Saturday, April 27, 2024
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होम्योपैथीः विज्ञान और स्वास्थ्य का संगम

होम्योपैथी, आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक अद्वितीय स्थान रखती है। यह चिकित्सा पद्धति न केवल विज्ञानिक शोधों पर आधारित है, बल्कि प्राकृतिक और वैज्ञानिक सिद्धांतों पर भी आधारित है। होम्योपैथी का मूल मंत्र ‘समीलिया समीलिबस क्यूरेंटर’ है, जिसका अर्थ है ‘जैसा रोग, वैसा उपचार’। इस आधार पर, होम्योपैथी चिकित्सक रोगी के लक्षणों को ध्यान में रखते हुए उपचार करता है।
विज्ञानिक अनुसंधान और होम्योपैथी: होम्योपैथी का विज्ञानिक अनुसंधान उसकी महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके पीछे विज्ञानिक और शोधात्मक दृष्टिकोण होता है जो न केवल उपचारों की प्रभावकारिता को बढ़ाता है, बल्कि उसकी समीक्षा करता है और बेहतर उपचारों की खोज करता है। नए और प्रभावी उपचारों के विकास में विज्ञान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
होम्योपैथी और सामाजिक स्वास्थ्य: होम्योपैथी न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज के स्वास्थ्य के लिए भी। इसका उपयोग सामाजिक स्वास्थ्य के संरक्षण में और ज्ञान के साथ सामाजिक परिवार और समाज को जोड़ने में किया जा सकता है।
होम्योपैथी की गहराई में जानें: होम्योपैथी एक अद्वितीय चिकित्सा पद्धति है जो विज्ञान, प्राकृतिक उपाय, और सामाजिक संपर्क का संगम है।

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गर्मी से लड़ने की बारी, कैसे करें तैयारी

गर्मी की शुरुआत हो चुकी है। पारा धीरे धीरे अपना स्तर बढ़ा रहा है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम भी अपने शरीर की सुरक्षा और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सतर्कता बरतें। ठण्ड के मौसम के बाद बढ़ती गर्मी बदलते मौसम के साथ साथ कई ऐसी बीमारिया भी दस्तक देती हैं जो हमारी दिनचर्या को प्रभावित कर देती हैं। गर्मी के मौसम में सेहत को लेकर कई तरह की चुनौतियां होती हैं। तेज धूप और गर्म हवा से स्किन का बुरा हाल तो होता ही है साथ में डिहाइड्रेशन, उल्टी, दस्त जैसी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।
दरअसल कुछ ऐसी बीमारियां होती हैं जो मौसम के बदलने से होती हैं जैसे सर्दियों में फ्लू, कोल्ड-कफ सामान्य हैं। मानसून आते ही डेंगू, मलेरिया आदि बीमारियां होती। गर्मियों में डायरिया, फूड पॉइजनिंग की संभावनाएं बढ़ जाती है। ये बीमारियां वातावरण में जलवायु के परिवर्तन के दौरान संक्रमण काल के कारण वेक्टीरियाओं की सक्रियता से पनपती हैं। ऐसे में मौसम की मार इंसान के लिए मुसीबत का सबब भी बन जाती है।
गर्मियों में हीट स्ट्रोक, हीट रैश, अत्यधिक गर्मी से थकावट, अत्यधिक पसीना, सिर दर्द, चक्कर, हृदय गति तेज होना आदि सामान्य तौर पर देखा जाता है। हिहाइड्रेशन, फूड प्वाइजनिंग, सनबर्न , घमौरी, डायरिया का खतरा बढ़ जाता है। गर्मियों में सबसे बड़ी समस्या आमतौर पर डिहाइड्रेशन है जिसमें हमारे शरीर में पानी का संतुलन बिगड जाता है। शरीर में पानी की कमी और पानी का शरीर से बाहर निकलना बढ़ जाता है – पसीने के रूप में या पेट की खराबी से।
ऐसे में ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

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मानसिक स्वास्थ्य जीवन का सबसे अनदेखा क्षेत्र

अभी कुछ दिन पहले सोनी नाम की पेशेंट मेरे पास क्लीनिक पर आई और फूट-फूट कर रोने लगी। मैं चुपचाप देखती रही और पूछा क्या बात है। कहने लगी आजकल मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता। मैं अपनी 3 साल के बच्चे को बहुत पीटने लगी हूं उसे अपशब्द इस्तेमाल करती हूं। मैंने उसकी सारी बातें सुनी उसने बताया गुस्सा बहुत आ रहा है, किसी चीज में मन नहीं लगता, पूरे बदन में दर्द, बहुत थकान, नींद ना आना और भूख न लगना। दरअसल सोनी मानसिक रूप से अस्वस्थ थी और अवसाद की शिकार हो रही थी। उसको काउंसलिंग और उचित उपचार की जरूरत थी। ऐसे न जाने कितने लोग मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं और हीन भावना से ग्रसित हो रहे हैं। मानव जीवन में मानसिक स्वास्थ्य का बहुत महत्व है पर हम लोग सबसे ज्यादा इसको अनदेखा करते हैं जिस तरह शारीरिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण होता है उसी भांति मानसिक स्वास्थ्य भी। जनवरी माह भारत में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य माह के रूप में मनाया जाता है इसका मुख्य उद्देश्य है मानसिक स्वास्थ्य का जीवन में महत्वत्ता, जागरूकता बढ़ाना और समर्थन प्रदान करना है। इस माह में विभिन्न गतिविधियां आयोजित की जाती है जिसका मुख्य उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य को बेहतरीन दिशा में एक सामूहिक जागरूकता बढ़ाना है।

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स्वस्थ जीवनशैली की ओर बढ़ने के लिए ‘फ्री ज़ुम्बा कैम्प’ का किया आयोजन

कानपुर। संजय वन में ‘एच क्यूब जिम एवं फिटनेस सेन्टर’ के तत्त्वावधान में स्वास्थ्य अभियान के तहत नागरिकों को फिट रखने और उन्हें स्वस्थ जीवनशैली की ओर बढ़ने के लिए एक ‘फ्री ज़ुम्बा कैम्प’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों को बिना किसी शुल्क के, एक स्वस्थ और आनंदमय जीवन जीने के लिए आवश्यक फिटनेस टिप्स दिए गए।
इस कैम्प में मुख्य ज़ुम्बा इंस्ट्रक्टर आशु पांडे ने प्रतिभागियों को जुम्बा कराया। उनके मार्गदर्शन से कैंप में जुंबा इंस्ट्रक्टर डेविड, जिन अनु मिश्रा, निशांत एवं राज गुप्ता ने भी प्रतिभागियों में जानभर कर एक नई ऊर्जा का संचार किया और उन्हें झूमने के लिए प्रेरित किया।
इस अवसर पर मुख्य ट्रेनर आशु पांडे ने कहा यह कैम्प न सिर्फ शारीरिक फिटनेस को प्रमोट करता है बल्कि एक साथ सार्थक संवाद को भी बढ़ावा देता है।
कार्यक्रम आयोजक ‘हेमंत हेल्थ हब जिम एवं फिटनेस सेंटर’ की डायरेक्टर शिवानी पांडे ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि हर व्यक्ति स्वस्थ रहे, और इसलिए हमने यह फ्री ज़ुम्बा कैम्प आयोजित किया है। यह एक ऐसा मौका है जहां लोग एक स्वस्थ जीवन की ओर कदम बढ़ाते हैं।’
कैम्प में शामिल होने वाले लोगों ने इस आयोजन की सराहना की और कहा कि ऐसे पहलुओं की हमेशा जरूरत है।

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भ्रांतियों में न आएं, लाइलाज नहीं टेढ़े पंजे की बीमारी

मथुरा: श्याम बिहारी भार्गव। कई बच्चों का जन्म टेढ़े पंजे के साथ होता है और यह जीवन भर के लिए अभिशाप बन जाता है। लोगों में इस बीमारी को लेकर आज भी तरह तरह की भ्रांतियां हैं। लोग इलाज नहीं कराते, ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इस बीमारी को दैवीय प्रकोप अथवा लाइलाज माना जाता है। जिला चिकित्सालय में इस बीमारी का निः शुल्क इलाज उपलब्ध है। प्राइवेट अस्पतालों में भी इलाज है लेकिन बहुत महंगा है। अनुष्का फाउंडेशन के सहयोग से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के साथ मिल कर प्रदेशभर में एक अभियान चलाया जा रहा है। फाउंडेशन की ओर से मथुरा और अलीगढ़ जनपद में इस जिम्मेदारी को निभा रहे मोहम्मद ईशान ने बताया कि यह क्लब फुट नामक बीमारी है। यह बच्चे में मां के पेट से ही आती है। इस बीमारी में बच्चे का पंजा अंदर की ओर मुडा होता है। यह जन्मजात बीमारी है और बच्चे में मां के पेट से ही आती है। इसे सीटीईबी भी बोलते हैं, इसका इलाज निःशुल्क किया जा रहा है। इसमें तीन स्टेज होती हैं, पहली स्टेज में प्लास्टर लगाकर बच्चे के पैर को सीधा किया जाता है। दूसरी स्टेज में छोटा सा कट दिया जाता है। उसके बाद बच्चे को पांच साल तक जूता पहनाया जाता है। जिससे कि उसका पैर फिर से न मुड जाए। इस पूरी प्रक्रिया में चार से पांच साल का समय लगता है। इसके बाद बच्चा चल फिर सकता है।

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ट्रैफिक और मानसिक स्वास्थ्य

ट्रैफिक हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। यह अधिकांश शहरी क्षेत्रों में दैनिक जीवन का एक ज़रूरी पहलू है, चाहे वह काम के लिए आना-जाना हो, बच्चों को स्कूल ले जाना हो, ट्रैफिक से निपटना अधिकांश के लिए रोजमर्रा की वास्तविकता है। यातायात के शोर का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
यातायात प्रेरित तनाव केवल जाम में फंसे लोगों के लिए अलग-थलग नहीं है, यह अक्सर जीवन के अन्य क्षेत्रों में फैल सकता है और मनोसामाजिक स्वास्थ्य को खराब कर सकता है।
ट्रैफिक में अधिक समय व्यतीत करने से परिवार के लिए कम समय हो सकता है, कार्यालय, घर, कार्यक्रम या स्थान पर देर से पहुँचना।
ट्रैफिक भीड़भाड़, जोर से हॉर्न बजाना, गलत ओवरटेक, खराब ड्राइविंग स्किल, रोड क्रोध, ओवरस्पीडिंग, रैश ड्राइविंग और अधीरता यात्रियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट ऑफ इंग्लैंड द्वारा किए गए शोध में पाया गया कि शहरी ट्रैफिक जाम के परिणामस्वरूप अक्सर काम पर आने-जाने में लंबा समय लगता है, जिससे नौकरी और जीवन की संतुष्टि कम हो जाती है जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को और खराब कर देती है।

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उपवास सेहत का उपहार : डॉ. अमरीन फातिमा

उपवास सेहत के लिए एक उपहार है क्योंकि उपवास एक सरल और मुफ्त उपचार है । हमारा देश में अनेक त्योहारों पर उपवास रखने का प्रचलन है जैसे नवरात्रि, करवा चौथ, रमजान आदि मौकों पर, लोग उपवास रखकर अपने इस देवता या खुदा के प्रति श्रद्धा दिखाते हैं। उपवास को व्रत और फास्टिंग के नाम से भी जाना जाता है बताइए उपवास का धार्मिक महत्व तो सदा से है किंतु वैज्ञानिकों को ने यह पुष्टि कर दी कि उपवास सेहत के लिए वरदान है और अनेक बीमारियों से मुक्ति दिलाने में बेहद मददगार है ।इन उपवासों से हमारा तन मन स्वस्थ रहता है और डिटॉक्सिफिकेशन होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार उपवास अगर सही तरीके से रहा जाए तो यह हमारे तन, मन को डिटॉक्सिफाई कर संतुलित एवं स्वस्थ एवं स्फूर्तिवान रखता है। अगर आप हफ्ते में सिर्फ एक दिन का उपवास रखें और बाकी दिन अपना खानपान अच्छे से ले तो इससे आप रोग मुक्त और दीर्घायु की चमत्कारी क्षमताएं देखने को मिलेगी।
रूस के साइबेरिया में उपवास द्वारा उपचार की पद्धति का प्रचलन गोर्याचिंस्क नमक अस्पताल में होता है जो की सुरम्य शहर में है वहां दूर-दूर से ऐसे लोगों का उपचार होता है जो आधुनिक महंगी चिकित्सा पद्धति से निराश हो चुके हैं और इस इलाज में जो भी खर्च आता है उसकी सरकार उठती है। उपवास बौद्ध धर्मियों के बहुमत वाले बुर्यातिया की स्वास्थ्य नीति का अभिन्न अंग है।

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मानसिक प्रदूषणः सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग?

बहुत तरह के प्रदूषण की चर्चाएं होती हैं जैसे ध्वनि जल थल वायु आदि किंतु सबसे खतरनाक प्रदूषण का कोई चर्चा का विषय नहीं बनाता यह मानसिक प्रदूषण है।
हर मानव ही मानसिक प्रदूषण से पीड़ित है और समाज में तेजी से इसे फैलाने का योगदान भी निभा रहा है किंतु अनजाने में इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है और इसीलिए यह चर्चा का विषय भी नहीं बन पाता है।
मानसिक प्रदूषण प्राचीन काल से मौजूद है ।मानसिक प्रदूषण पूरी मानव जाति के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह अन्य प्रदूषण का जनक है और इसके दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए मनुष्य को बहुत संयम से काम लेना पड़ेगा, मानसिक प्रदूषण का जन्म होता है इस वाक्य से-
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग ?
क्या कहेंगे लोग इस चक्कर में इंसान इतना मानसिक प्रदूषित हो रहा है और समाज में फैला रहा है।
यह विनाशकारी भावनाएं मनुष्य में मानसिक प्रदूषण का जन्म देती हैं। मानसिक प्रदूषण मानव मन और व्यक्तित्व को हानि पहुंचाने वाली प्रक्रिया को बाधित करता है मन प्रदूषित तो तन,पर्यावरण ,समाज सब धीरे-धीरे प्रदूषित हो जाता है यह विभिन्न तत्वों से उत्पन्न होता है जैसे उदाहरण -अत्याचार, क्रोध, काम, लोभ, ईर्ष्या आदि ।

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विटामिन डी : मानव शरीर में उपयोगिता एवं कमी

विटामिन डी की कमी भारतीयों में तेजी से फैल रही है। आजकल ज्यादातर भारतीयों में विटामिन डी की रक्त में मात्र 5 से नैनोग्राम के बीच पाई जाती है हालांकि इसकी मात्रा 50 से 75 नैनोग्राम के बीच रक्त में होनी चाहिए। यह एक बहुत ही चिंता का विषय है क्योंकि भारत एक ऐसी भौगोलिक स्थिति में है जहां साल भर धूप रहती है। विटामिन डी को सनशाइन विटामिन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका सीधा संबंध धूप से है। विटामिन डी एक वसा में घुलनशील पोषक तत्व है जो कि सूर्य के प्रकाश में संपर्क में आने पर शरीर की चमड़ी में पैदा होता है। विटामिन डी दो प्रकार के होते हैं- D2 और D3. D2 (एग्रोकैसीफेरोल ) यह पौधों से प्राप्त किया जाता है। जिससे पौधे सूर्य की पराबैंगनी किरणों में संपर्क आने के बाद उत्पादन करते हैं। D3 (कालीफेराल ) यह जीव में सूर्य की किरणों के संपर्क में अपनी चमड़ी द्वारा निर्मित करते हैं।
विटामिन डी की कमी एक बेहद गंभीर समस्या है क्योंकि विटामिन डी सिर्फ हड्डियों, दांत और मांसपेशियों के लिए ही आवश्यक नहीं बल्कि शरीर की प्रतिरोधी तंत्र को भी मजबूत करता है। विटामिन डी कमी की वजह से कई अन्य रोग हो सकती हैं जैसे मधुमेह डायबिटीज, हृदय रोग, न्यूरोलॉजिकल बीमारियां, अवसाद, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, गर्भावस्था में जटिलताएं। विटामिन डी की कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं जिस कारण कभी भी फ्रैक्चर हो सकता है और रक्त में कैल्शियम की कमी होने लगती है क्योंकि विटामिन डी की कमी से कैल्शियम सोखने की क्षमता कम हो जाती है।

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मूड स्विंग – मन की मनमानी

⇒आजकल यह मूड स्विंग एक महामारी का रूप लेता जा रहा है।आइए जानते हैं मूड स्विंग क्या होता है ?
खुश होना, फिर पल भर में उदास हो जाना या एक दम से मूड बदल जाना, किसी इंसान की भावनात्मक स्थिति में बदलाव होना, अचानक और बिना किसी वजह मूड खराब हो जाना और उतनी ही जल्दी ठीक भी हो जाना। इसे मूड स्विंग होना कहते हैं। मूड स्विंग का मतलब थोड़े समय के अंदर मूड में जल्दी-जल्दी बदलाव होना होता है. इसको तनाव या चिंता ना समझें, यह बिल्कुल अलग है। मूड स्विंग कोई बाइपोलर डिसऑर्डर नहीं है हालांकि बाइपोलर डिसऑर्डर भी मूड स्विंग में पाये जाते हैं। कहने का तात्पर्य है जब भावनाएं नियंत्रित नहीं रहतीं, हावी होने लगती हैं और उनसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर असर पड़ने लगता है. और साथ ही साथ आपके अपने आसपास के वातावरण में परिवर्तन में भी मूड स्विंग का होना निर्भर करता है। हमारे शरीर में मानसिक तनाव और हार्माेन के बदलाव से भी मूड स्विंग होता है । मूड स्विंग एक बहुत ही चिंता का विषय बनता जा रहा है क्योंकि मूड पर काबू पाना आपकी जिम्मेदारी है। मूड माना आपका है, आप ही इसके शासक हो, आपके कंट्रोल में चीजें होनी ही चाहिए, हालांकि यह बाहरी वातावरण से प्रभावित होता है और पूरी तरह से इस पर निर्भर हो जाना भी गलत है, क्योंकि इससे आपकी निजी ज़िंदगी खराब हो सकती है।

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