चले आ रहे थे।
मनीष सिसौदिया की गिरफ्तारी पर ‘आम आदमी पार्टी’ ही नहीं अपितु विपक्षों दलों के अनेक नेताओं ने भी अपनी- अपनी नाराजगी व्यक्त की है, इसके साथ ही केन्द्रीय एजेन्सियों के दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है। वहीं केन्द्र की ‘मोदी सरकार’ के नेताओं ने ‘आप’ सहित अन्य दलों के नेताओं के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि साक्ष्यों के आधार पर ही मनीष सिसौदिया को गिरफ्तार किया गया है। ऐसे में विचार करने का पहलू यह है कि अगर वास्तव में केन्द्रीय एजेन्सियों का दुरुपयोग किया जा रहा है तो यह कृत्य किसी भी मायने से उचित नहीं कहा जा सकता है और ‘लोकतन्त्र’ के लिये ये शुभ संकेत कतई नहीं है।