Tuesday, March 19, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार

लेख/विचार

क्यों महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आज भी संघर्ष कर रही हैं?

जिस दिन किसी भी क्षेत्र में आवेदक अथवा कर्मचारी को उसकी योग्यता के दम पर आंका जाएगा ना कि उसके महिला या पुरुष होने के आधार पर, तभी सही मायनों में हम महिला दिवस जैसे आयोजनों के प्रयोजन को सिद्ध कर पाएंगे।
ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में मानव के रूप में जन्म लेना एक दुर्लभ सौभाग्य की बात होती है। और जब वो जन्म एक स्त्री के रूप में मिलता है तो वो परमसौभाग्य का विषय होता है। क्योंकि स्त्री ईश्वर की सबसे खूबसूरत वो कलाकृति है जिसे उसने सृजन करने की पात्रता दी है।
सनातन संस्कृति के अनुसार संसार के हर जीव की भांति स्त्री और पुरुष दोनों में ही ईश्वर का अंश होता है लेकिन स्त्री को उसने कुछ विशेष गुणों से नवाजा है। यह गुण उसमें नैसर्गिक रूप से पाए जाते हैं जैसे सहनशीलता, कोमलता, प्रेम,त्याग, बलिदान ममता। यह स्त्री में पाए जाने वाले गुणों की ही महिमा होती है कि अगर किसी पुरुष में स्त्री के गुण प्रवेश करते हैं तो वो देवत्व को प्राप्त होता है लेकिन अगर किसी स्त्री में पुरुषों के गुण प्रवेश करते हैं तो वो दुर्गा का अवतार चंडी का रूप धर लेती है जो विध्वंसकारी होता है। किंतु वही स्त्री अपने स्त्रियोचित नैसर्गिक गुणों के साथ एक गृहलक्ष्मी के रूप में आनपूर्णा और एक माँ के रूप में ईश्वर स्वरूपा बन जाती है।
देखा जाए तो इस सृष्टि के क्रम को आगे बढाने की प्रक्रिया में जो जिम्मेदारियां ईश्वर ने एक स्त्री को सौंपी हैं उनके लिए एक नारी में इन गुणों का होना आवश्यक भी है। लेकिन इसके साथ ही हमारी सनातन संस्कृति में शिव का अर्धनारीश्वर रूप हमें यह भी बताता है कि स्त्री और पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं प्रतिद्वंद्वी नहीं और स्त्री के ये गुण उसकी शक्ति हैं कमजोरी नहीं।

Read More »

भारतीय नारी के उत्पीड़न का समाधान

हर साल वूमेन डे पर स्त्री विमर्श लिखते हुए सोचती हूॅं अगले साल स्त्री स्वतंत्रता पर लिखूॅंगी। लेकिन विमर्श का समाधान होता ही नहीं और अगले साल भी वही प्रताड़ना का मंज़र पन्नों पर उकेरना पड़ता है। जानें कब करवट लेगी ज़िंदगी कमज़ोर शब्द से उलझते थकी महिलाओं की, सदियों से चले आ रहे स्त्री विमर्श पर अब तो पटापेक्ष हो।
‘उत्पीड़न की आदी मत बन पहचान अपनी शख़्सियत को, ए नारी तू संपूर्ण अधिकारी है खुलवा सारी वसीयत को’
भले ही आज हम खुद को खुले विचारों वाले आधुनिक समाज का हिस्सा समझे पर साहित्य के पन्नों को ‘स्त्री विमर्श’ विषय शायद बहुत पसंद है, तभी तो सदियों से चली आ रही पितृसत्तात्मक मानसिकता के चलते आज भी कहीं न कहीं महिलाएँ उत्पीड़न का शिकार होती रहती है। क्यूँ कोई इस विषय वस्तु के समापन और समाधान की दिशा में कदम नहीं बढ़ाता।
आने वाली आधुनिक पीढ़ी की लड़कियाँ याद रखो। महिलाओं के त्याग, हुनर, सहनशीलता और समझदारी को याद रखना परिवार, समाज और इतिहास ने कभी न जरूरी समझा है, न कभी समझेगा। ‘निगरानी, दमन, बंदिशें या असमानता की चक्की में पीसते सदियों से स्त्री कमज़ोर ही कहलाई है।’
लड़कियाँ अपना कर्तव्य निभाते परिवार के लिए ज़िंदगी खर्च करते लड़की से औरत बन जाती है।

Read More »

विकास की बदलती तस्वीर में महिलाओं की भागीदारी

भारत एक सम्पन्न परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों से समृद्ध देश है, जहां महिलाओं का समाज में प्रमुख स्थान रहा है। ग्रामीण परिदृश्य में महिलाओं की बड़ी आबादी है। आजादी के बाद महिलाओं का समाज में सम्मान बढ़ा, लेकिन उनके सशक्तिकरण की गति दशकों तक धीमी रही। गरीबी व निरक्षरता महिलाओं की प्रगति में गंभीर बाधा रही हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल के माध्यम से महिलाओं को व्यवसाय की ओर प्रोत्साहित कर इन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ किया जा सकता है। विशेषकर कृषि प्रसंस्करण उद्योगों, बैंकिंग सेवाओं और डिजिटलीकरण की सहायता से महिलाओं के सामाजिक और वित्तीय सशक्तिकरण की शुरुआत की जा सकती है।
भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता, जीवन्त उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में “हमारे लिए महिलाएं न केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रौशनी की लौ भी हैं”। अनादि काल से ही महिलाएं मानवता की प्रेरणा का स्रोत रही हैं। मदर टेरेसा से लेकर भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले तक, महिलाओं ने बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव के बडे़ उदाहरण स्थापित किए है।
एक समय था जब महिलाएँ चार दिवारी तक सिमित थी, घर परिवारों के दायित्वों के इर्दगिर्द सारा जीवन निर्वाह हो जाता था। समय एवं परिस्थिति के अनुसार आज यह परिवेश में काफी बदलाव आया है। आजादी के बाद महिलाओं की शिक्षा के साथ-साथ रोजगार, राजनीति, आदि में सहभागिता ने देश विकास को एक धुरी प्रदान की है।
महिलाओं में जन्मजात नेतृत्व गुण समाज के लिए संपत्ति हैं। “जब एक आदमी को शिक्षित होता हैं, तो वह एक आदमी शिक्षित होता है हैं परन्तु जब एक महिला को शिक्षित होती है तो मान लीजिये एक पीढ़ी शिक्षित होती हैं”। भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धि से भरा पड़ा है।

Read More »

लैंगिक समानता का मूल चिंतन

ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में मानव के रूप में जन्म लेना एक दुर्लभ सौभाग्य की बात होती है और जब वो जन्म एक स्त्री के रूप में मिलता है तोवो परमसौभाग्य का विषय होता है क्योंकि स्त्री ईश्वर की सबसे खूबसूरत वो कलाकृति है जिसे उसने सृजन करने की पात्रता दी है। सनातन संस्कृति के अनुसार संसार के हर जीव की भांति स्त्री और पुरुष दोनों में ही ईश्वर का अंश होता है लेकिन स्त्री को उसने कुछ विशेष गुणों से नवाजा है। यह गुण उसमें नैसर्गिक रूप से पाए जाते हैं जैसे सहनशीलता, कोमलता, प्रेम, त्याग, बलिदान, ममता। यह स्त्री में पाए जाने वाले गुणों की ही महिमा होती है कि अगर किसी पुरुष में स्त्री के गुण प्रवेश करते हैं तो वो देवत्व को प्राप्त होता है लेकिन अगर किसी स्त्री में पुरुषों के गुण प्रवेश करते हैं तो वो दुर्गा का अवतार चंडी का रूप धर लेती है जो विध्वंसकारी होता है। किंतु वही स्त्री अपने स्त्रियोचित नैसर्गिक गुणों के साथ एक गृह लक्ष्मी के रूप में आनपूर्णा और एक माँ के रूप में ईश्वर स्वरूपा बन जाती है।
देखा जाए तो इस सृष्टि के क्रम को आगे बढाने की प्रक्रिया में जो जिम्मेदारियां ईश्वर ने एक स्त्री को सौंपी हैं उनके लिए एक नारी में इन गुणों का होना आवश्यक भी है। लेकिन इसके साथ ही हमारी सनातन संस्कृति में शिव का अर्धनारीश्वर रूप हमें यह भी बताता है कि स्त्री और पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं प्रतिद्वंद्वी नहीं और स्त्री के ये गुण उसकी शक्ति हैं कमजोरी नहीं। भारत तो वो भूमि रही है जहां प्रभु श्री राम ने भी सीता माता की अनुपस्थिति में अश्वमेध यज्ञ उनकी सोने की मूर्ति के साथ किया था। भारत की संस्कृति तो वो है जहाँ कृष्ण भगवान को नन्दलाल कहा जाता था तो वो देवकी नंदन और यशोदा नन्दन भी थे। श्री राम दशरथ नन्दन थे तो कौशल्या नन्दन होने के साथ साथ सियावर भी थे। भारत तो वो राष्ट्र रहा है जहाँ मैत्रैयी गार्गी इंद्राणी लोपमुद्रा जैसी वेद मंत्र दृष्टा विदुषी महिलाएं थीं तो कैकई जैसी रानीयां भी थी जो युद्ध में राजा दशरथ की सारथी ही नहीं थीं बल्कि युद्ध में राजा दशरथ के घायल होने की अवस्था में उनकी प्राण रक्षक भी बनीं। लेकिन इसे क्या कहा जाए कि स्त्री शक्ति के ऐसे गौरवशाली सांस्कृतिक अतीत के बावजूद वर्तमान भारत में महिलाओं को सामाजिक रूप सशक्त करने की दिशा में सरकारों को महिला दिवस मनाने जैसे विभिन्न प्रयास करने पढ़ रहे हैं।

Read More »

विश्व वन्यजीव दिवस (3 मार्च) पर विशेष

पर्यावरण संतुलन के लिए बेहद जरूरी है वन्य जीवों का संरक्षण
वन्य जीव हमारी धरती के अभिन्न अंग हैं लेकिन अपने निहित स्वार्थों तथा विकास के नाम पर मनुष्य ने उनके प्राकृतिक आवासों को बेदर्दी से उजाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई है और वनस्पतियों का भी सफाया किया है। धरती पर अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए मनुष्य को प्रकृति प्रदत्त उन सभी चीजों का आपसी संतुलन बनाए रखने की जरूरत होती है, जो उसे प्राकृतिक रूप से मिलती हैं। इसी को पारिस्थितिकी तंत्र या इकोसिस्टम भी कहा जाता है। धरती पर अब वन्य जीवों और दुर्लभ वनस्पतियों की कई प्रजातियों का जीवनचक्र संकट में है। वन्य जीवों की असंख्य प्रजातियां या तो लुप्त हो चुकी हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। पर्यावरणीय संकट के चलते जहां दुनियाभर में जीवों की अनेक प्रजातियों के लुप्त होने से वन्य जीवों की विविधता का बड़े स्तर पर सफाया हुआ है, वहीं हजारों प्रजातियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वन्य जीव-जंतु और उनकी विविधता धरती पर अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के सतत् विकास की प्रक्रिया का आधार रहे हैं। वन्य जीवों में ऐसी वनस्पति और जीव-जंतु सम्मिलित होते हैं, जिनका पालन-पोषण मनुष्यों द्वारा नहीं किया जाता।

Read More »

बसन्त

लो बसंत फिर से आया,
सज गई फूलों से हर डाली।
बह रही सुगंध लेकर हवा,
ये कूक रही कोयल काली।
धरती ओढ़ सतरंग चुनरिया,
लहराती खेतों में हरियाली।
मधु मस्त हो रहा है भंवरा,
रंग मोह में फंसी है तितली।
सज गए बौर से पेड़ यहां,
लग गई है बेर झरबैली।
महके पुष्प बेला, गेंदा,
जुगनू से रोशन रात रानी।
कामदेव ने रची कामना,
जीवन में भर गई खुशहाली।
बसंत पंचमी ऋतुराज बना,
बन गई “नाज़” भी ऋतु रानी।

Read More »

विंशति-भुजा चक्रेश्वरी शासनदेवी की अनोखी मूर्ति

हिंदू एवं बौद्ध धर्म की भांति ही जैन धर्म में भी विभिन्न देवी एवं देवताओं का उल्लेख आता है। इन देवी एवं देवताओं को अधिष्टायिका देव-देवी, यक्ष-यक्षिणी व शासन देव-देवी आदि नामों से जाना जाता है। जैन ग्रन्थों में उल्लेखित प्रत्येक चौबीस तीर्थंकरों के अलग-अलग शासन देव और शासन देवियां होती हैं। जैन आगम के अनुसार प्रत्येक तीर्थंकर के समवशरण के उपरांत इन्द्र द्वारा प्रत्येक तीर्थंकर के सेवक देवों के रूप में एक यक्ष-यक्षिणी को नियुक्त किया गया है। हरिवंश पुराण के अनुसार इन शासन देव-देवीयों के प्रभाव से शुभ कार्यों में बाधा डालने वाली शक्तियाँ समाप्त हो जाती हैं।

Read More »

ड्रोन खरीद से मजबूत होगी समुद्री सुरक्षा

इस माह की शुरुआत में अमेरिका ने 3.99 अरब अमेरिकी डॉलर की अनुमानित लागत पर भारत को 31 एमक्यू-9 बी सशस्त्र ड्रोन की बिक्री को मंजूरी प्रदान कर दी। इस सौदे से भारत की समुद्री सुरक्षा और समुद्री जागरुकता बढ़ेगी। इससे समुद्री मार्गों में मानवरहित निगरानी व टोही गश्त के जरिए वर्तमान एवं भविष्य के खतरों से निपटने के लिए भारत की क्षमता में बढ़ोत्तरी हो जाएगी। समुद्री क्षेत्र में जागरुकता क्षमता का मतलब है कि समुद्री क्षेत्र से जुड़ी ऐसी हर बात को लेकर जागरुक होना जो सुरक्षा, अर्थव्यवस्था या पर्यावरण को प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा इस बिक्री से अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक संबंधों को भी मजबूती मिलेगी। साथ ही हिन्द-प्रशांत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में आर्थिक प्रगति का नया मार्ग प्रषस्त होगा। सशस्त्र ड्रोन सौदे से सैन्य सहयोग और द्विपक्षीय रणनीतिक प्रौद्योगिकी सहयोग के आगे बढ़ने की प्रबल संभावनाएं बन गई हैं। इस ड्रोन सौदे की घोषणा जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ऐतिहासिक अमेरिका की राजकीय यात्रा के दौरान की गई थी।
अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स से जिस मानवरहित प्रीडेटर ड्रोन एमक्यू-9 बी की खरीदारी पर मंजूरी मिली है वह संसार का सबसे उन्नत श्रेणी का ड्रोन है। इस मानव रहित प्रीडेटर ड्रोन एमक्यू-9 बी के दो वर्जन हैं। पहला स्काई गार्डियन और दूसरी सी गार्डियन। एमक्यू-9 बी, सी गार्डियन ड्रोन तीनों सेनाओं के लिए खरीदे जा रहे हैं। अमेरिका से लिए जाने वाले इन 31 ड्रोन में से 15 ड्रोन नौसेना को तथा आठ-आठ ड्रोन सेना व वायु सेना को दिए जाएंगे। सेनाएं एमक्यू-9 बी ड्रोन का उपयोग निगरानी एवं आक्रमण के लिए कर सकती हैं। इसके अलावा भी ये ड्रोन अन्य कई तरह की यौद्धिक भूमिकाएं निभा सकते हैं। इस मानवरहित प्रीडेटर ड्रोन ने अपनी पहली उड़ान दो फरवरी 2001 को भरी थी। यह ड्रोन थर्माेग्राफिक कैमरे और सेंसर से लैस है।

Read More »

धर्म को पहना दिया गया लोकतंत्र का जामा !

जहां तक मैं देखती हूं और महसूस करती हूं कि दुनिया भर में धार्मिक कट्टरवाद हावी है और आज धर्म को ही लोकतंत्र का जामा पहना दिया गया है और लोग भी उसी की रोशनी में अंधे हो रहे हैं जबकि धर्म और राजनीति दोनों अलग – अलग बातें हैं। किसी भी परंपरा को निभाना धर्म नहीं है (टोपी, जनेऊ, चोटी, दाढ़ी) मानवता और व्यक्ति का मानसिक और चारित्रिक विकास ही धर्म है। लगभग सभी धर्म एक ईश्वरी शक्ति को मानते हैं, जिसने इस सृष्टि की रचना की है।
संत कबीर दास पाखंड का मजाक उड़ाते हुये कहते हैं, ‘‘चढ़ मुल्ला जा बांग दे क्या बहरा भयो खुदाय, ….बार बार के मूढ़ते भेड़ ना बैकुंठ जाये।’’ कबीर की परिभाषा में अजान पुकारना और सिर मुड़ाना धर्म नहीं है और ‘गीता’ में तो ‘कर्तव्य’ को ही धर्म माना गया है। जब ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं तब भी हम पाखंड को महत्व देते हैं। लोकतंत्र धर्म से जुदा एक अलग व्यवस्था है जो जनता के द्वारा जनता के लिए निर्धारित की जाती है।
जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि देश की व्यवस्था संभालता है लेकिन आज के बदलते हुए परिदृश्य में राजनीति को और भी ज्यादा मुश्किल बना दिया गया है जिसमें वैचारिकता नगण्य होकर ओछेपन की सीमाएं लांघ रहीं है।
सत्ता में बने रहने की हवस अब भाषा की मर्यादा भी खत्म कर रही है। राजनीति में वैचारिक मतभेद हमेशा से रहे लेकिन एक दूसरे के सम्मान का ध्यान रखा जाता था साथ ही भाषा की मर्यादा का मान भी रखा जाता था। वैचारिक मतभेदों की बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे देश की अखंडता दिखाई देती थी। आज के इस बदले हुए माहौल में ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जो लोगों को दिखाई भी देते हैं और समझ में भी आते हैं लेकिन मीडिया दिखाती नहीं या फिर लोग नजरअंदाज कर देते हैं।
आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए चुनौतियाँ बढ़ते जा रही है।

Read More »

प्रकृति में रंग भरती मोहित बंसल की बोलती पेंटिंग

कला का एक टुकड़ा किसी की रचनात्मकता को व्यक्त करता है। वह उसकी भावनाओं और विचारों का भी खुलासा करता है। कला के ये टुकड़े कहानियां कहते हैं। कला की प्रसांगिकता बनी हुई है तो इसलिए भी कि यह अपनी भावनायें व्यक्त करने का और रचनात्मक तरीका है। यह तनाव मुक्त करने का एक खामोश जरिया भी है। पेंटिंग के अनेक विषय हो सकते हैं उनमें प्रकृति से जुडी कलायें दृऔर काम आपको सर्वाधिक खींचती हैं। दर्शकों की यही चाहत कलाकर को और बेहतर करने को प्रेरित करती है।
युवा कलाकार मोहित बंसल की प्रकृति से जुड़ी पेंटिग्स आपको सुकुन देती है। उनकी रोमांचित करने वाली हैं।वह आपको अपनी तरफ खींचती है। एक कलाकार की यह चाहत होती है। प्रकृति से ही जीवन मिलता है । मोहित कहते हैं- वायल दृतैल्य माध्यम से बनी मेरी पेंटिग्स में नदियां, समुद्र , पहाड़ और पेड़-पौधे और प्रकृति की छाया की प्रमुखता ।
पिछले दिनो राजधानी दिल्ली में द हार्ट आफ आर्ट द्वारा देश व्यापी सतर पर आयोजित तीन दिवसीय पेंटिंग्स -कला प्रर्दशनी में देश भर के जिन दो सौ से अधिक कलाकारों ने भाग लिया उनमें मोहित बंसल की पेंटिंग भी थी। हालांकि इनमें खासकर युवा और मध्य आयु के कलाकार थे। अनेक नवोदित कलाकारों ने भी पेंटिग्स के जरिए अपनी रचनात्मक काम को भी दर्शकों की भारी भीड़ के सामने पेश की थी। पेश से प्राध्योगिकी इंजीनियर मोहित की पेंटिंग प्रदर्शनी परिषर में आकर्षण और कौतुहल के केंद्र में था। दर्शको की जिज्ञांसा से वह बहुत प्रसन्न हैं।
प्रकृति, व्यापक अर्थ में, प्राकृतिक दुनिया, भौतिक ब्रह्मांड, भौतिक दुनिया या भौतिक ब्रह्मांड के बराबर है। ष्प्रकृतिष् का तात्पर्य भौतिक संसार की घटनाओं से है, और सामान्य रूप से जीवन से भी है। प्रकृति हमारे चारों ओर और हमारे भीतर गहराई में मौजूद है। हम प्रकृति से अविभाज्य हैं – हमारे शरीर, जीवन और दिमाग उस हवा पर निर्भर करते हैं जिसमें हम सांस लेते हैं। पृथ्वी हमारी जीवन शक्ति को कायम रखती है। पृथ्वी के बिना – प्रकृति के बिना – हम क्या होंगे? युवा कलाकार की यह टिप्पणी खासे माने इसलिए भी रखते हैं क्योंकि तपकी धरती , कोयला उत्सर्जन और वायुप्रर्दूषण विषयों पर दुनिया के देश विमर्श कर रहें हैं। मोहित इनमें एक एक प्तनिधि सरीखे हैं जो प्रृति की पीड़ा को अपने ब्रश से पेश कर रहे हैं।
मोहित कहतें हैं प्रकृति पर आधारित कलाकृति कई रूप ले सकती है और कई उद्देश्यों की पूर्ति कर सकती है। क्योंकि ‘प्रकृति’ एक ऐसा विशाल विषय है जिसमें बहुत सारी चीज़ें शामिल हैं। प्रकृतिष् का तात्पर्य भौतिक संसार की घटनाओं से है, और सामान्य रूप से जीवन से भी है।

Read More »