अस्थिरता से भरी राजनीति में आज साफ सुथरी सरकार का गठन होना एक सपने जैसी बात हो गई है। आज राजनीति में विचार,नीति नियम के कोई मायने नहीं रह गए हैं, यह बात पिछले कुछ सालों से दिखाई दे रही है। स्तरहीन राजनीति आज सिर्फ सत्ता के लिए राजनीति करती दिखाई देती है और अवसरवादी नेताओं ने इस का माहौल और भी खराब कर दिया है। अस्थिरता से भरे दौर में लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं और धीरे-धीरे चुनावी सरगर्मियां भी बढ़ती जा रही हैं। अभी एक बात जो जाहिर है वह यह कि अभी भी इनके मुद्दों में किसानों की समस्या, रोजगार,शिक्षा और स्वास्थ्य आदि नहीं है। अभी भी राम मंदिर, जीएसटी,आरक्षण जैसे मुद्दों को हवा देकर वोट हासिल करने की फिराक में है।
राजनीतिक अस्थिरता के माहौल में सरकार बनाने के लिए राजनीतिक दलों को गठबंधन का सहारा लेना पड़ रहा है या फिर विरोधी दलों को एकजुट होना पड़ रहा है। आगामी चुनावों को मद्देनजर रखते हुए सपा+बसपा का गठबंधन अपनी मजबूती का एहसास करा रहा है। देश में दो ही दल दिखाई देते हैं, कांग्रेस और भाजपा। कांग्रेस के विकल्प के तौर पर सपा+बसपा का गठबंधन एक चुनौती के रूप में सामने आया है। हालांकि यह बात दीगर है कि क्या 25 साल बाद फिर से हुआ यह गठबंधन एक दूसरे के दल का वोट दिलवा पायेगा? बसपा को अपने वोटबैंक का पूर्ण समर्थन है और यह जमीनी हकीकत है कि मायावती की बात उनके समर्थकों के लिए ब्रह्मवाक्य की तरह होती है। जबकि सपा के लिए बसपा को वोट दिलवाना थोड़ा मुश्किल काम है। दलित और यादवों का बैर काफी समय से चला आ रहा है और ये बैर बसपा के लिए दिक्कतें खड़ी कर सकता है। योगी आदित्यनाथ की यादवों के प्रति उदासीनता यादवों को बसपा के समर्थन की ओर ढकेल सकती है।
इधर कोलकाता में ममता बनर्जी 15 दलों के समर्थन के साथ भाजपा सरकार पर निशाना साधा रही हैं। मोदी नाम को एजेंडा ना बनाते हुए भाजपा को हराने की रणनीति तय की जा रही है। राहुल गांधी ने भी इस गठबंधन को समर्थन दिया है, हालांकि सीटों के विवाद के चलते सपा और बसपा के गठबंधन में कांग्रेस शामिल नहीं है। कुल मिलाकर भाजपा के लिए कड़ी चुनौतियां हैं। भाजपा ने भी सरकारी खजाने का पूरा मुंह खोलकर चुनावी दांव पेंच शुरू कर दिए हैं | इसके साथ ही पेट्रोल, जीएसटी, गैस और आरक्षण जैसे मुद्दों पर जनता को लुभाना शुरू कर दिया है। नेताओं के अवसरवादिता का लाभ भी भाजपा सरकार खूब उठाना जानती है। फिर भी गरीब वर्ग भाजपा सरकार से नाराज है। सत्ता स्वार्थ पर टिकी राजनीति अपने अहं से कितना बच पाएगी और कितना विरोधी दलों पर भारी पड़ेगी ये कुछ समय में जगजाहिर हो जाएगा…।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी