एक स्थान पर ही शिव और सैयद दोनों की होती है पूजा
डेरापुर, कानपुर देहात, महेंद्र कुमार। हिन्दू मुस्लिम के नाम पर देश में सियासत और आरजकता फैलाने वाले लोगों के लिए कानपुर देहात के डेरापुर गांव में स्तिथ श्री कृपालेश्वर महादेव का यह मंदिर किसी मिसाल से कम नहीं है, कानपुर देहात के डेरापुर से 2 किमी दूर एक ऊँचे टीले पर बना यह मंदिर बरसो से इस गांव के लोगों के बीच हिन्दू मुस्लिम का भेदभाव मिटा कर एक दूसरे की भावनाओं को जोड़ने और कौमी एकता बनाये रखने का सन्देश देता आ रहा है। मंदिर में शिवलिंग और सैयद बाबा की मजार एक साथ है और इस कारण ही यह दोनों ही धर्मों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना है। यहाँ शिवलिंग में सैय्यद और सैय्यद में शिवलिंग है इसलिए इस स्थान को पीर-पहलवान का भी दर्जा दिया गया है। बरसो से यंहा हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही कौमे बड़े प्यार से बिना किसी भेदभाव के पूजा और इबादत करती आ रही है। वैसे तो यंहा पूजा करने वालो भक्तों की हमेशा ही भीड़ रहती है पर शब-ए-बारात, महाशिवरात्रि और सावन के महीनों में यंहा भक्तों की आपार भीड़ होती है। महशिवरात्रि और सावन के महीने में प्रत्येक सोमवार को यंहा मेले का आयोजन भी होता है। यंहा हिन्दू भक्त जलाभिषेक के लिए आते है तो वंही मुस्लिम लोग सरबत वितरण करते है। श्री कपालेश्वर महादेव के मंदिर के बारे में यंहा के लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 1894 में पंडित कनौजी लाल मिश्रा जो की उस समय फैजाबाद जिले के असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर तैनात थे द्वारा देवस्वप्न के पश्चात किया गया था। यंहा शिव जी और सैयद बाबा एक साथ विराजमान है। शिवलिंग और सैय्यद बाबा के एक साथ होने की वजह और इस मंदिर के इतिहास के बारे में मंदिर के पुजारी पंडित मदन मिश्रा ने बताया कि उनके बाबा के पिताजी पंडित कनौजीलाल मिश्रा ने सन 1894 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था। एक दिन उनको सपने में दिखाई दिया कि उनके घर से कुछ दुरी पर जंगलों में भगवान् शिव का शिवलिंग है और उस पर चरवाहे खुरपी रेतने का काम कर रहे है जिससे शिवलिंग से खून बह रहा है। अगले ही दिन उन्होंने उस जंगल की ओर रुख किया और सपने में जो जगह दिखाई पड़ी थी ठीक उसी जगह पर उन्हें एक पत्थर दिखाई दिया जिससे खून निकल रहा था। इसके बाद उन्होंने वहां खुदाई कराई तो एक विशाल शिवलिंग दिखाई दिया लेकिन जैसे जैसे खुदाई और हुई तो शिवलिंग का स्वरूप देखकर लोग हैरान हो गए दरअसल इस शिवलिंग के साथ एक मजार भी थी। खुदाई कर रहे लोगों ने शिवलिंग और मजार को काफी खोदा लेकिन लोगों को इस प्रतिमा का दूसरा छोर नहीं मिला जिसके बाद यहाँ बाबा कृपालेश्वर का एक मंदिर बनवाया गया और लोग यहाँ पूजा पाठ करने आने लगे वंही मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोगों को जैसे -जैसे यह पता चला कि यहाँ सैय्यद बाबा की मजार जोकि जमीन के भीतर से निकली है तो मुस्लिम धर्म के लोग भी यहाँ आने लगे और इस तरह हिन्दू भाइयों की पूजा और मुस्लिम भाइयों की इबादत का एक साथ सिलसिला शुरू हो गया। जिस तरह भोले बाबा और सैय्यद बाबा का मिलन यहाँ सन 1894 में देखने को मिला उसी तरह हिन्दू और मुस्लिम धर्म के मानने वालों का मिलन यंहा आज तक देखने को मिल रहा है। दोनों ही मजहबों को मानने वाले लोग इस मंदिर में बड़े ही सिद्दत से पूजा और इबादत एक साथ करते नजर आते है एक तरफा हिन्दू समुदाय यंहा पूजा अर्चना करते है तो वंही दूसरी और मुस्लिम समुदाय के लोग यंहा चादर चढ़ाने आते है। यंहा आये मुस्लिम भक्त अहमद ने बताया की ऐसा मंदिर आसपास के गांव में नहीं है यंहा भगवान शिव के साथ ही सैयद बाबा बाबा भी विराजमान है इसलिए दोनों ही धर्म के लोगों की आस्था इससे जुडी हुई है। कृपालेश्वर बाबा के इस मंदिर को लोग पीर-पहलवान के नाम से भी जानते है। मंदिर में दर्शन करने आये श्रद्धालु ने बताया की वह कई वर्षो से इस मंदिर में दर्शन करते आ रहे है और उनकी इस मंदिर में बड़ी आस्था है वह मानते है की इस मंदिर में कोई व्यक्ति अगर कोई पीड़ा लेकर यंहा बाबा के दर्शन करने आता और उनसे सच्चे दिल से दुआ मांगता है तो बाबा उसकी पीड़ा को हर लेते है। शिवलिंग में सैयद और सैयद में शिवलिंग के साथ ही धर्म और आस्था से जुड़ा डेरापुर इलाके का यह मंदिर उन तमाम लोगो को एक सन्देश जरूर देता है जो धर्म और आस्था के नाम पर एक दूसरे से लड़ते चले आ रहे है और भारत देश की अपनी गंगा -जमुनी तहजीब को भूल बैठे है।