Tuesday, April 30, 2024
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प्रत्यक्षे किम् प्रमाणम् – जो प्रत्यक्ष है, जो सामने है, उसे कोई प्रमाण की ज़रूरत नहीं

प्रौद्योगिक और डिजिटल क्षेत्र में तेज़ी से बढ़ते भारत में कार्यक्रमों के संबोधनों में नेताओं द्वारा बड़े बुजुर्गों की कहावतों, संस्कृति, महाकाव्य, पौराणिक ग्रंथों के वचनों का उदाहरण देना सराहनीय – एड किशन भावनानी
भारत आज तेजी से प्रौद्योगिकी और डिजिटल क्षेत्र में अपेक्षा से अधिक लक्ष्यों को हासिल कर रहा है जो हर भारतीय के लिए फक्र की बात है कि हम शीघ्र ही एक वैश्विक रीडर की स्थिति में होंगे!!! साथियों इस प्रौद्योगिकी युग में भी हम अभी बीते कुछ दिनों, महीनों से एक बात बारीकी से महसूस कर रहे हैं कि हमारे राजनीतिक नेताओं, बुद्धिजीवियों विशेष रूप से वैश्विक लीडर सूची में प्रथम क्रमांक पर आए व्यक्तित्व द्वारा अपने करीब क़रीब हर संबोधन में चाहे वह राजनीति हो या गैर राजनीतिक, धार्मिक हो या सामाजिक उसमें बड़े बुजुर्गों की कहावतों, संस्कृति, साहित्य, पौराणिक ग्रंथों के वचनों,महाकाव्य के वचनों का उल्लेख कर उसका मतलब समझाया जाता है और उसपर वैचारिक सहमति दर्शाते हुए जनता से या सुनने वालों को उस राहपर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है!!! आज हम इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया पर संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तित्व का अगर हम संबोधन सुने तो उपरोक्त गुण उनके संबोधनों में पाए जाते हैं जो वर्तमान प्रौद्योगिकी और डिजिटल भारत में तारीफ़ ए काबिल है!!! साथियों बात अगर हम बीते कुछ महीनों सालों में नेताओं द्वारा संबोधनों में आध्यात्मिक,धार्मिक सांस्कृतिक, पौराणिक ग्रंथों, महाकाव्यों के वचनों, भारतीय पौराणिक संस्कृति इत्यादि के बारे में उपयोग में लाए गए कथनों की करो करें तो वह दिल को छू जाते हैं और हमें अपने भारतीय होने पर गर्व महसूस होता है!!! कुछ संबोधनों के अंश में शामिल निम्नलिखित वचन हैं। 1)- प्रत्यक्षे किम् प्रमाणम् – याने, जो प्रत्यक्ष है, जो सामने है, उसे साबित करने के लिए कोई प्रमाण की जरूरत नहीं पड़ती। 2) वसुधैव कुटुंबकम की बात कही। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एवं कुटुम्बकम्) यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। इसका पूरा श्लोक कुछ इस प्रकार है। अयं बन्धुरयं नेतिगणना लघुचेतसाम् ।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्‍लोक ७१) अर्थ यह है – यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है। 3) विश्वस्य कृते यस्य कर्मव्यापारः सः विश्वकर्मा।अर्थात, जो सृष्टि और निर्माण से जुड़े सभी कर्म करता है वह विश्वकर्मा है। हमारे शास्त्रों की नजर में हमारे आस-पास निर्माण और सृजन में जुटे जितने भी, हुनरमंद लोग हैं, वो भगवान विश्वकर्मा की विरासत हैं। इनके बिना हमअपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। 4) सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मङ्गलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े। 5)या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ यानी जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है. ‘या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥’ अर्थात जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है. ‘या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभि-धीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ इसका अर्थ है कि जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको बारंबार नमस्कार है। 6) वयं राष्ट्रे जागृयाम -यानी युजुर्वेद में ये सुक्ति है इसका अर्थ है हम राष्ट्र को जीवंत और जागृत बनाए रखेंगे। 7)हजारों साल पहले हमारे मनीषियों ने इसी विचार को आत्‍मसात कर विश्‍व को राह दिखाने का काम किया और आज हम भी उसी विचार मानने वाले हैं। प्रकृति से प्‍यार करने की सीख हमारे ग्रंथों में, हमारी जीवन शैली में शामिल है।पूरे विश्‍व कोपरिवार मानने की सीख हमारे मनीषियों ने दी। 8) अमृतम् संस्कृतम् मित्र, सरसम् सरलम् वचः।एकता मूलकम् राष्ट्रे, ज्ञान विज्ञान पोषकम्। अर्थात, हमारी संस्कृत भाषा सरस भी है, सरल भी हर संस्कृत अपने विचारों, अपने साहित्य के माध्यम से ये ज्ञान विज्ञान और राष्ट्र की एकता का भी पोषण करती है, उसे मजबूत करती है। संस्कृत साहित्य में मानवता और ज्ञान का ऐसा ही दिव्य दर्शन है जो किसीको भी आकर्षित कर सकता है। 9) कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ अर्थात कर्म योग। 10) हजारों साल पहले हमारेमनीषियों ने इसी विचार को आत्‍मसात कर विश्‍व को राह दिखाने का काम किया और आज हम भी उसी विचार मानने वाले हैं। प्रकृति से प्‍यार करने की सीख हमारे ग्रंथों में, हमारी जीवन शैली में शामिल है। पूरे विश्‍व को परिवार मानने की सीख हमारे मनीषियों ने दी। 11) महा-योग-पीठेतटेभीम-रथ्याम् वरम् पुण्डरी-कायदातुम् मुनीन्द्रैः। समागत्य तिष्ठन्तम् आनन्द-कन्दं पर ब्रह्मलिंगम्,भजे पाण्डु-रंगम्॥ अर्थात्, शंकराचार्य जी ने कहा है- पंढरपुर की इस महायोग भूमि में विट्ठल भगवान साक्षात् आनन्द स्वरूप हैं।इसलिए पंढरपुर तो आनंद का ही प्रत्यक्ष स्वरूप है। 12) अध्यात्म और सेवा अलग नहीं हैं और वे अनिवार्य रूप से समाज का कल्याण चाहते हैं। 13) जिस तरह से देश के स्वाधीनता संग्राम में भक्ति आंदोलन ने भूमिका निभाई थी,उसी तरह आजआत्मनिर्भरता भारत के लिए देश के संतों महात्माओं, महंतों और आचार्यों की मदद की आवश्यकता है। 14) हमारा देश इतना हजरत है कि यहां जब भी समय विपरीत होता है तो कोई ना कोई संत विभूति समय की धारा को जोड़ने के लिए अवतरित हो जातेहैं यह भारत ही है जिसकी आजादी के सबसे बड़े नायक को दुनिया महात्मा बुलाती है। 15) हमारे पुराणों ने कहा है जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। साथियों बात अगर हम ऐसे कई संबोधनों की करें तो यह अनेक नेताओं के हजारों की संख्या में संबोधन हैं!! साथियों यही भारतीय संस्कृति की पहचान है कि हमारे लीडरशिप में चाहे वह पक्ष हो या विपक्ष हो, भारत माता की मिट्टी में पैदा हुआ है और उन्हें यह संस्कृति गॉड गिफ्टेड है कि इतने बड़े पदों पर बैठे हुए भी आज अपने हर संबोधन में अपने धार्मिक ग्रंथों आध्यात्मिक संस्कृति के श्लोक पढ़े जाते हैं, उनका अर्थ समझाया जाता है जो काबिले तारीफ है!!! हालांकि राजनीति, हार जीत, पक्ष विपक्ष अपनी जगह है हर पक्ष विपक्ष द्वारा आपसी शाब्दिक हमले जनसभाओं में हम देखते रहते हैं परंतु यह आध्यात्मिक सांस्कृतिक और धार्मिक ग्रंथों का अर्थ समझा कर जनता में अपनी पैठ बढ़ाने की एक सफल कोशिश है!!! क्योंकि यह आस्था का प्रतीक होने में मील का पत्थर साबित होगा। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम -जो प्रत्यक्ष है वह सामने है उसे साबित करने के लिए किसी प्रमाण की ज़रूरत नहीं पड़ती, तथा प्रौद्योगिकी और डिजिटल क्षेत्र में तेज़ी से बढ़ते भारत में कार्यक्रमों के संबोधन में बड़े बुजुर्गों, की कहावतों, संस्कृति, साहित्य, पौराणिक ग्रंथों महाकाव्य के वचनों का उदाहरण देकर शिक्षित करना सराहनीय है।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र