Monday, November 25, 2024
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आकर्षण का केंद्र बनी कर्रही रोड की होलिका

कानपुरः अवनीश सिंह। दक्षिण के कर्रही रोड हाईटेंशन में चल रहा होलिका दहन का कार्यक्रम लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया। शहरों के आधुनिकीकरण के चलते परंपराएं विलुप्त होती जा रही है नई पीढ़ी इन परम्पराओं के मूल से दूर होती जा रही है, ऐसे में दक्षिण के जरौली के लोगों ने नई पीढ़ी को जागरूक करने के लिए होलिका दहन के कार्यक्रम के माध्यम से जागरूक करने का प्रयास किया गया है।
होलिका दहन के कार्यक्रम में लकड़ियों के ऊपर होलिका व प्रहलाद की सांकेतिक स्वरूप की प्रतिमाएं लगाई गई है। वैसे तो होलिका दहन की परंपरा बहुत पुरानी है
विभिन्न हिंदू परंपराओं के अनुसार ‘होलिका दहन’ आमतौर पर भारत में होलिका दहन किया जाता है, होलिका की मृत्यु और प्रह्लाद के उद्धार का उत्सव मनाया जाता है। होली से एक रात पहले इस परंपरा को मनाने के लिए उत्तर भारत में लकड़ी की चिताओं को जलाया जाता है। परम्परा की शुरुआत के पीछे की जानकारी में विष्णुपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार दैत्यों के आदिपुरुष कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए।

बड़े पुत्र का नाम था हिरण्यकश्यप और छोटे पुत्र का नाम था हिरण्याक्ष। हिरण्यकश्यप ‘हिरण्यकरण वन’ नामक स्थान का राजा था। हिरण्याक्ष उसका छोटा भाई था जिसका वध वाराह रूपी भगवान विष्णु ने किया था। हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे जिनके नाम हैं प्रह्लाद, अनुहलाद, सह्ल्लाद और हल्लाद जिनमें प्रह्लाद सबसे बड़ा और हल्लाद सबसे छोटा था। उसकी पत्नी का नाम कयाधु और उसकी छोटी बहन का नाम होलिका था।
हिरण्यकशिपु का ज्येष्ठ पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के लाख कहने के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता रहा। दैत्य पुत्र होने के बावजूद नारद मुनि की शिक्षा के परिणामस्वरूप प्रह्लाद महान नारायण भक्त बना। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परन्तु भगवान नारायण स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई, दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका जल गई। इस प्रकार हिन्दुओं के कई अन्य पर्वों की भाँति होलिका-दहन भी बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है।
कार्यक्रम आयोजन समिति में मुख्य रूप से बबलू शर्मा, सुधाकर तिवारी, रविन्द्र त्रिवेदी, अमित शर्मा, अनिल यादव, अंकित सक्सेना, केपी तिवारी, पंडित जी व अन्य क्षेत्रवासी मौजूद रहे।