Monday, April 21, 2025
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माहवारी प्रबंधन एवं हेल्थ हाइजीन पर कार्यशाला हुई संपन्न

फिरोजाबाद: जन सामना संवाददाता। सरोजिनी नायडू विद्यालय की छात्राओं को माहवारी प्रबंधन, हेल्थ एवं हाइजीन के साथ ही हाथ धोने के तरीके को लेकर एक कार्यशाला का आयोजन प्रमुख स्वयंसेवी संस्था चाइल्ड फंड इंडिया पेस दिशा के द्वारा किया गया।
इस अवसर पर दिशा संस्था की हेल्थ कोऑर्डिनेटर नीतू सिंह ने बालक-बालिकाओं को हाथ धोने का डेमो दिखाने के साथ ही किशोरियों को माहवारी प्रबंधन, हेल्थ एवं हाइजीन के बारे में विस्तार पूर्वक अवगत कराया। साथ ही स्वच्छता के प्रति जागरूकता वाले पत्रक भी वितरित किए गए। कार्यक्रम में किशोरियों के परिवार की महिलाओं को भी प्रशिक्षित किया गया, ताकि घर में जाकर भी स्वच्छता को अपने जीवन में अपना सकें।

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स्वस्थ समाज के लिए मानसिक विकारों से छुटकारा जरूरी है : डॉ अमरीन

कानपुरः स्वप्निल तिवारी/अखिलेश सिंह। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर कानपुर प्रेस क्लब में एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सल रिलीफ ऐड (AURA) ट्रस्ट की संस्थापक डॉ0 अमरीन फातिमा ने प्रेसवार्ता करते हुए बताया, ‘‘ AURA ट्रस्ट के बैनर तले ट्रस्ट के सदस्यों के सहयोग से जमीनी स्तर पर कार्य किया जा रहा है। अनेक बच्चों को नशे की लत से छुटकारा दिलाया गया है और निरन्तर छुटकारा दिलाया जा रहा है। इसके साथ ही कई लोगों को मानसिक विकारों से उबारने का काम किया है।’’
डॉ0 फातिमा ने यह भी बताया कि संस्था का उद्देश्य है कि लोगों के बेहतर जीवन के लिए कार्य करना है। इस मौके पर उन्होंने लोगों से अपील की कि अगर किसी को मानसिक स्वास्थ्य की समस्या है तो वह कभी भी मुझसे या ट्रस्ट के सदस्यों से सम्पर्क कर सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि लोगो को अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए। भावनात्मक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संतुलन बनाये रखना चाहिए, क्योंकि आत्महत्या का एक कारण यह भी है। आये दिन देखने को मिल रहा है कि मानसिक अस्वस्थता के चलते लोग आत्महत्यायें कर रहे हैं।

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विश्व रोगी सुरक्षा दिवस: रोगी की सुरक्षा की सर्वाेपरि

विश्व रोगी सुरक्षा दिवस हर साल 17 सितम्बर को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य रोगियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए चिकित्सा क्षेत्र में जागरूकता बढ़ाना है। इस अवसर पर, AURA ट्रस्ट की संस्थापक डॉ. अमरीन फातिमा (गोल्ड मेडलिस्ट एमडी मेडिसिन लंदन , एमएसयू ) ने चिकित्सा लापरवाही और रोगियों की जागरूकता पर जोर दिया। उनके अनुसार, एक रोगी को अपने इलाज के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि वह सही निर्णय ले सके और किसी भी संभावित लापरवाही का शिकार न हो।
चिकित्सा लापरवाहीः एक गंभीर समस्या
चिकित्सा लापरवाही एक ऐसा मुद्दा है जो मरीजों के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। कई बार, दवाओं का गलत उपयोग, सर्जरी के दौरान की गई गलतियाँ या उपचार प्रक्रिया में हुई त्रुटियों के कारण मरीजों की जान तक चली जाती है। डॉ. अमरीन फातिमा के अनुसार, इन घटनाओं से बचने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका रोगियों और चिकित्सा कर्मचारियों के बीच संचार में पारदर्शिता है।
रोगी की जानकारी और जागरूकता
एक रोगी को अपने उपचार के बारे में निम्नलिखित महत्वपूर्ण जानकारी होनी चाहिएः-
1. रोग का सही निदानः मरीज को यह जानना चाहिए कि उन्हें कौन सी बीमारी है, इसकी गंभीरता क्या है, और यह कैसे फैल रही है।

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होम्योपैथीः विज्ञान और स्वास्थ्य का संगम

होम्योपैथी, आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक अद्वितीय स्थान रखती है। यह चिकित्सा पद्धति न केवल विज्ञानिक शोधों पर आधारित है, बल्कि प्राकृतिक और वैज्ञानिक सिद्धांतों पर भी आधारित है। होम्योपैथी का मूल मंत्र ‘समीलिया समीलिबस क्यूरेंटर’ है, जिसका अर्थ है ‘जैसा रोग, वैसा उपचार’। इस आधार पर, होम्योपैथी चिकित्सक रोगी के लक्षणों को ध्यान में रखते हुए उपचार करता है।
विज्ञानिक अनुसंधान और होम्योपैथी: होम्योपैथी का विज्ञानिक अनुसंधान उसकी महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके पीछे विज्ञानिक और शोधात्मक दृष्टिकोण होता है जो न केवल उपचारों की प्रभावकारिता को बढ़ाता है, बल्कि उसकी समीक्षा करता है और बेहतर उपचारों की खोज करता है। नए और प्रभावी उपचारों के विकास में विज्ञान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
होम्योपैथी और सामाजिक स्वास्थ्य: होम्योपैथी न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज के स्वास्थ्य के लिए भी। इसका उपयोग सामाजिक स्वास्थ्य के संरक्षण में और ज्ञान के साथ सामाजिक परिवार और समाज को जोड़ने में किया जा सकता है।
होम्योपैथी की गहराई में जानें: होम्योपैथी एक अद्वितीय चिकित्सा पद्धति है जो विज्ञान, प्राकृतिक उपाय, और सामाजिक संपर्क का संगम है।

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गर्मी से लड़ने की बारी, कैसे करें तैयारी

गर्मी की शुरुआत हो चुकी है। पारा धीरे धीरे अपना स्तर बढ़ा रहा है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम भी अपने शरीर की सुरक्षा और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सतर्कता बरतें। ठण्ड के मौसम के बाद बढ़ती गर्मी बदलते मौसम के साथ साथ कई ऐसी बीमारिया भी दस्तक देती हैं जो हमारी दिनचर्या को प्रभावित कर देती हैं। गर्मी के मौसम में सेहत को लेकर कई तरह की चुनौतियां होती हैं। तेज धूप और गर्म हवा से स्किन का बुरा हाल तो होता ही है साथ में डिहाइड्रेशन, उल्टी, दस्त जैसी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।
दरअसल कुछ ऐसी बीमारियां होती हैं जो मौसम के बदलने से होती हैं जैसे सर्दियों में फ्लू, कोल्ड-कफ सामान्य हैं। मानसून आते ही डेंगू, मलेरिया आदि बीमारियां होती। गर्मियों में डायरिया, फूड पॉइजनिंग की संभावनाएं बढ़ जाती है। ये बीमारियां वातावरण में जलवायु के परिवर्तन के दौरान संक्रमण काल के कारण वेक्टीरियाओं की सक्रियता से पनपती हैं। ऐसे में मौसम की मार इंसान के लिए मुसीबत का सबब भी बन जाती है।
गर्मियों में हीट स्ट्रोक, हीट रैश, अत्यधिक गर्मी से थकावट, अत्यधिक पसीना, सिर दर्द, चक्कर, हृदय गति तेज होना आदि सामान्य तौर पर देखा जाता है। हिहाइड्रेशन, फूड प्वाइजनिंग, सनबर्न , घमौरी, डायरिया का खतरा बढ़ जाता है। गर्मियों में सबसे बड़ी समस्या आमतौर पर डिहाइड्रेशन है जिसमें हमारे शरीर में पानी का संतुलन बिगड जाता है। शरीर में पानी की कमी और पानी का शरीर से बाहर निकलना बढ़ जाता है – पसीने के रूप में या पेट की खराबी से।
ऐसे में ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

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मानसिक स्वास्थ्य जीवन का सबसे अनदेखा क्षेत्र

अभी कुछ दिन पहले सोनी नाम की पेशेंट मेरे पास क्लीनिक पर आई और फूट-फूट कर रोने लगी। मैं चुपचाप देखती रही और पूछा क्या बात है। कहने लगी आजकल मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता। मैं अपनी 3 साल के बच्चे को बहुत पीटने लगी हूं उसे अपशब्द इस्तेमाल करती हूं। मैंने उसकी सारी बातें सुनी उसने बताया गुस्सा बहुत आ रहा है, किसी चीज में मन नहीं लगता, पूरे बदन में दर्द, बहुत थकान, नींद ना आना और भूख न लगना। दरअसल सोनी मानसिक रूप से अस्वस्थ थी और अवसाद की शिकार हो रही थी। उसको काउंसलिंग और उचित उपचार की जरूरत थी। ऐसे न जाने कितने लोग मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं और हीन भावना से ग्रसित हो रहे हैं। मानव जीवन में मानसिक स्वास्थ्य का बहुत महत्व है पर हम लोग सबसे ज्यादा इसको अनदेखा करते हैं जिस तरह शारीरिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण होता है उसी भांति मानसिक स्वास्थ्य भी। जनवरी माह भारत में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य माह के रूप में मनाया जाता है इसका मुख्य उद्देश्य है मानसिक स्वास्थ्य का जीवन में महत्वत्ता, जागरूकता बढ़ाना और समर्थन प्रदान करना है। इस माह में विभिन्न गतिविधियां आयोजित की जाती है जिसका मुख्य उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य को बेहतरीन दिशा में एक सामूहिक जागरूकता बढ़ाना है।

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स्वस्थ जीवनशैली की ओर बढ़ने के लिए ‘फ्री ज़ुम्बा कैम्प’ का किया आयोजन

कानपुर। संजय वन में ‘एच क्यूब जिम एवं फिटनेस सेन्टर’ के तत्त्वावधान में स्वास्थ्य अभियान के तहत नागरिकों को फिट रखने और उन्हें स्वस्थ जीवनशैली की ओर बढ़ने के लिए एक ‘फ्री ज़ुम्बा कैम्प’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों को बिना किसी शुल्क के, एक स्वस्थ और आनंदमय जीवन जीने के लिए आवश्यक फिटनेस टिप्स दिए गए।
इस कैम्प में मुख्य ज़ुम्बा इंस्ट्रक्टर आशु पांडे ने प्रतिभागियों को जुम्बा कराया। उनके मार्गदर्शन से कैंप में जुंबा इंस्ट्रक्टर डेविड, जिन अनु मिश्रा, निशांत एवं राज गुप्ता ने भी प्रतिभागियों में जानभर कर एक नई ऊर्जा का संचार किया और उन्हें झूमने के लिए प्रेरित किया।
इस अवसर पर मुख्य ट्रेनर आशु पांडे ने कहा यह कैम्प न सिर्फ शारीरिक फिटनेस को प्रमोट करता है बल्कि एक साथ सार्थक संवाद को भी बढ़ावा देता है।
कार्यक्रम आयोजक ‘हेमंत हेल्थ हब जिम एवं फिटनेस सेंटर’ की डायरेक्टर शिवानी पांडे ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि हर व्यक्ति स्वस्थ रहे, और इसलिए हमने यह फ्री ज़ुम्बा कैम्प आयोजित किया है। यह एक ऐसा मौका है जहां लोग एक स्वस्थ जीवन की ओर कदम बढ़ाते हैं।’
कैम्प में शामिल होने वाले लोगों ने इस आयोजन की सराहना की और कहा कि ऐसे पहलुओं की हमेशा जरूरत है।

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भ्रांतियों में न आएं, लाइलाज नहीं टेढ़े पंजे की बीमारी

मथुरा: श्याम बिहारी भार्गव। कई बच्चों का जन्म टेढ़े पंजे के साथ होता है और यह जीवन भर के लिए अभिशाप बन जाता है। लोगों में इस बीमारी को लेकर आज भी तरह तरह की भ्रांतियां हैं। लोग इलाज नहीं कराते, ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इस बीमारी को दैवीय प्रकोप अथवा लाइलाज माना जाता है। जिला चिकित्सालय में इस बीमारी का निः शुल्क इलाज उपलब्ध है। प्राइवेट अस्पतालों में भी इलाज है लेकिन बहुत महंगा है। अनुष्का फाउंडेशन के सहयोग से राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के साथ मिल कर प्रदेशभर में एक अभियान चलाया जा रहा है। फाउंडेशन की ओर से मथुरा और अलीगढ़ जनपद में इस जिम्मेदारी को निभा रहे मोहम्मद ईशान ने बताया कि यह क्लब फुट नामक बीमारी है। यह बच्चे में मां के पेट से ही आती है। इस बीमारी में बच्चे का पंजा अंदर की ओर मुडा होता है। यह जन्मजात बीमारी है और बच्चे में मां के पेट से ही आती है। इसे सीटीईबी भी बोलते हैं, इसका इलाज निःशुल्क किया जा रहा है। इसमें तीन स्टेज होती हैं, पहली स्टेज में प्लास्टर लगाकर बच्चे के पैर को सीधा किया जाता है। दूसरी स्टेज में छोटा सा कट दिया जाता है। उसके बाद बच्चे को पांच साल तक जूता पहनाया जाता है। जिससे कि उसका पैर फिर से न मुड जाए। इस पूरी प्रक्रिया में चार से पांच साल का समय लगता है। इसके बाद बच्चा चल फिर सकता है।

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ट्रैफिक और मानसिक स्वास्थ्य

ट्रैफिक हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। यह अधिकांश शहरी क्षेत्रों में दैनिक जीवन का एक ज़रूरी पहलू है, चाहे वह काम के लिए आना-जाना हो, बच्चों को स्कूल ले जाना हो, ट्रैफिक से निपटना अधिकांश के लिए रोजमर्रा की वास्तविकता है। यातायात के शोर का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
यातायात प्रेरित तनाव केवल जाम में फंसे लोगों के लिए अलग-थलग नहीं है, यह अक्सर जीवन के अन्य क्षेत्रों में फैल सकता है और मनोसामाजिक स्वास्थ्य को खराब कर सकता है।
ट्रैफिक में अधिक समय व्यतीत करने से परिवार के लिए कम समय हो सकता है, कार्यालय, घर, कार्यक्रम या स्थान पर देर से पहुँचना।
ट्रैफिक भीड़भाड़, जोर से हॉर्न बजाना, गलत ओवरटेक, खराब ड्राइविंग स्किल, रोड क्रोध, ओवरस्पीडिंग, रैश ड्राइविंग और अधीरता यात्रियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट ऑफ इंग्लैंड द्वारा किए गए शोध में पाया गया कि शहरी ट्रैफिक जाम के परिणामस्वरूप अक्सर काम पर आने-जाने में लंबा समय लगता है, जिससे नौकरी और जीवन की संतुष्टि कम हो जाती है जो उनके मानसिक स्वास्थ्य को और खराब कर देती है।

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उपवास सेहत का उपहार : डॉ. अमरीन फातिमा

उपवास सेहत के लिए एक उपहार है क्योंकि उपवास एक सरल और मुफ्त उपचार है । हमारा देश में अनेक त्योहारों पर उपवास रखने का प्रचलन है जैसे नवरात्रि, करवा चौथ, रमजान आदि मौकों पर, लोग उपवास रखकर अपने इस देवता या खुदा के प्रति श्रद्धा दिखाते हैं। उपवास को व्रत और फास्टिंग के नाम से भी जाना जाता है बताइए उपवास का धार्मिक महत्व तो सदा से है किंतु वैज्ञानिकों को ने यह पुष्टि कर दी कि उपवास सेहत के लिए वरदान है और अनेक बीमारियों से मुक्ति दिलाने में बेहद मददगार है ।इन उपवासों से हमारा तन मन स्वस्थ रहता है और डिटॉक्सिफिकेशन होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार उपवास अगर सही तरीके से रहा जाए तो यह हमारे तन, मन को डिटॉक्सिफाई कर संतुलित एवं स्वस्थ एवं स्फूर्तिवान रखता है। अगर आप हफ्ते में सिर्फ एक दिन का उपवास रखें और बाकी दिन अपना खानपान अच्छे से ले तो इससे आप रोग मुक्त और दीर्घायु की चमत्कारी क्षमताएं देखने को मिलेगी।
रूस के साइबेरिया में उपवास द्वारा उपचार की पद्धति का प्रचलन गोर्याचिंस्क नमक अस्पताल में होता है जो की सुरम्य शहर में है वहां दूर-दूर से ऐसे लोगों का उपचार होता है जो आधुनिक महंगी चिकित्सा पद्धति से निराश हो चुके हैं और इस इलाज में जो भी खर्च आता है उसकी सरकार उठती है। उपवास बौद्ध धर्मियों के बहुमत वाले बुर्यातिया की स्वास्थ्य नीति का अभिन्न अंग है।

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