Monday, April 21, 2025
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जाति की जंजीरें: आज़ादी के बाद भी मानसिक गुलामी

कैसे लोग अंधभक्ति में बाबा की पेशाब को “प्रसाद” मानकर पी सकते हैं, लेकिन जाति के नाम पर दलित व्यक्ति के छूने मात्र से पानी अपवित्र मान लिया जाता है। इन समस्याओं की जड़ें धर्म, राजनीति, शिक्षा और मीडिया की भूमिका में छिपी हैं। शिक्षा में विवेक की कमी, मीडिया की चुप्पी, धर्मगुरुओं की मनमानी और जातिवादी मानसिकता समाज को पिछड़ेपन की ओर ढकेल रही है। यह सवाल उठाता है कि यदि आस्था किसी बाबा की पेशाब को ‘पवित्र’ मान सकती है, तो एक दलित का पानी ‘अपवित्र’ कैसे हो सकता है?
-प्रियंका सौरभ

भारत, जिसे आध्यात्मिकता और विविधता का देश कहा जाता है, अपने भीतर विरोधाभासों का एक ऐसा संसार छुपाए बैठा है जो कभी-कभी चौंका देता है। एक ओर हम विज्ञान, तकनीक, अंतरिक्ष और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर सामाजिक और सांस्कृतिक परतों में आज भी मध्ययुगीन सोच जड़ें जमाए बैठी है।

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निजी स्कूलों की मनमानी के चलते अभिभावकों का शोषण !

आज के समय में शिक्षा को ज्ञान का माध्यम कम और व्यवसाय का जरिया अधिक समझा जाने लगा है। निजी स्कूल, जो कभी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रतीक माने जाते थे, अब अभिभावकों की जेब पर बोझ बनते जा रहे हैं। कापी-किताबों की आड़ में इन स्कूलों द्वारा की जा रही लूट किसी डकैती से कम नहीं है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो न केवल शिक्षा व्यवस्था की साख पर सवाल उठाता है, बल्कि समाज के मध्यम और निम्न आय वर्ग के परिवारों के लिए गम्भीर संकट पैदा कर रहा है।
हर साल नया शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही निजी स्कूलों की ओर से किताबों, कॉपियों और स्टेशनरी की लम्बी फेहरिस्त अभिभावकों के सामने पेश कर दी जाती है। ये सामग्रियां न केवल महंगी होती हैं, बल्कि इन्हें खरीदने के लिए अभिभावकों को स्कूल द्वारा निर्धारित दुकानों या प्रकाशकों तक सीमित कर दिया जाता है। बाजार में उपलब्ध सस्ते और समान गुणवत्ता वाले विकल्पों को दरकिनार कर स्कूल प्रबंधन अपनी मर्जी थोपता है। यह स्पष्ट है कि इसके पीछे कमीशन और मुनाफाखोरी का खेल चल रहा है। क्या यह शिक्षा का उद्देश्य है कि बच्चों के भविष्य के नाम पर उनके माता-पिता को आर्थिक रूप से कमजोर किया जाए?
यह शोषण यहीं तक सीमित नहीं है। हर साल पाठ्यक्रम में मामूली बदलाव कर नई किताबें खरीदने की बाध्यता थोपी जाती है, भले ही पुरानी किताबें उपयोगी हों। इसके अलावा, स्कूलों द्वारा आयोजित गतिविधियों, वर्कशॉप और अन्य शुल्कों के नाम पर भी अभिभावकों से अतिरिक्त वसूली की जाती है। एक तरफ सरकार शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने की बात करती है, वहीं निजी स्कूलों की यह मनमानी उस सपने (सरकार की मंशा) को चकनाचूर कर रही है।

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राम से बड़ा राम का नाम

प्रभु श्री राम का चरित्र हमारा वो सनातन इतिहास है जो इतने वर्षों बाद भी सम्पूर्ण विश्व की मानवता को वर्तमान तथा भविष्य की राह दिखा रहा है।
वो त्रेता युग का समय था जब सूर्यवंशी महाराज दशरथ के घर कौशलनन्दन श्री राम का जन्म हुआ था।
समय कहाँ रुकता है भला ! तो वह अपनी गति से चलता रहा। आज हम द्वापर से होते हुए कलियुग में आ गए हैं। लेकिन इतने सहस्रों वर्षों के बाद भी, इतने युगों के पश्चात भी प्रभु श्री राम का चरित्र देश देशांतर की सीमाओं से परे, वर्षों और युगों के कालचक्र को लांघकर अनवरत सम्पूर्ण विश्व को आकर्षित करता रहा है।
‘‘हरे रामा, हरे कृष्णा’’ का जाप आज वैश्विक स्तर पर एक अनूठी आध्यात्मिक सन्तुष्टि, परम् आनन्द की अनुभूति एवं मनुष्य को एक अलग ही आनन्दमय लोक में पहुँच जाने का अनुभव दिलाने वाला सर्व स्वीकार्य मंत्र बन चुका है।
दरअसल श्री राम का चरित्र ही ऐसा है। एक आदर्श पुत्र हो या एक आदर्श भ्राता (भाई), एक आदर्श पति हो या एक आदर्श राजा, एक आदर्श मित्र हो या फिर एक आदर्श शत्रु! राम मर्यादाओं में रहने वाले,पुरुषों में उत्तम, ऐसे ‘‘मर्यादा पुरूषोत्तम’’ हैं जिनका जीवन कठिनाइयों एवं संघर्षाे से भरा रहा किंतु फिर भी मानव रूप में उन्होंने मुस्कुराते हुए सहज रूप से धर्म की राह पर चलते हुए इस प्रकार अपना जीवन व्यतीत किया कि इतने वर्षों बाद आज भी वह हमारा पथप्रदर्शक है।
कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि प्रभु श्री राम का चरित्र हमारा वो सनातन इतिहास है जो इतने वर्षों बाद भी सम्पूर्ण विश्व की मानवता को वर्तमान तथा भविष्य की राह दिखा रहा है।
इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि आज की 21 वीं सदी में भी जब आदर्श प्रशासन की बात की जाती है तो भारत ही नहीं विश्व भर में ‘‘रामराज्य’’ ही उसका प्रतिमान होता है।
यही कारण है कि हम यह कामना करते हैं कि, ‘‘नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल से घराना हो, चरण हों राघव के जहां मेरा ठिकाना हो।’’
कहते हैं कि जब लंका जाने के लिए श्री राम की वानर सेना समुद्र के ऊपर पुल का निर्माण कर रही थी और वानर समुद्र में पत्थर फेंक रहे थे, तो प्रभु श्री राम ने देखा कि वानर समुद्र में पत्थर पर ‘राम’ नाम लिखकर फेंक रहे हैं और पत्थर तैर रहे हैं। उन्होंने सोचा कि जब मेरा नाम लिखा पत्थर तैर रहा है तो यदि मैं कोई पत्थर फेंकूँ तो वो भी तैरेगा।

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स्वागत योग्य एवं अनुकरणीय है शराबबन्दी

मध्य प्रदेश सरकार ने धार्मिक महत्व के 19 नगरों और ग्राम पंचायतों में एक अप्रैल से शराब बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के अनुसार उज्जैन, ओंकारेश्वर, महेश्वर, मण्डलेश्वर, ओरछा, मैहर, चित्रकूट, दतिया, पन्ना, मण्डला, मुलताई, मंदसौर और अमर कण्टक की नगरीय सीमा में शराब नहीं बिकेगी। इसके अलावा सलकनपुर, कुण्डलपुर, बांदकपुर, बरमानकलां, बरमानखुर्द और लिंग ग्राम पंचायत सीमा में भी शराब की सभी दुकानें और बार बंद करवाने का आदेश दिया गया है। प्रदेश सरकार का यह कदम स्वागत योग्य और अनुकरणीय है। अच्छा होता यदि यह प्रतिबंध पूरे प्रदेश में लागू होता।

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घिब्ली की दुनिया बनाम हकीकत: कला, रोजगार और मौलिकता का संघर्ष

रोजगार हमारी ज़रूरतों के लिए आवश्यक है, लेकिन कला और मनोरंजन मानसिक शांति और प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं। घिब्ली स्टाइल इमेजरी और एआई टूल्स सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहे हैं, जिससे मौलिकता पर सवाल उठ रहे हैं। पहले जहां कलाकारों को महीनों मेहनत करनी पड़ती थी, अब एआई कुछ सेकंड में वैसा ही आर्ट तैयार कर देता है, जिससे असली कलाकारों को चुनौती मिल रही है।
अगर हम हकीकत की दुनिया में देखें, तो रोज़गार ज़रूरी है। बिना नौकरी या व्यवसाय के, सिर्फ घिब्ली की खूबसूरत दुनिया में खोकर पेट नहीं भरा जा सकता। लेकिन मानसिक शांति और प्रेरणा के लिए कला भी आवश्यक है। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर घिब्ली स्टाइल की इमेज और वीडियो एक ट्रेंड बन चुके हैं। लोग पिनटेरेस्ट, इंस्टाग्राम और टिकटोक पर इसे देखकर टाइम पास कर रहे हैं, कुछ इसे खुद ट्राई कर रहे हैं, और एआई टूल्स की मदद से घिब्ली-स्टाइल की इमेज बना रहे हैं।

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दोहरे मापदंड! कर्मचारी परेशान, सांसद मालामाल

महंगाई में पिसते कर्मचारी, राहत में नहाते सांसद: 2% बनाम 24% का गणित!
सरकार ने जहां सरकारी कर्मचारियों के महंगाई भत्ते (DA) में मात्र 2% की वृद्धि की, वहीं सांसदों के भत्तों और वेतन में 24% की बढ़ोतरी कर दी। यह विरोधाभास कर्मचारियों और जनता में नाराजगी पैदा कर रहा है। कर्मचारियों के लिए 2% DA वृद्धि ऊंट के मुंह में जीरा समान। सांसदों को पहले से ही कई सुविधाएँ मिलती हैं, फिर भी वेतन में बड़ी बढ़ोतरी। सरकार जब आम जनता की राहत की बात आती है, तो “बजट की कमी” बताती है, लेकिन सांसदों के लिए खजाना खुला रहता है।
देश में महंगाई की मार लगातार बढ़ रही है। सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं, पेट्रोल-डीजल की कीमतें जेब हल्की कर रही हैं और आम आदमी सोच रहा है कि “अगली सैलरी आएगी तो कौन-कौन से खर्चे टालने पड़ेंगे?” लेकिन इस बीच सरकार ने दो अलग-अलग वर्गों के लिए दो अलग-अलग राहत पैकेज जारी कर दिए— सरकारी कर्मचारियों के लिए महज 2% महंगाई भत्ता (DA) बढ़ाया गया। सांसदों के भत्तों और वेतन में 24% की बढ़ोतरी की गई।

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समरथ को नहीं दोष गोसाईं

गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण के बालकाण्ड में यह चौपाई लिखी थी।
सुभ अरु असुर सलिल सब बहई।
सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई।।
समरथ कहुँ नहीं दोष गोसाईं।
रवि पावक सुरसरि को नाईं।।
अर्थात, गंगा जी का जल निर्मल है, इसमें शुभ और अशुभ सभी जल बहता है, पर कोई उन्हें अपवित्र नहीं कह सकता। सूर्य, अग्नि और गंगा जी की भांति समर्थ को कोई दोष नहीं लगता।
गोस्वामी तुलसीदास ने भले ही यह चौपाई 500 वर्ष पूर्व लिखी हो, किन्तु आज भी शब्दशरू लागू होती है। आज भी समाज में ऐसे समर्थ और सक्षम हैं, जिनकी मनमानी पर भी समाज अपनी आंख मूंद लेना बेहतर समझता है। दबंग बदमाशों से लेकर नेता तक इसी श्रेणी में आते हैं। एक श्रेणी और भी है, कानून प्रदत्त शक्तियों का दुरूपयोग करने वाली श्रेणी। अदालतें स्वयं समय – समय पर इस बारे में चिंता जता चुकी हैं। तमाम उदाहरण आ चुके हैं कि किस तरह से चुनिंदा लोग कानून का दुरूपयोग करते हैं।
ऐसे ही कानून प्रदत्त शक्तियों का दुरूपयोग करने का उदाहरण है महिलाओं द्वारा कमाने में सक्षम एवं समर्थ होने के बावजूद अलग होने पर पति से गुजारा भत्ता मांगना। यदि कानून की नज़र में महिला पुरुष में कोई भेदभाव नहीं है तो गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी पति की ही क्यों होनी चाहिए? क्या अदालत ने कभी ऐसा फैसला सुनाया है, जिसमें सक्षम पत्नी को आदेश दिया गया हो कि वह अपने पति को गुजारा भत्ता दे? इसके विपरीत, पति को गुजारा भत्ता देने के लिए मजदूरी करने की सलाह भी अदालतें दे चुकी हैं। यह कहाँ का न्याय हुआ?
ऐसे ही एक केस की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि कमाने की क्षमता रखने वाली योग्य महिलाओं को अपने पतियों से अंतरिम गुजारा भत्ता की मांग नहीं करनी चाहिए।
मामला यह था कि एक महिला ने अलग होने के बाद अपने पति से अंतरिम भरण पोषण की मांग की थी, जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया था। उसने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी।

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सुनहरा लम्हा : धरती पर लौटीं सुनीता विलियम्स

सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की धरती पर सुरक्षित वापसी एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि मानी जा रही है। वे जून 2024 में बोइंग के “स्टारलाइनर” मिशन के तहत अंतरिक्ष गए थे, लेकिन तकनीकी खामियों के चलते उनकी वापसी में नौ महीने की देरी हुई। इस कारण वे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर लंबे समय तक रुके रहे। यह मिशन न केवल तकनीकी दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण था, बल्कि अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के प्रभावों को समझने में भी सहायक होगा। उनकी सुरक्षित वापसी से भविष्य में अंतरिक्ष अभियानों के लिए नई संभावनाएँ खुलेंगी। इससे नासा और बोइंग को स्टारलाइनर की खामियों को सुधारने का मौका मिलेगा। उनके अनुभव और उपलब्धियाँ न केवल अंतरिक्ष क्षेत्र बल्कि विज्ञान और तकनीक में रुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा हैं। उनकी कहानी यह संदेश देती है कि सीमाएँ केवल मानसिकता में होती हैं और यदि कोई लक्ष्य निर्धारित किया जाए, तो उसे प्राप्त किया जा सकता है।

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रुपये (₹) के चिह्न को लेकर विवाद: भाषा का सम्मान या राजनीति का हथकंडा?

केवल वाद विवाद से हल नहीं निकलेगा। संविधान में ये कानून होना चाहिए कि कोई भी राज्य या राज्य सरकार राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग की जाने वाली या मानी जाने वाली वस्तुओं पर अपने से निजी परिवर्तन नहीं कर सकती। ऐसा किया जाना देश द्रोह माना जाए और ज़िम्मेदार व्यक्ति को पदच्युत किया जाए। रुपये (₹) के चिह्न को लेकर विवाद सिर्फ़ भाषा और सांस्कृतिक पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ा राजनीतिक खेल भी दिखाई देता है। क्षेत्रीय दल, विशेष रूप से द्रविड़ मुनेत्र कषगम, इस मुद्दे को उठाकर न केवल तमिल अस्मिता को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि केंद्र सरकार की भाषा नीति और हिन्दी वर्चस्व के खिलाफ अपने पारंपरिक रुख को भी आगे बढ़ा रहे हैं।

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ठगा हुआ मानव

लेकर अभिलाषाएं अनंत यहां,
कर लिया दुर्लभ जीवन यहां।
मन मूक मुद्रा लेकर जहां,
मन ठगा हुआ मानव है यहां।
आशा अभिलाषा में बंधा हुआ,
जाने वह विस्मित कहां हुआ।

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