Tuesday, March 19, 2024
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दीक्षांत समारोह में आकांक्षा को मिली डॉक्टरेट की उपाधि

शिकोहाबादः जन सामना संवाददाता। शिक्षण संस्थान दयालबाग आगरा में आयोजित 42 वें दीक्षांत समारोह में नगर की बेटी आकांक्षा यादव ने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर नगर का नाम रोशन किया। छात्रा की इस उपलब्धि पर उसको बधाई देने वाला का तांता लगा रहा।
आकांक्षा नगर के वंशीपुरम कॉलोनी निवासी दिनेश यादव एवं निर्मला यादव की पुत्रवधू हैं। उसने पीएचडी के दौरान अपना शोध कार्य प्रोफेसर वीके गंगल(डीन फैकल्टी ऑफ कॉमर्स) के निर्देशन में पूरा किया। छात्रा ने विश्वविद्यालय में शोध के दौरान तीन शोध पत्र राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित किए। उन्होंने लगभग 10 राष्ट्रीय एवं अंतरर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आदि में भी प्रतिभाग किया। पीएचडी के दौरान छात्रा ने इंडियन काउंसिल ऑफ साइंस एड रिसर्च (आईसीएसएसआर) द्वारा फैलोशिप भी प्राप्त की। वहपूर्व में तीन बार नैट की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर चुकी है और दो वर्ष तक राजकीय वाणिज्य महाविद्यालय अलवर में बतौर सहायक आचार्य शिक्षण प्रदान कर चुकी हैं।

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मोनिका ने जेआरएफ नेट पास कर नगर का मान बढ़ाया

शिकोहाबादः जन सामना संवाददाता। नगर में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जिसे सही प्लेटफार्म मिल जाता है, वही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर अपना, परिवार का और नगर का मान बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ता।
नगर के मोहल्ला आवास विकास कालोनी निवासी रवि यादव राजकीय ठेकेदार विधुत विभाग की बेटी मोनिका यादव ने जेआरएफ नेट राजनीति शास्त्र सामान्य कैटागिरी में उत्तीर्ण कर नगर का नाम रोशन किया है। मोनिका यादव ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता के साथ ही गुरुजनों और अपनी मेहनत को दिया है। मोनिका की इस सफलता पर उसको बधाई देने वाले बधाई दे रहे हैं। परिजनों ने बेटी की इस उपलब्धि पर उसको मिष्ठान खिला कर उसका मुंह मीठा कराया।

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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में डीपफेक एक बड़ी चुनौती

डीप फेक का गलत इस्तेमाल हर क्षेत्र में होने लगा है, डीप फेक लोकतंत्र के लिये खतरा है। डीप फेक मतदाता के मन को बदल सकता है।
डीपफेक द्वारा उत्पन्न चुनौतियाँ सबसे पहले विश्वास और प्रतिष्ठा का क्षरण करती है। डीपफेक का इस्तेमाल गलत सूचना फैलाने, प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने और सामाजिक अशांति भड़काने के लिए किया जा सकता है। एक बार जब कोई डीपफेक वीडियो वायरल हो जाता है, तो नुकसान को रोकना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि लोग वास्तविक और हेरफेर की गई सामग्री के बीच अंतर करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। व्यक्तियों और समाज के लिए खतरा अब सिर पर आकर खड़ा हो गया है। डीपफेक का इस्तेमाल साइबर बुलिंग, ब्लैकमेल और यहां तक कि चुनावों में हस्तक्षेप करने के लिए भी किया जा सकता है। इसके दुरुपयोग से व्यक्तियों और समाज को नुकसान पहुंचने की संभावना बहुत अधिक है। पता लगाने और जिम्मेदार ठहराने में कठिनाई पहले से ज्यादा बढ़ गयी है। डीपफेक का परिष्कार लगातार विकसित हो रहा है, जिससे उनका पता लगाना और उनका पता लगाना कठिन होता जा रहा है। यह कानून प्रवर्तन और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के लिए एक चुनौती है। कानूनी और नैतिक विचार कमजोर पड़ते दिखाई दे रहें है। डीपफेक के उद्भव ने गोपनीयता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की सीमाओं के संबंध में जटिल कानूनी और नैतिक प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
डीपफेक ऐसे वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग हैं, जिन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करके हेरफेर किया जाता है, ताकि यह प्रतीत हो सके कि कोई कुछ ऐसा कह रहा है या कर रहा है जो उन्होंने कभी नहीं किया।

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ब्रेनोब्रेन वंडरकिड प्रतियोगिता में मान्य सोनी ने जीता गोल्ड मेडल

मथुरा । एलीट न्यू जनरेशन स्कूल मथुरा की कक्षा-4 की मेधावी छात्रा मान्या सोनी ने राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित ‘ब्रेनोब्रेन वन्डरकिड-2023’ प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल अर्जित कर विद्यालय,परिवार एवं शहर का नाम गौरवान्वित किया है।
मान्या सोनी कृष्णा नगर निवासी समाज सेवी नवीन सोनी अध्यक्ष सलाहकार बोर्ड दहेज प्रतिषेध अधिनियम व अध्यापिका डा गुंजन सोनी की पुत्री है यह प्रतियोगिता शैक्षिक संस्था ब्रेनोब्रेन किड्स एकेडमी प्राईवेट लिमिटेड के तत्वावधान में आयोजित हुई। इस प्रतियोगिता में देश भर के 1500 से अधिक विद्यालयों के लगभग 50000 छात्रों ने प्रतिभाग किया जिसमें उनकी पुत्री मान्या सोनी ने मेन्टल मैथ्स, लॉजिकल एबिलिटी, जनरल नॉलेज एवं स्पीड टाइपिंग में अपनी दक्षता का प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल अर्जित किया। प्रतियोगिता के आयोजकों ने इस प्रतिभाशाली छात्रा की बहुमुखी प्रतिभा की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए गोल्ड मेडल व प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया। एलीट न्यू जनरेशन स्कूल के प्रधानाचार्य व सभी शिक्षक शिक्षिकाओ ने इस मेधावी छात्रा को आशीर्वाद देते हुए उसके उज्जवल भविष्य की कामना की है।यह प्रतियागिता छात्रों को बौद्धिक क्षमता पर ध्यान केन्द्रित करने तथा त्वरित गति से समाधान ढूढ़ने एवं सीखने की क्षमता का विकास करने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी।
प्रतियोगिता में एक सामान्य पेपर शामिल था जिसमें मानसिक गणित, तार्किक क्षमता, सामान्य ज्ञान और स्पीड टाइपिंग/हैंडराइटिंग के क्षेत्रों के तहत बहुविकल्पीय प्रश्न हैं।

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अभियान चलाकर लड़कियों को शिक्षा के लिए किया प्रेरित

लखनऊ। एजुकेट गर्ल्स एक गैर-लाभकारी संस्था है जो भारत के ग्रामीण और शैक्षिक रूप से कमजोर वर्ग की लड़कियों की शिक्षा के लिए समुदायों को जुटाने पर अपना ध्यान केंद्रित करती है। संस्था लड़कियों की शिक्षा तक पहुंच और गुणवत्ता में सुधार करने के लक्ष्य के साथ उत्तर प्रदेश में कार्य कर रही है। पिछले कुछ महीनों से संस्था ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मिलकर नामांकन अभियान के जरिए 37320 लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया है ।
जानकारी दी गई कि नामांकन अभियान के लिए संस्था ने 275238 घरों मे सर्वे किया था। नामांकन अभियान में स्कूल प्रबंधन समिति की कुल 1640 बैठकों के साथ 2420 ग्राम शिक्षा सभा और मोहल्ला मीटिंग्स का आयोजन किया गया। संस्था ने यह अभियान चित्रकूट, कौशांबी, बांदा, फतेहपुर, रायबरेली, उन्नाव, सोनभद्र, प्रयागराज, भदोही, मिर्जापुर, महाराजगंज, कुशीनगर, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, बलरामपुर जिलों में प्रशासन की अमूल्य मदद से सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया है।
एजुकेट गर्ल्स संस्था के ऑपरेशन्स हेड विक्रम सिंह सोलंकी ने कहा, “संस्था शिक्षा से वंचित बालिकाओं को स्कूल से जोड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। सरकार और प्रशासन के साथ एक सहज साझेदारी के माध्यम से, शिक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने और नामांकन बढ़ाने के लिए यह अभियान शुरू किया गया था।

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छिन्दवाड़ा : एक विद्यालय की सफलता की कहानी

“जो कभी सुविधाहीन था अब बुनियादी सुविधाएँ व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए आसपास के क्षेत्र में चर्चित है ।”
छिन्दवाड़ा। विद्यार्थी अपने जीवन के अमूल्य ज्ञान, शिक्षा एवं जीवन में उन्नत शिखर तक पहुचने के लिए विद्यालय से ही अंकुरित होता है जो आगे एक सुसज्जित रूप में अपने आप को ढ़ालता है यानि संक्षेप में कहें तो विद्यार्थिओं को जिस प्रकार का स्कूली माहौल एवं शिक्षा दी जाए उनके जीवन को सुद्रण करने में वह वैसा की सफलता के आयाम हासिल करेगा।
आइये आज हम आपको एक ऐसी वास्तवित एक विद्यालय की सफलता है की कहानी से परिचित कराते है जो जिसे पढ़कर या सुनकर अन्य विद्यालयों एवं विद्यार्थिओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगी।
मध्यप्रदेश के छिन्दवाड़ा जिला जो कि सतपुड़ा अंचल में बसा जिला है जो अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जाना जाता है । जिला मुख्यालय से महज 13 किमी की दूरी पर एक विद्यालय है जिसकी स्थापना करीब 1965 के दशक में हुई होगी । गाँव के बड़े बुजुर्गों के अनुसार सबसे पहले यहाँ स्कूल गाँव में किसी घर में शुरू हुआ, गाँव वाले एक बहुत पुराने स्कूल शिक्षक का नाम लेते थे जिन्होंने स्कूल की स्थापना करी उनका नाम था श्री अवस्थी गुरूजी, उन्होंने यहा बच्चों के लिए शिक्षा का पदार्पण किया । इसके बाद अनेक शिक्षकों ने इस गाँव में अनेक सेवा दी गाँव की शिक्षा को सफल बनाने का कार्य किया ।

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बाल वैज्ञानिक अपने स्थानीय स्तर की समस्या को चिन्हित कर प्रस्तुत करेंगे लघुशोध पत्र

प्रयागराज। राष्ट्रीय विज्ञान एवम प्रौद्योगिकी संचार परिषद भारत सरकार द्वारा संचालित राष्ट्र व्यापी गतिविधि राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस का तीसवाँ राज्य स्तरीय आयोजन पतंजलि ऋषिकुल स्कूल में 24 दिसम्बर से 26 दिसम्बर तक आयोजित किया जाएगा। इस कार्यक्रम में कक्षा 6 से 12 तक के 10 वर्ष से 17 वर्ष तक के बच्चे मुख्य विषय अपने परितंत्र को समझें पर आधारित 5 उप विषयों में से किसी एक से सम्बंधित अपनी स्थानीय समस्या को चिन्हित कर दो बच्चों का एक समूह बनाकर किसी सक्षम मार्गदर्शक के मार्ग दर्शन में तीन चार महीने प्रयोग एवम सर्वे के माध्यम से अपने लघु शोध पत्र तैयार कर विभिन स्तर स्कूल स्तर, नोडल स्तर, जिला स्तर से होते हुए राज्य स्तर, रास्ट्रीय स्तर पर अपने लघु शोध प्रस्तुत करते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के राज्य समन्यवक डॉ0 एस0 के0 सिंह ने बताया कि इस वर्ष पूर्वी उत्तर प्रदेश के 37 जिलों में जिला स्तर पर लगभग 4670 प्रोजेक्ट प्रस्तुत किये गए। जिनमें से प्रत्येक जनपद से चार प्रोजेक्ट अर्थात कुल 148 प्रोजेक्ट राज्य स्तर के लिए चयनित किये गए। 16 मूल्यांकन कर्ताओं के माध्यम से 148 प्रोजेक्ट्स फाइलों की राज्य स्तरीय स्क्रीनिंग कराई गई जिनमें से 82 प्रोजेक्ट्स के ग्रुप लीडर्स को राज्य स्तर पर मौखिक प्रस्तुतीकरण के लिए आमन्त्रित किया गया है।

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बाल वैज्ञानिकों को किया गया पुरस्कृत

जन सामना संवाददाता: बिनौली/बागपत। जिवाना के गुरुकुल इंटरनेशनल स्कूल में बुधवार को राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के राज्य स्तरीय आयोजन के लिए चयनित बाल विज्ञानियों को पुरस्कृत किया गया।
जिवाना के गुरुकुल स्कूल में 26 नवंबर को राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस का जिला स्तरीय आयोजन हुआ था। जिसमें गुरुवार से मेरठ में शुरू हो रहे राज्य स्तर के आयोजन के लिए बेहतर प्रोजेक्ट प्रस्तुत करने वाले बाल विज्ञानियों का चयन किया गया। चयनित बाल विज्ञानियों गुरुकुल स्कूल के आर्यन व वंशिका, सनबीम पब्लिक स्कूल के वीशू तोमर, ग्रोवेल स्कूल के यश तोमर, देवास पब्लिक स्कूल की दिशा देशवाल व वेदांतिक स्कूल की अनुराधा को स्कूल में हुए कार्यक्रम में जिला समन्वयक डॉ0 राजीव खोखर ने स्मृति चिन्ह देकर पुरस्कृत किया।

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‘‘माँ ही पहली शिक्षिका, पहला स्कूल”

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चे के लिए ये सबसे अच्छी उम्र होती है, क्योंकि वह इस उम्र में सबसे ज़्यादा सीखता है। एक बच्चा पांच साल से कम उम्र के घर पर ज़्यादातर समय बिताता है और इसलिए वह घर पर जो देखता है, उससे बहुत कुछ सीखता है। छत्रपति शिवाजी को उनकी माँ ने बचपन में नायकों की कई कहानियां सुनाईं और वो बड़े होकर कई लोगों के लिए नायक बने।

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बच्चों की शिक्षा के प्रति लापरवाही अब अभिभावकों को पड़ सकती है भारी

बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए शिक्षकों के साथ अब अभिभावकों को भी अपना पूर्ण योगदान देने की आवश्यता है
“स्कूल अब शुरू हुए, शुरू हुई फिर पढ़ाई
दो साल बाद नन्ही बिटिया, स्कूल देख पाई
अब बच्चों के संग सब, स्कूल पढ़ने जायेंगे
नई गुरूजी की नई सीख, खूब सीखकर आयेंगे”
अप्रैल माह आते ही स्कूलों की घंटी एक बार फिर से बजने के लिए तैयार है । एक लम्बे समय के बाद पूर्व प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों की किलकारी स्कूल के कमरों से सुनाई देने को तैयार है । देश में लॉकडाउन के दौर ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वह है शिक्षा; और शिक्षा में पूर्व-प्राथमिक एवं प्राथमिक शिक्षा की दशा बिगाड कर रख दिया है । सरकारी विद्यालयों में जहाँ बच्चा 5 से 6 वर्ष की उम्र में स्कूल जाकर अपनी शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो जाता है वही निजी विद्यालयों में 4 वर्ष से प्री-प्राइमेरी कक्षाओं में दाखिला के साथ पढाई की शुरुआत हो जाती है । अभी तक पूरे 2 वर्षों का समय गुजर गया है कुछ बच्चे जो शुरूआती कक्षा में दाखिले के लायक थे उन्होंने तो स्कूल का मुख तक नहीं देख पाया है; और यदि किसी तरह इन उम्र के बच्चों का दाखिला विद्यालय में हो भी गया तो कोरोना महामारी के दर से बंद स्कूलों के दर्शन नहीं हो पाए है । इनके लिए स्कूल की पढ़ाई और वहाँ का मजा एवं सीख परियों की कहानी जैसा है । नए सत्र के प्रारंभ होते ही बच्चों की शुरूआती शिक्षा के लिए शिक्षक के पास एक नई चुनौती होगी, क्योकि 2 वर्षों के लर्निंग गेप को समझते हुए, आगामी कार्ययोजना तय करके सत्र के लिए तैयारी करनी होगी ।

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