योग का शाब्दिक अर्थ देखे तो जोड़ना होता है।संस्कृत शब्द यूज़ याने जोड़ने से आया है, मतलब कि शरीर- मन और आत्मा को जोड़ना होता है एचित्त की वृत्तियों को निरोध करना ही योग है।इंद्रियों को एक साथ जोड़ना ही योग है। हम क्यों 21 जून को ही मनाते हैघ् इसको कई तरीके से देख सकते है। आदिगुरु शिवजी ने आज ही के दिन अपने सात शिष्यों को योग की शिक्षा दी थी। दूसरा देखो तो सूर्य उत्तरी गोलार्ध से दक्षिण गोलार्ध में आता है।उत्तरी गोलार्ध में ये सब से बड़ा दिन है।और दक्षिण गोलार्ध में छोटा। इस दिन सूर्य लंबे समय तक होने से ज्यादा ऊर्जा प्राप्त होती है।स्प्रिचुअल कार्य के लिए अच्छा दिन होता है।ग्रीष्म संक्रांति भी है आज के दिन।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिन का लोगो( प्रतीक) भी काफी प्रतीकात्मक है।प्रतीक को देखे, तो एक व्यक्ति पद्मासन में नमस्कार मुद्रा में बैठी है।नमस्कार मुद्रा संदेश देती है कि शांत भाव से एकता दर्शाती है।साथ में दो पत्तियां हरी और दो भूर,एदो हरी पत्तियां पर्यावरण का प्रतीक है।हमे पर्यावरण के संतुलन रखना चाहिए।दो भूरी पत्तियां धरती दर्शाती है।ब्लू मानवशरीर पृथिवी जल का प्रतीक है।उसका भी यही संदेश है कि धरती के साथ भी अनुकूलन रख के रहना है। उसका सम्मान करना है।बैठी व्यक्ति के सिर के पीछे पृथ्वी का नक्शा जो ग्लोबल एकता वसुधैव( कुटुंबकम्) दर्शाती है।उसमे दृश्य रूप में भारत का नक्शा है क्योंकि योग भारत की ही देन है।ये तो परिभाषा हुई अब योग का परिरूप देखते है।आदिगुरु शिव के बाद गुरु पतंजलि ने योग को विस्तृत स्वरूप से समझाया है।
योग अष्टांग योग है जिसे आठ अंगो में बताया जाता है।
यम,२ नियम,३आसन,४ प्राणायम, ५प्रत्याहार, ६धारणा, ७ ध्यान,८समाधि
१.यम के अंतर्गत
अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आते है। पांचों यम का पालन करके संभोग की वासना यानी कि दूसरे से सुख लेने की इच्छा से मुक्त हो जायेंगे।
२.नियम के अंतर्गत
शौच,संतोष, तप, स्वास्थ्य,ईश्वर प्राणधान आते है।
पृथ्वी के सभी जीवों नियम से जीते है और वह सभी जीव नियम से चलते है, मनुष्य के अलावा।उनकी उठने से लेकर सोने तक की दिनचर्या तय है,तय समय पर उठना खाना नियत समय पर सोना।
३. आसन का अर्थ देखे तो शरीर को बिनातकलिफ स्थिर रख के आसान तरीके से लंबे समय आसन लेना।ऋषि पतंजलि ने कहा है।
स्थिर सुखमासनम
४.प्राणायम एसांसों को नियंत्रित करनाएजब हमारे शरीर में परम ऊर्जा उतरती है, तो हम जीवित होते है।अपनी सांसों को नियंत्रित करने से मन से उठने वाली भावनाओं और इच्छाओं को नियंत्रित कर सकते है।
५. प्रत्याहार का मतलब है, अपनी पांचों इंद्रियों से बाहर जाति ऊर्जा को बाहर जाने से रोक अपने अंदर संग्रह करना।ऊर्जा को वापिस नही मोडी जाए, तो वह बाहर चली जाती है।रोकी हुई ऊर्जा से हमे गलत में से मुक्त हो जाते है और हमे मनोबल मिलता है।
६. धारणा का मतलब है परम ऊर्जा से एक होकर आध्यात्मिक आनंद मिलना है। कर्मयोग की ५ बातों का ध्यान रखे तो हम ६ यानी कि धारणा में ध्यानयोग से आगे जा सकते है।
७.ध्यान में आप कुछ कर नही सकते, जैसे नींद,आप नींद ला नही सकते नींद आए ऐसे उपाय करते हैएऐसी स्थिति पैदा करते है।खड़े खड़े कभी नींद नहीं आती।वैसे ही ध्यान में होता है।ध्यान शून्य स्थिति है।
८. समाधि ७ अंगो का पालन चुस्त हो के करेंगे तो समाधि अपने आप उपलब्ध हो जाती है।
योग एक यौगिक क्रिया है और जो स्वास्थ्यलाभ होते है वह एक प्राकृतिक क्रिया है जो मन और मस्तिष्क को स्वयं भू लाभ प्रद होता है।
योग एक परमानंद स्वरूप है जिसे ऋषि मुनियों ने परख कर सशोधन करके हमारे लिए छोड़ा है, उनका अनुसरण करके स्वास्थ्य लाभ लेना तो बनता है।