फैमिनिज्म.. ये शब्द, तीर की तरह चुभता है दिमाग में। महिला दिवस पर या अक्सर महिलाओं के चुनौतीपूर्ण रवैये के मद्देनजर महिला अधिकारों की बातें, बड़ी.बड़ी बातें, एक सामान्य जीवन जीती हुई महिला को उनके अधिकारों का हवाला देकर उसको नई दिशा देने की बातें, जमीनी स्तर से इतर फेमिनिज्म एक फैशन और ग्लैमर का सिम्बॉल ज्यादा लगने लगा है।
नारीवाद की समग्रता को समझने के बजाय आज कपड़ों की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी को ही नारी स्वतंत्रता का झंडा बना दिया जा रहा है। नारीवाद के नाम पर कुछ भी बोला जा सकता हैं। किसी को भी ट्रोल किया जा सकता हैंए यह सही नहीं है। हर सभ्यता की एक मर्यादा होती है। वह मर्यादा लांघने पर उसका महत्व खत्म हो जाता है।
आज अगर गौर करें तो स्त्री को फेमिनिज्म का जामा पहनाकर एक प्रोडक्ट बना दिया गया है। उसके दिमाग में ये भर दिया जा रहा है कि तुम अपने ऊपर लगाए गए नियमों का खुलकर विरोध करो। तुम हर उस चीज का विरोध करो जो तुम्हें मनमानी करने से रोकता है। फिर चाहे वह सही हो या गलत। जब महिलाओं के कपड़ों पर पाबंदी की बात की जाती है तब आजादी और आधुनिकता का हवाला देकर नई सभ्यता का आगाज करते हुये सुनाई देते हैं लोग बाग। आधुनिकता को अपनाना गलत नहीं लेकिन आधुनिकता के नाम पर अधनंगे होकर घूमना हमारी सभ्यता नहीं है। ऐसे वस्त्र जिन पर एक स्त्री के ऊपर एक स्त्री की ही नजर टिक जाए तब– क्या पुरुषों की नजर का टिकना या कमेंट पास करना स्वाभाविक नहीं है? क्या हम खुद ही उपभोग की वस्तु नहीं बन रहे हैं।
क्रिकेट मैच की सीरीज में पुरुष कोट.पैंट और टाई के साथ जेंटलमैन बनकर गेम की समीक्षा कर रहे होते हैं। इसी समीक्षा में एक किरदार महिला का भी रहता है। आधुनिकता की षड्यंत्रपूर्वक गढ़ी हुई परिभाषा न होती तो कहते, महिला अधोवस्त्र में थी। पूरी समीक्षा के दौरान महिला किरदार का काम महज मुस्कुराना और समीक्षकों के जवाब में सिर हिलाना था। ३ क्या पुरुष और महिला समीक्षा नहीं कर सकते थे। क्या दोनों समान रुचि के कपड़े नहीं धारण कर सकते थे। क्या क्रिकेट की समझ रखने वाली महिलाओं व पूर्व महिला खिलाडि़यों की कमी है देश में सवाल और भी उठाए जा सकते हैं। सिर्फ क्रिकेट ही नहीं, विज्ञापन में, फिल्मों में, वेब सीरीज में भी यही स्थिति दिखती है। आज कोई भी प्रोडक्ट बेचना है तो स्त्री उसमें प्राथमिक होती है। बड़ी.बड़ी कंपनियों और महिलावादी संस्थाओं ने महिलाओं को एक तरह से समाज के सामने परोस दिया है। और वो शोषण का शिकार हो रही है, जाने अनजाने में क्योंकि उनके दिमाग में फैमिनिज्म का जहर भर दिया जा रहा है।
आज मीडिया में महिलाएं जिस तरह से ट्वीट करती हैं अक्सर मर्यादा लांघती हुई सी दिखती है और आखिर में उपहास का पात्र बनती है। आजकल एक और फैशन चल पड़ा है कि गर्भवती महिला अपना बेबी बंप का फोटोशूट करवाती है या कमोड पर बैठकर पिक अपलोड करती है। यह कैसी मानसिकता हैघ् जब स्त्री के शरीर में एक नया सृजन हो रहा होता है और वो समय आराम और ध्यान का होता है। वह समय हम स्त्री और गर्भस्थ शिशु को समाज की नजरों से सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं ऐसे में स्त्री अपने आप को बाजार में सरेआम पेश कर रही है। आज महिलाएं वस्त्रविहीन होकर मजे से फोटोशूट करवातीं है। ये कैसा फूहड़ चलन है। और लोग बाग क्यों प्रमोट कर रहे हैं इसको?ये कैसी स्वतंत्रता है। क्यों हमारी संस्कृति मर्यादाएं लांघती जा रही है। छोटे.छोटे फूहड़ वीडियो पर बैन क्यों नहीं लगता ? ये किस तरह का समाज निर्माण हो रहा है जहां मर्यादाएं लांघती हुई स्त्रियां गौरव का अनुभव करती हैं।
आज के आधुनिक समाज में नई सभ्यता और संस्कृति के नाम पर सिगरेट और शराब का चलन गर्व की बात मानी जाती है। लड़कियों का तो लड़कपन माना जा सकता है लेकिन बड़ी उम्र की महिलाएं भी इसमें बढ़.चढ़कर हिस्सा लेती है। गौर करने लायक है की नशे की आदी महिलाएं अपने घर को किस तरह से संभालती होंगी और अपने बच्चों को क्या संस्कार देती होंगी? अगर उनका बच्चा कोई गलत काम करें तो वो किस मुंह से उस बच्चे को रोक पाती होंगी उस गलत काम के लिए जबकि वो खुद ही गलत काम में लिप्त है।
कुछ दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक ट्रैफिक महिला अपने बच्चे को गोद में लेकर अपना कार्य कर रही थी। समाज में वीडियो द्वारा यह संदेश फैलाया जा रहा था कि वो महिला कितनी ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रही है। क्यों नहीं व्यवस्था उसकी परेशानियों को देख पा रही हैघ् क्यों उसे महान बना कर नजरअंदाज किया जा रहा हैघ् जब मेटरनिटी लीव और चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान है तो वो किस मजबूरी के तहत इतना कठिन काम कर रही हैघ् उसे चाइल्ड केयर लीव क्यों नहीं दी गई? किसी कारणवश नहीं दी गई तो क्या उसे फील्ड वर्क से हटाकर कोई आफिस ड्यूटी नहीं दी जा सकती थी घ् लेकिन हम तो बस नारी को महान बनाने में जुटे हैं, भले वह इस महानता के बोझ तले दबी जा रही हो। क्या यह बिना जंजीरों में जकड़े एक नई तरह की गुलामी की शुरुआत नहीं ?
ऐसे तमाम सवाल जो महिलाओं के व्यक्तित्व पर सवाल उठाते हैं। क्या जरूरी नहीं है कि आज महिलाएं खुद को आत्म केंद्रित करें और खुद का सम्मान करें और शोषित होने के बजाय एक नया आयाम स्थापित करें और अपना गौरव बढ़ाएं। शोषण का औजार बनने के बजाय समाज में अपने आप को एक मजबूत स्तंभ की तरह स्थापित करें।