Tuesday, March 19, 2024
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योगी सरकार पर भारी पड़ रही अफसरशाही ?

बुल्डोजर शैली के चलते उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में अपराधी भले ही खौफजदा हैं और इसके साथ ही अफसरशाही पर लगाम कसने का प्रयास किया जा रहा है, फिर भी योगी सरकार पर अफसरशाही भारी पड़ती दिख रही है, इसी का उदाहरण कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने अधिकारियों को यह नसीहत बार बार देनी पड़ती है कि ‘सूबे की जनता की समस्याएं न सुनना अब अधिकारियों को भारी पड़ेगा।’ वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भले ही जोर है कि सूबे के लोगों की समस्याओं के निस्तारण पर पूरा जोर दिया जाए। जिले के अफसर, जनता की समस्याएं स्थानीय स्तर पर ही सुनें और बेवजह लोगों को कार्यालयों के चक्कर ना लगवायें। वावजूद इसके जनता की समस्याओं को कितना सुना जा रहा है और उनका समाधान ठीक तरीके से कितना किया जा रहा है, उस पर सवाल उठ रहे हैं।
मुख्यमंत्री जी, सूबे के अधिकारियों को यह चेतावनी समय-समय पर दिया करते हैं लेकिन उनके दिशा-निर्देशों का असर सूबे के अफसरों पर कितना पड़ रहा है, सवालों के घेरे में है। क्योंकि अगर प्रदेश में जमीनी स्तर पर सबकुछ चंगा होता तो दूरदराज की जनता को अपनी समस्याओं के लिए मुख्यमंत्री की चौखट पर आना नहीं पड़ता!! ऐसे में मुख्यमन्त्री कार्यालय अथवा दरबार में पहुंच रही शिकायतों से यह सवाल तो उठता ही है कि जिला प्रशासन क्या अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन भली प्रकार से नहीं कर रहा है? कमोवेस यही हाल मुख्यमन्त्री जी के ‘जनसुनवाई- समाधान’ पोर्टल का है। उस पर पीड़ितों की सुनवाई कितनी की जा रही है यह तो पीड़ितों का फीडबैक देखकर ही पता चल जायेगा!
वहीं योगी जी को भी शायद अपने अफसरों की कार गुजारियों का आभास हो रहा है और उनकी चिंता सामने आ रही है। परिणामतः योगी जी को बार-बार यह कहना पड़ रहा है कि अफसर निर्धारित समय पर अपने कार्यालय पहुंचें और जनता की समस्या को सुनें और निस्तारण करें।

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चरणों में सरकार

बिगत कई दिनों से मध्य प्रदेश का एक वीडियो सोशल प्लेटफॉर्मों में जमकर सुर्खियों में है और कोई इसे सामाजिक मानसिकता से जोड़ कर देख रहा है, सामाजिक भेदभाव की दृष्टि से तो कोई राजनैतिक दृष्टि से। वहीं जब शिवराज सरकार की आलोचना चहुओर होने लगी और विरोधी दल अपना राजनीतिक हित साधने में जुट गये तो शिवराज सिंह ने भी बिना देर किये, कानूनी कार्यवाइयों को नजर अन्दाज करते हुए आरोपी के घर पर दिखावे के लिये ही सही किन्तु अवैध निर्माण करार देते हुये उसके घर के कुछ हिस्से पर बुल्डोजर चलवा ही दिया और आरोपी के विरु( एन एस ए के तहत कार्यवाही करवाते हुए उसको जेल की सलाखों के पीछे भिजवा दिया। हालांकि सवाल उठना तो लाजिमी ही है कि पेशाब करने वाले भाजपा कार्यकर्ता के घर का अवैध निर्माण अभी तक क्यों नहीं दिखा और क्या सिर्फ लोगों का आक्रोश शान्त करने के लिये शिवराज सिंह चौहान ने बुल्डोजर चलवा दिया गया?

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कर्नाटक में भाजपा की हार

कर्नाटक राज्य में बीजेपी के पतन के संभावित कारण क्या हो सकते हैं। आइए इसके कुछ कारणों के बारे में बताते हैं जो संभवतः केंद्र-सत्तारूढ़ भाजपा की हार का कारण बने हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस के पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के संकेत दिये हैं। ऐसे में देश के राजनीतिक हलकों में पहले से ही अटकलों का दौर चल रहा है कि राज्य में बीजेपी के पतन के संभावित कारण क्या हो सकते हैं?
कर्नाटक में भाजपा की हार के प्रमुख कारणों में से एक राज्य में एक मजबूत राजनीतिक चेहरे की अनुपस्थिति को देखा जा रहा है। भाजपा ने पूर्व सीएम येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन बसवराज बोम्मई बदलाव और प्रगति के मामले में जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहे। इसके अलावा, कांग्रेस के पास उनके प्रमुख लोगों के रूप में डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे हैं, जिसने भाजपा को गंभीर नुकसान में डाल दिया है।
वहीं कर्नाटक राज्य में भाजपा को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को इस चुनाव के दौरान दरकिनार कर दिया गया था। इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी जैसे अन्य प्रमुख नेताओं को भी भाजपा ने टिकट से वंचित कर दिया था। इसने दोनों नेताओं को मैदान में प्रवेश करने से पहले कांग्रेस में शामिल होने का मौका दिया। तीनों नेता – बीएस येदियुरप्पा, जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी – राज्य में प्रमुख लिंगायत समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन नेताओं को पीछे की सीट पर बिठाने से पार्टी को नुकसान होता है।

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‘आप’ को लगा झटका

राजनीतिक दलों के नेताओं पर भ्रष्टाचार व घोटाले करने का आरोप लगना कोई नई बात नहीं रही है। सत्तासीन रहे दलों के नेताओं पर समय समय पर गम्भीर आरोप लगते रहे हैं और उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी है। हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोप कई नेताओं पर साबित नहीं हो पाये और उन्हें दोष मुक्त किया तो अनेक नेताओं पर भ्रष्टाचार के लगे आरोप सही साबित हुये तो उन्हें जेल में सजा भी भुगतनी पड़ी है अर्थात भ्रष्टाचार का मुद्दा कोई नया मुद्दा नहीं है किन्तु आश्चर्य का विषय यह है कि भ्रष्टाचार का विरोध कर और खात्मा का संकल्प लेकर उदय होने वाली पार्टी अर्थात आम आदमी पार्टी (आप) भी भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसती नजर आ रही है। भ्रष्टाचार का आरोप लगने के चलते ‘आप’ नेता सत्येन्द्र जैन जेल में हैं। आरोप-प्रत्यारोपों के दौर में ‘आप’ ने अपने आपको अलग व स्वच्छ दिखाने का प्रयास किया है किन्तु इसी बीच दिल्ली के उप मुख्यमन्त्री, ‘आप’ के दिग्गज नेता, जोकि ‘आप’ सुप्रीमों के निकट माने जाने वाले मनीष सिसोदिया पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप व उनकी गिरफ्तारी होना, ‘आप’ के लिये मुश्किल का दौर और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।

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गोशालाओं में गो-पालन किया जा रहा है या गो-मारण ??

निराश्रित/आवारा गोवंश किसानों के लिये एक जटिल समस्या बन गये थे और अभी भी बने हुए हैं क्योंकि किसानों की फसलों को नष्ट कर उनकी मेहनत की कमाई पर पानी फेर रहे हैं। अनकहे दर्द से किसान परेशान हैं। ऐसी परिस्थितियों को देखते हुये उप्र की योगी सरकार ने योजना तैयार की कि निराश्रित/आवारा गोवंशों (गायों/सांड़ों) से किसानों को छुटकारा दिलवाया जाये। इसी योजना के अनुरूप हर ग्राम पंचायत स्तर पर अथवा आवश्यकता के अनुसार गोशालाओं की स्थापनायें करना शुरू की गई। सूबे के ही जनपद में अनेक गोशालायें स्थाई अथवा अस्थाई रूप से निर्मित कर दी गईं और कुछ अभी निर्माणाधीन भी हैं।
अब कहा जा रहा है कि गोशालायें बन जाने से किसानों को निराश्रित/आवारा गोवंशों (गायों/सांड़ों) से छुटकारा मिल जायेगा!
ठीक बात है किसानों का दर्द समझा तो है उप्र की योगी सरकार ने, लेकिन इसी बीच सवाल यह भी उठता है कि ‘किसानों का दर्द’ तो सरकार की समझ मेें आ गया किन्तु क्या ‘निराश्रित गोवंशों का दर्द’, योगी सरकार समझ पा रही है अथवा नहीं ?
अब आप कहेंगे कि मैं यह क्यों लिख रहा हूं कि निराश्रित गोवंश किसी अनकहे दर्द से पीड़ित हैं तो स्पष्ट कर रहा हूं कि निराश्रित गोवंशों के ‘पेट की आग’ बुझाने की जो योजना या नीति निर्धारित है वह नाकाफी साबित हो रही है अथवा यूं कहें कि बिना सोंचे-विचारे तैयार की गई है। परिणामतः गोशालाओं में रखे गये गोवंश, भूख से तड़पने पर मजबूर हैं फिर नतीजा क्या होता होगा, इसकी कल्पना हर कोई कर सकता है…????
अनेक पशु पालकों ने बताया कि एक वयस्क पशु (गाय/भैंस) को औसतन 4-6 किलोग्राम सूखा चारा एवं 1-2 किलोग्राम दाना का मिश्रण जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक है। वहीं 1 किलोग्राम दाना मिश्रण प्रति 2.5 किलोग्राम, दूध उत्पादन के लिए निर्वहन आवश्यकता के अतिरिक्त देना चाहिए।

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नैतिक मूल्यों की रक्षा

सोशल साइट्स पर अनेक जघन्य अपराधों के ऐसे-ऐसे मामले बढ़-चढ़ कर प्रकाश में आ रहे हैं, उससे यही लगने लगा है कि आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोग पूरी तरह से बेखौफ होने लगे हैं। उन्हें किसी का जान या परिवार से कोई मतलब नहीं रहा है। उन्हें किसी की जान ले लेने से कतई संकोच नहीं रहा है। अनेक मामले प्रकाश में आ चुके है कि किसी को सबक सिखाने में उसकी जान चली गई। सबक सिखाने का यह तरीका तो कतई उचित नहीं हो सकता कि कानून के हवाले ना कर उसे जान से ही मार डाला जाए। क्या हमारे समाज से मानवीय तकाजा खत्म होता जा रहा है? कानून का राज संदेह के घेरे में आ चुका है? अगर ऐसा नहीं तो फिर क्यों लोग कानून को अपने हांथों में ले रहे हैं? पुलिस के पास जाने के वजाय लोग स्वयं फैसला करने लगे हैं। समाज में हिंसक नजारों से सवाल उठना लाजिमी है कि क्या समाज को हिंसक होने की त्रासदी से बचाया जाना एक जरूरूरत बन गया है। ? तमाम संचार माध्यमों पर अपराध और हिंसा को आम घटना की तरह परोसा जाने लगा है। मुहिम तक छेड़ दी जाती है। न्यायालय की बात नहीं बल्कि लोग अपने मन मस्तिष्क से फैसला ले रहे हैं और सजायें देने की बात कर रहे हैं। अब तो ऐसे नजारे भी सामने आ चुके है कि सजायाफ्ता अपराधियों को लोग सम्मानित कर रहे हैं, शायद ऐसे नजारों से सबसे हमारे सामाजिक मूल्यों को आघात लगा है और यह आघात अकथनीय है।
समाचारों की सुर्खियों पर अगर विचार करें तो पिछले कुछ सालों से जिस तरह उन्मादी व अराजक तत्व समाज को सुधारने के नाम पर हिंसा को हथियार के रूप में प्रयोग कर रहे हैं या करते देखे जा रहे हैं। वह एक गम्भीर विषय है।इ इस पर विचार किया जाना चाहिये। ऐसा माहौल तैयार कर दिया गया है जिससे कि अपने ही बीच रहने वाले बहुत सारे लोगों को कई लोग शक की नजर से देखने लगे हैं।

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विकृतियों का खतरा

ऐसा महौल बनता सा जा रहा है कि भारतीय समाज हिंसक एवं असभ्य होता जा रहा है। सुर्खियों पर अगर विचार करें तो ऐसा महसूस हो रहा है कि एक ऐसा हिंसक समाज बन रहा है, जिसमें कुछ लोगों को दिन भर में जब तक किसी ना किसी तरह का अपराध कारित कर देते है तब तक उन्हें बेचैनी-सी रहती है। हालांकि ऐसे कृत्य कोई नये नहीं हैं। इतिहास में ऐसे कुछ विकृत दिमागी लोग हुए हैं, जिन्हें यातना देकर या परेशान करके किसी को मारने में आनंद आता था। उन्हें एक अलग तरह की अनुभूति हो थी, लेकिन आधुनिक सभ्य समाजों में ऐसी प्रवृत्ति का कायम रहना गहन चिन्ता का विषय है। यह समझना मुश्किल होता जा रहा है कि शिक्षा का स्तर आधुनिक होने के बावजूद वर्तमान के लोगों में असहिष्णुता, असहनशीलता और हिंसा की प्रवृत्ति इतनी कैसे बढ़ रही है कि जिन मामलों में उन्हें कानून की मदद लेनी चाहिए, उनका निपटारा भी वे खुद करने लगते हैं और कानून हांथ में ले रहे हैं।
ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति का चरित्र देश का चरित्र है। जब चरित्र ही बुराइयों की सीढ़ियां चढ़ने लग जाये तो भला कौन निष्ठा के साथ देश का चरित्र गढ़ सकता है और लोक तंत्र के आदर्शों की ऊंचाइयां सुरक्षित कैसे रह सकती हैं? सवाल यह भी उठता है कि जिस देश की जीवनशैली हिंसाप्रधान होती है, उनकी दृष्टि में हिंसा ही हर समस्या का समाधान है ? अनेक उदाहरण सामने आ चुके हैं और लोगों ने मामूली बात पर या कहा-सुनी होने पर खुद इंसाफ करने की नीयत से कानून को अपने हांथ में ले लिया और किसी की हत्या करके अफसोस की बजाय कई लोग गर्व का अनुभव करते दिखे हैं। ऐसा देखने को मिला है कि मानो किसी की जान ले लेना अब खेल जैसा होता गया है।

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सेनाओं को हटाने का निर्णय

गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स पीपी-15 के क्षेत्र में भारत और चीन का सेना हटाने का निर्णय बहुत अच्छा है। किंतु इसका ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए, क्योंकि चीन की ओर से ऐसा होता नहीं है। उस पर आंख बन्द करके भरोसा नहीं किया जाना चाहिये। चीन अपनी बात पर प्रायः टिकता नहीं है। वह एक जगह समस्या खत्म करता है। दूसरी जगह नया मोर्चा शुरू कर देता है। इसी लिये कहा जाता है कि चीन हमेशा अपनी कला दिखाने से बाज नहीं आता है। हालांकि सुर्खियों की मानें तो लद्दाख सीमा से अच्छी खबर है और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स पीपी-15 के क्षेत्र में भारतीय और चीनी सैनिकों ने समन्वित और नियोजित तरीके से पीछे हटना शुरू कर दिया है। भारत-चीन की ओर से संयुक्त बयान में ये जानकारी दी गई। रक्षा मंत्रालय ने बताया कि भारत-चीन कोर कमांडर स्तर की बैठक के 16वें दौर में बनी आम सहमति के अनुसार, गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स के क्षेत्र में भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों ने समन्वित व नियोजित तरीके से पीछे हटना शुरू कर दिया है। यह एक सुखद संकेत है और इससे सीमावर्ती क्षेत्रों में शांतिपूर्ण माहौल बनाने में सहायता मिलेगी।
वहीं सेना के पीछे हटने के बारे में बताया कुछ भी जा रहा हो किंतु सच्चाई यह है कि चीन सेना हटाने को लेकर इसलिए सहमत हुआ क्योंकि 15-16 सितंबर को उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन का वार्षिक शिखर सम्मेलन है। सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति शामिल होंगे। शायद चीन को ऐसा महसूस हुआ होगा कि इस तनावपूर्ण माहौल में बैठक की कामयाबी की उम्मीद नही की जा सकती। वहीं यदि उज्बेकिस्तान में यह बैठक न होती तो चीन शायद कभी भी अपनी हरकत से बाज न आता। उसकी सेनाएं कतई पीछे नहीं हटायीं जातीं! क्यों ऐसा ही नजारा डोकलाम विवाद के समय हुआ था। तीन माह से भारत और चीन की सेना यहां आमने-सामने थीं। चीन यहां सड़क बनाने पर अड़ा था और भारत को इस पर कड़ी आपत्ति थी।

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मदद का दुरुपयोग

पूरी दुनियां यह जानती है कि आतंकवादी गतिविधियों का सबसे बड़ा कारखाना भारत का पड़ोसी पाकिस्तान है। यह बात जानने के बावजूद अमेरिका वर्षों से पाकिस्तान को हथियार और अरबों डॉलर की मदद करता चला आ रहा है। इसमें कतई दो राय नहीं कि अमेरिका को यह सब पता नहीं। अमेरिका यह सब कुछ जानता था कि इस मदद का इस्तेमाल पाकिस्तान, भारत के खिलाफ कर रहा है फिर भी अमेरिका अपने रणनीतिक हितों की पूर्ति के लिए वह सब कुछ करता रहा जो नहीं करना चाहिये था और आतंकी देश की पहचान बना चुके पाकिस्तान को मदद देता रहा है। हालांकि पाकिस्तान की नकेल कसने की शुरुआत बराक ओबामा ने की थी लेकिन जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने सबसे बड़ा कदम उठाते हुए अमेरिकी जनता की मेहनत की कमाई को पाकिस्तान पर लुटाना बंद कर दिया था। परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान अब पूरी तरह चीन की गोद में बैठ गया है। चीन ने मदद भी की लेकिन अब चीन ने पाकिस्तान को झिड़कना शुरू किया तो पाकिस्तान को फिर से अमेरिका की याद आई। उसने फिर अमेरिका की शरण ले ली।

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क्या भ्रष्टाचार अब रुक जायेगा?

रविवार को नोएडा स्थित ट्विन टावर माननीस सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश पर ध्वस्त कर दिये गए। अब इन बहुमंजिला इमारतों की जगह मलबा ही बचा है। लेकिन इसी बीच एक सवाल अवश्य उठता है कि क्या भ्रष्टाचार अब रुक जायेगा ? देश की जड़ तक में समा चुका भ्रष्टाचार क्या अब नहीं किया जायेगा? सवाल यह भी उठता है कि जिस देश में संसाधनों की कमी है, क्या ऐसे में इन टावरों का अधिगृहण कर मूलभूत सुविधाओं के लिए नहीं किया जा सकता था?
इन टावरों को एपेक्स और सेयेन नामक सुपरटेक बिल्डर ने बनाया था। इस दौरान आरोप लगे कि टावरों को बनाने में नियमों का उल्लंघन किया गया। बताते चलें कि ये देश में गिराई जाने वाली सबसे बड़ी बहुमंजिला इमारतें थीं और भारतीय राजधानी में स्थित सबसे ऊंचे कुतुब मीनार से भी ऊंचीं थीं। हालांकि ये टावर यूं ही नहीं ध्वस्त कर दिये गये इनको गिराने का फ़ैसला क़ानूनी लड़ाई जो कई वर्षों तक चली, उसके बाद लिया गया था। यह लड़़ाई इलाहाबाद उच्च न्यायालय से शुरू हुई थी और माननीय सुप्रीम कोर्ट में खत्म हुई।
अतीत पर अगर नजर डालें तो इन टावरों के निर्माण की कहानी वर्ष 2004 से शुरू होती है। न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने औद्योगिक शहर बनाने की योजना के तहत एक आवासीय क्षेत्र बनाने के लिए सुपरटेक नामक कंपनी को यह जगह आवंटित की थी। वर्ष 2005 में, नोएडा बिल्डिंग कोड, दिशा निर्देश 1986 के अनुसार सुपरटेक ने प्रत्येक 10 मंजिल वाले 14 फ्लैटों की योजना तैयार की। न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने 10 मंजिलों वाले 14 अपार्टमेंट भवनों के निर्माण की अनुमति दी, साथ ही यह भी प्रतिबंध लगाया गया था कि ऊंचाई 37 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए और इस साइट पर 14 अपार्टमेंट और एक वाणिज्यिक परिसर के साथ एक गार्डन विकसित किया जाना था। वर्ष 2006 में कंपनी को निर्माण के लिए पुरानी शर्तों पर अतिरिक्त ज़मीन दी गई। सुपरटेक ने नई योजना बनाई। इसमें बिना गार्डन के दो और 10 मंजिल भवन बनाए जाने थे। अंत में वर्ष 2009 में 40 मंजिलों के साथ दो अपार्टमेंट टावर बनाने के लिए अंतिम योजना तैयार की गई। इस दौरान वर्ष 2011 में रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई। याचिका में आरोप लगाया गया कि इन टावरों के निर्माण के दौरान उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट मालिक अधिनियम, 2010 का उल्लंघन किया गया है। इसके मुताबिक केवल 16 मीटर की दूरी पर स्थित दो टावरों ने कानून का उल्लंघन किया था। साथ ही कहा गया कि इन टावरों को बगीचे के लिए आवंटित भूमि पर अवैध रूप से खड़ा किया गया।

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