Sunday, September 22, 2024
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“यूँहीं नहीं मिली आज़ादी”

बेशक गांधीवाद, चरखा और सत्याग्रह का भारत को आज़ादी दिलाने में अहम् योगदान रहा। पर आज स्वतंत्र भारत की जिस भूमि पर हम आज़ादी की साँसें ले रहे उस आज़ादी को पाने के लिए कई स्वतंत्र सेनानीओं ने अपना बलिदान दिया है। उनमें ना केवल पुरुषों का योगदान रहा बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय महिलाओं ने भी कंधे से कंधा मिलाकर खुमारी से अपनी वीरता, साहस और क्षमता का परिचय दिया। देश के एक-एक नागरीक ने ख़ुमारी से हर आंदोलन और हर गतिविधि में हिस्सा लेकर देशप्रेम का परचम लहराया तब जाकर भारत ब्रिटिस शासकों के हाथों से आज़ाद हुआ।
महिलाओं की भूमिका हर जंग में अहम रही। शास्त्रों में कहा गया है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता अर्थात जहाँ नारी का सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता है। इसलिए कहा जाता है कि जिस समाज में नारी बढ़ चढ़कर विभिन्न क्षेत्र से सम्बन्धित कार्यों में हिस्सा लेती है वहां प्रगति की संभावनाएं बढ़ जाती है।
इतिहास गवाह है ब्रिटिश शासकों को धूल चटवाकर लड़ते हुए जान दे दी उनमें प्रमुख नाम है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और रानी चेनम्मा जैसी विरांगनाओं का। अंग्रेजों से लड़ते हुए जिन्होंने अपनी जान दे दी। मात्र तेइस साल की आयु में लक्ष्मी बाई ने ब्रिटिश सेना के सामने मोर्चा लिया और लड़ते-लड़ते रणमैदान में वीरगति प्राप्त की पर अंग्रेजों को झांसी की भूमि पर कब्ज़ा नहीं करने दिया।
तो सरोजिनी नायडू ने एक कुशल सेनापति की भाँति अपनी प्रतिभा का परिचय हर क्षेत्र में दिया सत्याग्रह हो या संगठन की बात उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गयीं। संकटों से न घबराते हुए वे एक धीर वीरांगना की भाँति गाँव-गाँव घूमकर ये देश-प्रेम की भावना जगाती रहीं। तो दूसरी ओर लक्ष्मी सहगल जी जैसी देशप्रेमी महिलाओं ने आज़ादी के बाद अपना तन-मन देश को समर्पित किया।महात्मा गाँधी जी की अनुयायी स्वतंत्र सेनानी ऊषा मेहता ने भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। ख़ुफ़िया रेडियो चलाने के कारण उन्हें जेल भी हुई थी।
तो दुर्गा बाई देशमुख ने गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन में भी भाग लिया और भारत की आज़ादी में सामाजिक कार्यकर्ता की सक्रिय भूमिका निभाई थी। उन्होंने शिक्षण क्षेत्र से लेकर बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा और पुनर्वसन के लिए समाज कल्याण बोर्ड की स्थापना भी की थी।
तो सुचेता कृपलानी भी एक बहादुर स्वतंत्र सेनानी थी। महात्मा गाँधी के साथ उन्होंने विभाजन के दंगों के दौरान नेशनल कांग्रेस में जुड़ने के बाद राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई थी जो भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री भी बनी थी। उस ज़माने में जहाँ महिलाओं के लिए बहुत बंदिशे और पाबंदीयां थी वहाँ एसी होनहार महिलाएं अपनी क्षमता का परिचय देते स्त्री उत्थान के लिए भी लड़ रही थी।
विजय लक्ष्मी पंडित को कैसे भूल सकते है जवाहरलाल नेहरू जी की बहन संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला अध्यक्ष रह चुकी सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। अपनी बुद्धिगम्य शख़्सीयत का परिचय देते हुए वे स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत बनीं और मॉस्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
आज़ादी की लडाई में जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर अपना योगदान दिया वो सहनशीलता की मूर्ति कस्तूरबा गांधी सच में पूजनीय थे। महात्मा गाँधी जी की पत्नी के सामने नतमस्तक हो जाते है हम। उनका त्याग और बलिदान काबिले तारीफ़ है लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और अनुशाशन के पाठ पढ़ाते बुनियादी सबक सिखाएं। जेल भी गए, संघर्ष में शिरकत भी किया। कस्तूरबा की द्रढता और साहस के आगे गांधी जी भी अभिभूत थे।
1857 की क्रांति के बाद भारत की भूमि पर परिवर्तन और नवजागरण की लहर चली सुधार आंदोलन और आधुनिकता की हवा में रुढिवादी मूल्यों पर आरि चल रही थी। पुरानी सोच के दायरों से निकलकर स्त्रीयाँ नये आसमान में हौसलों की परवाज़ लिए उड़ना सिख रही थी।
गांधीजी के आह्वान पर अपने देश की मिट्टी को ब्रिटिश शासकों से मुक्त करवाने के लिए सर पर कफ़न बाँधकर निकल पड़ती थी। कट्टर हिन्दुवादी समाज में इससे पहले इतने बड़े पैमाने पर महिलाएं सड़क पर नहीं उतरी थी।
गांधीजी को पता था आज़ादी पाना महायज्ञ है। देश के एक-एक नागरिक को अपना अपना योगदान देना होगा और ये काम देश की माँ, बहन, बेटीयों के सहयोग के बिना संभव नहीं था। इस तरह स्वतंत्र राष्‍ट्र के विकास तथा उसके निर्माण में महिलाओं के योगदान का दायरा भी असीमित है। तो शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की कुर्बानी को हम कैसे भूल सकते है।
मां भारती के इन वीर सपूतों की शहादत ने करोड़ों युवाओं को स्वाधीनता आंदोलन के लिए प्रेरित किया। देश की ख़ातिर जो हंसते हंसते शूली पर चढ़ गए ऐसे क्रांतिकारियों का सर्वोच्च बलिदान भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेग।
‘जय हिन्द’
भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगलूरु,कर्नाटक)