जी हाँ ,मैं किसी सरकारी शिक्षण संस्थान की नहीं बल्कि छोटे-मोटे निजी विद्यालयों की बात कर रही हूँ l गत लगातार दो वर्षों से कोरोना अपना रंग दिखा रहा है, नए-नए तरीकों से परेशान कर रहा है l जब शुरुआत कोरोना नमक वैश्विक महामारी की लहर तो उसके साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में में भी जबरदस्त बदलाव देखने को मिला l जहां बच्चों को मोबाइल से दूर रहने की हिदायत दी जाती थी और शिक्षकों को कक्षा में मोबाइल फोन का इस्तेमाल वर्जित था ,वही ऑनलाइन क्लास नामक तत्व संजीवनी बूटी बनकर सामने आया। ऑनलाइन कक्षा चलना विकल्प तो बहुत अच्छा था । हम ऐसे कक्षाओं के परिचालन की कभी परिकल्पना किया करते थे । और चाह कर भी हम इस तरह के प्रयोग में वर्षों लगा देते शायद ,लेकिन समय और परिस्थितियों ने सब कुछ तुरंत ही कर दिया । शिक्षा जगत में ऑनलाइन क्लास के माध्यम से एक बदलाव भी आया बच्चों और शिक्षकों के पास स्मार्ट फ़ोन होना अनिवार्य हो गया ।
ये सब तो हुई थोड़ी बहुत परिचय की बातें पर ऑनलाइन कक्षाएं कितनी सार्थक हैं ।जो छोटे -छोटे विद्यालय हैं जहाँ दिहाड़ी मजदूरों या ठेले पर साग सब्जी या कोई और वस्तु बेचते हैं ,उनके बच्चे आते हैं,जहां अभिभावक मुश्किल से दो वक्त की रोटी और विद्यालय की फीस भर पता है वो अपने बच्चों को मोबाईल कहाँ से दे पाएगा ,और अगर दे भी देता है तो एक फ़ोन से कितने बच्चे पढ़ पाएंगे । अब तो मोबाइल का डेटा पैक का भी दाम उचाईयों पर हो गया है । ऐसे में जो पढ़ने वाले बच्चे हैं उनको कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है । एक साल तो जैसे तैसे बीत गया ।पर ये तीसरा साल होने को आया ,पढ़ने वाले बच्चे अगर पढ़ नहीं पाएंगे तो यही आगे चल कर गलत कदम उठाएंगे ,ऐसे में देश का भविश्य खतरे में देखा जा सकता है।’ पढ़ेगा तभी तो बढ़ेगा इंडिया’ कहने में कितना सार्थक होगा ये तो वक्त बताएगा,इसमें हमारी सरकार भी क्या करे ,यथा संभव वो भी इस महामारी से उबरने की कोशिशें कर रही है।
ये तो हुई उन मासूमों की बात अब थोड़ा शिक्षकों की परेशानियों पर भी गौर करते हैं। एक प्राइवेट स्कूल का शिक्षक को कितनी तनख्वा मिलती होगी आप अंदाजा लगा सकते हैं । उसमें भी ऑनलाइन क्लास का बोझ ,अब समस्या ये है कि कब तक ऐसा ही चलता रहेगा ,कह पाना मुश्किल है , “काम दुगुना और वेतन आधा” ज़रा सोचिए की कैसे एक शिक्षक अपने परिवार का भरण पोषण करता होगा। जो थोड़ी बहुत आमदनी टयूशन से हो जाती थी वो भी बन्द पड़ी है।खास बात तो ये है कि सरकार के किसी भी योजना में प्राइवेट शिक्षक कहीं नहीं आता ,शायद इनको कोई कोई समस्या ही नहीं होती ,औदा प्रतिष्टित पर औकाद मजदूरों से भी बद्तर ।
अब इसमें शिक्षण संस्थान भी करे क्या क्योंकि व तो खुद ही परेशान है ,उनका समय और पैसा सब अधर में लटका हुआ है। बच्चों की कमजोर होती जा रही नीव ,टूटता जा रहा शिक्षक और सोच में पड़ा शिक्षण संस्थान ,जिनकी सुध लेने को कोई तैयार ही नहीं । बिना किताबों के बच्चे और बेबस शिक्षा जगत ,कितना उभर पायेगा अगर मान लें कि जिल्द ही सब पहले की तरह हो जएगा।कौन इनका मसीहा बनकर आयेगा या सब कुछ राम भरोसे रह जाएगा lये वो लोग हैं जो वीरता से अपनी परिस्थितियों से जुझ रहे हैं पर इनकी वीर गाथा को शायद ही कोई याद रख पाएगा l
स्वाति पाठक
लखनऊ