कानपुर, जन सामना। ख़लीफतुल मुस्लिमीन हज़रते सय्यिदना अबू बकर सिददीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु की तारीख़े विसाल पर दारुल उलूम अहले सुन्नत मन्ज़रे इस्लाम में यौमे सिददीक़े अकबर का इंइक़ाद हुआ।जिसकी सदारत इदारा के प्रिंसिपल मौलाना शुएैब मिस्बाही और क़यादत दारुल उलूम गुलशने अजमेर के उस्ताज़ मुफ्ती अशरफ मिस्बाही ने की ख़ुसूसी ख़िताब फरमाते हुए इदारए हाज़ा के उस्ताज़ मौलाना हस्सान क़दरी ने कहा कि ख़लीफतुल मुस्लिमीन अमीरुल मोमिनीन हज़रते सय्यिदिना सरकार अबू बकर सिददीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु तमाम इंसानों में बादे अम्बिया सबसे अफज़ल व अशरफ हैं! रब तआला ने आपको उन उन इनामात से नवाज़ा जिसका तसव्वुर भी आशिक़ों के रूह व क़ल्ब को मुअत्तर कर देता है। हुज़ूर मुस्तफा करीम ने फरमाया कि मैंने सारे लोगों के एहसान को उतार दिया लेकिन अबू बकर के एहसान को ना उतार सकाए बरोज़े क़यामत अल्लाह तआला ही अबू बकर के एहसानों का बदला देगा।
दूसरी जगह इरशाद होता है कि जितना नफा मुझे अबू बकर के माल ने दिया किसी के माल ने ना दिया! इस तरह के बहुत से इरशादात हैं जो आपके अज़ीमुश्शान व रफीउल मरतबत होने पर दलालत करते हैं। लेकिन अफसोस कि आज का मुसलमान हज़रते सिददीक़े अकबर को फरामोश कर बैठा। उनकी शायाने शान ना उनकी महफिलें ही सजाता है, ना उनकी तारीख़ ही याद रखता है! जिस तरह ग्यारहवीं, छटी और दूसरे बुज़ुर्गों की तारीख़ें मनाते हैं। हमें चाहिये कि हज़रते सिददीक़े अकबर की तारीख़ को उससे कहीं बढ़ चढ़ कर मनाएँ कि उनसे बड़ा इस उम्मत का ख़ैर ख़्वाह और उनसे अच्छा इस मिल्लत का मुफक्किर कोई दूसरा नहीं है! हाज़िरीन में मुफ्ती इलियास मिस्बाही, मौलाना असलम अत्तारी, क़ारी दिलशाद रज़ा, मौलाना फराज़ अत्तारी, हाजी इश्तियाक़ बरकाती, हाजी भूरे के अलावा ज़िम्मेदाराने इदारा व तमाम तल्बा मौजूद थे!