कोरोना के चलते पूरे भारत में ग्रामीण संकट गहरा रहा है काम की मांग बढ़ती जा रही है, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना मांग को पूरा करने के लिए आगामी बजट में जोर-शोर से देखी जा रही हैं। ग्रामीण गरीबी से लड़ने के लिए सरकार के शस्त्रागार में यह एकमात्र गोला-बारूद हो सकता है। हालांकि, योजना को कर्कश, बेकार और अप्रभावी रूप हमने भूतकाल में देखे हैं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत ग्रामीण नौकरियों की मासिक मांग 20 मई तक 3.95 करोड़ पर एक नई ऊंचाई को छू गई थी, और महीने के अंत तक 4 करोड़ को पार कर गई। इस साल मई में चारों ओर बड़े पैमाने पर नौकरी के नुकसान का संकेत आया, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में, जहां लाखों कर्मचारी अचानक तालाबंदी के कारण बेरोजगार हो गए हैं।
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गरीब कल्याण रोजगार योजना पर भी लगी सियासत की मुहर
कोविड – 19 के संक्रमण से बचाव स्वरूप अपनाए गए लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई बेरोजगारी को दूर करने की पहल केंद्र सरकार की गरीब कल्याण रोजगार योजना मील का पत्थर साबित हो इसके लिए जोर-शोर से इसे लागू किया गया। यह योजना अभी ६ राज्यों उत्तर प्रदेश , बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा व राजस्थान के ११६ जनपदों में लागू की जा चुकी है। योजना के शुरू होने पर केंद्र सरकार ने कहा कि यह हमारा प्रयास है कि श्रमिकों को उनके घर के पास ही काम मिले , जो कार्य करके अब तक आप शहरों का विकास कर रहे थे वही काम अपने घर के निकट करके आप अपने गाँव के विकास में योगदान करें। इस योजना के सुंदरतम स्वरूप को देखते हुए यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि यह योजना हमारे श्रमिकों , जो बेरोजगार हो चुके हैं के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। महामारी रूपी लॉकडाउन ने जहाँ उनकी रोजी-रोटी छीन ली थी उसी रोजी-रोटी को फिर से बहाल करने के लिए केंद्र सरकार ने यह गरीब कल्याण रोजगार योजना चलाकर बड़ा ही नेक कार्य किया है। इससे जनता में केंद्र सरकार के प्रति सुंदरतम संदेश का संचार भी तेजी से हो रहा है।
Read More »परमाणु परीक्षण की जगह गूंजेगी कुम्हारों के चाक की ध्वनि- डॉo सत्यवान सौरभ
बदलते दौर में भारत के गांवों में चल रहे परंपरागत व्यवसायों को भी नया रूप देने की जरूरत है। गांवों के परंपरागत व्यवसाय के खत्म होने की बात करना सरासर गलत है। अभी भी हम ग्रामीण व्यवसाय को थोड़ी-सी तब्दीली कर जिंदा रख सकते हैं। ग्रामीण भारत अब नई तकनीक और नई सुविधाओं से लैस हो रहा हैं। भारत के गांव बदल रहे हैं, तो इनको अपने कारोबार में थोड़ा-सा बदलाव करने की जरूरत है। नई सोच और नए प्रयोग के जरिए ग्रामीण कारोबार को जिन्दा रखकर विशेष हासिल किया जा सकता है और उसे अपनी जीविका का साधन बनाया जा सकता है।
इसी दिशा में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने पोखरण की एक समय सबसे प्रसिद्ध रही बर्तनों की कला की पुनःप्राप्ति तथा कुम्हारों को समाज की मुख्य धारा से फिर से जोड़ने के लिये प्रयास प्रारंभ किये हैं। कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन ने मिट्टी बर्तन बनाने वाले कारीगरों के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है।
आत्मनिर्भर होने के मायने तलाशने होंगे
आजकल देश में सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर चीन को बॉयकॉट करने कीमुहिम चल रही है। इससे पहले कोविड 19 के परिणामस्वरूप जब देश की अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव सामने आने लगे थे तो प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत का मंत्र दिया था। उस समय यह मंत्र देश की अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक लाभ पहुंचाने की दृष्टि से उठाया गया एक मजबूत कदम था जो आज भारत चीन सीमा विवाद के चलते बॉयकॉट चायना का रूप ले चुका है। लेकिन जब तक हम आत्मनिर्भर नहीं बनेंगे चीन के आर्थिक बहिष्कार की बातें खोखली ही सिद्ध होंगी। इसे मानव चरित्र का पाखंड कहें या उसकी मजबूरी कि एक तरफ इनटरनेट के विभिन्न माध्यम चीनी समान के बहिष्कार के संदेशों से पटे पड़े हैं तो दूसरी तरफ ई कॉमर्स साइट्स से भारत में चीनी मोबाइल की रिकॉर्ड बिक्री हो रही है। जी हाँ 16 जून को हमारे सैनिकों की शहादत से सोशल मीडिया पर चीन का बहिष्कार करने वाले संदेशो की बाढ़ ही आ गई थी। चीन के खिलाफ देशभर में गुस्सा था तो उसके एक दिन बाद ही 18 जून को ई कॉमर्स साइट्स पर चीन अपने मोबाइल की सेल लगाता है और कुछ घंटों में ही वे बिक भी जाते हैं।
Read More »गलत व्यक्ति को सम्मान पत्र प्रदान कर इसका महत्व और गरिमा समाप्त ना करें
आज आप देख रहे होगे कि सोशल मीडिया पर हर किसी व्यक्ति को बिना सोचे- समझे, जांचे- परखे सम्मान पत्र प्रदान करने की आंधी सी आ गई है। फेसबुक हो या ट्विटर या फिर दैनिक दिनचर्या में प्रयोग आने वाला व्हाट्सएप, कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म नहीं बचा है जहां सम्मान पत्र अत्याधिक मात्रा में ना बाटे जा रहे हो। अब विषय यह उठता है कि यह सम्मान पत्र किस लिए और क्यों बांटे जा रहे हैं। किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता या सेवा के लिए दिया गया सम्मान पत्र, या फिर किसी प्रतियोगिता मैं जीत हासिल कर सम्मान पत्र प्राप्त करना तो समझ में आता है। किंतु बेवजह किसी व्यक्ति ने ना तो किसी प्रकार की सेवा की है और ना ही किसी प्रतियोगिता में भाग लिया हो। ऐसे व्यक्ति को सम्मान पत्र प्राप्त हो जाता है तो यह बहुत ही चिंता का विषय है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो सम्मान पत्र का महत्व और अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। आज बहुत सी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं उन समाजसेवियों को सम्मान पत्र देकर सम्मानित कर रही हैं जिन्होंने कोरोना काल में मानव हित के लिए तन मन धन से निस्वार्थ भाव से सेवा की है।
Read More »गोविंदपुर का जातीय हमला: किसके इशारे पर नाची पुलिस ?
मानसून आने को है। आम और जामुन के डाल पर पकने का मौसम बन गया है। आम का नाम आते ही दशहरी, लंगड़ा, अल्फांसो या किसी दूसरी प्रजाति के आम की तस्वीर आँख के सामने घूमने लगती है। जीभ में पानी आने लगता है और मन भागता है मलिहाबाद। यह आम राय बन चुकी है कि आम हो तो मलिहाबादी। वहां आम की तमाम किस्में एक ही पेड़ पर मिल जाएंगी। मगर आम तो सब जगह है। मलिहाबाद में आम की गुणवत्ता बढाने के लिए बागवान कुछ न कुछ रचनात्मक करते रहते हैं। और उसकी शोहरत दूर तक जाती है। होने को तो आपके गांव में भी अमराई होगी। जैसे रजवाड़ों और सामन्तों के गढ़ प्रतापगढ़ में आम के बगीचे खूब हैं। इस जिले को पड़ोसी बेल्हा भी कहते हैं। पर यहां आम की चर्चा नहीं होती। इस जिले की ब्रांडिंग ‘गुंडत्व’ के लिए है। ब्रांडिंग न कहें, बदनामी कहना ज्यादा ठीक होगा।
Read More »फादर्स डे पर नहीं रियल लाइफ में भी माता-पिता से मोहब्बत करने वाले बनिये
सामने वाले घर से अचानक ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज आने लगी। मैं यूँ ही बिस्तर पर लेटी किताब पढ़ रही थी कि उठ बैठी। सामने खिड़की पर नज़र डाली तो देखा कि सामने वाले घर में रहने वाला आदर्श अपने पिता पर चिल्ला रहा है। किसी बात को लेकर शायद बहस हो गई थी उनके बीच। पर ये कोई नई बात नहीं थी। वो हमेशा अपने पिता से ऊँची आवाज़ में बात करता था। मैंने उसे कभी उसकी पिता से अच्छे से बात करते नहीं देखा। हर छोटी बात पर गुस्सा होना उसकी फ़ितरत थी। कभी-कभी शायद उसने हाथ भी उठाया है अपने पिता पर। आदर्श उनकी इकलौती संतान है, इसीलिए उनका आदर्श के पास रहना मजबूरी है। पत्नी के देहांत के बाद वे एकदम अकेले हो गए उन्हें सिर्फ अपने बेटे का सहारा था। लेकिन आदर्श अपने परिवार में ऐसा रम गया कि उसे पिता की कोई परवाह ही नहीं। आदर्श की पत्नी भी उनसे दिनभर के सारे काम करवाती है। और कुछ कहने पर दोनों पति-पत्नी उन्हें जली-कटी बातें सुनते हैं।
Read More »सिर्फ “फादर्स डे” ही नहीं, पिता के लिए हमारा हर दिन समर्पित होना चाहिये
“फादर्स डे’ यानी कि “पितृ_दिवस” है पर एक दिन में पिता की महत्ता नहीं बताई जा सकती, पूरा जीवन भी पिता की महत्वता बताने में कम पड़ जाएगा।
चाहें कोई भी देश हो, संस्कृति हो… माता-पिता का रिश्ता सबसे बड़ा माना गया है। भारत में तो इन्हें ईश्वर का रूप माना गया है। कोई पिता कहता है, कोई पापा, अब्बा, बाबा, तो कोई बाबूजी, बाऊजी, डैडी। कितने ही नाम हैं इस रिश्ते के पर भाव सब का एक। प्यार सबमें एक। समर्पण एक। पिता वो होता है जो हमें सही मार्ग दिखाता है, सही गलत में फर्क करना सिखाता है। आज पिता दिवस पर मेरे अस्तित्व के निर्माता, आदर्श व्यक्तित्व मेरे पिताजी के चरणो मे कोटिशः नमन… ।
कोरोना के चलते मरीजों पर दोहरी मार -प्रियंका सौरभ
आज देश में एक तरफ कोरोना का भय है तो दूसरी तरफ अस्पतालों में इलाज के लिए सात-आठ लाख रुपये एडवांस में जमा कराने का दवाब लोगों को डर के साये में जीने के लिए मजबूर कर रहा है। ऐसे में आखिर लोग जाएं तो जाएं कहां। जीवन को बचाने की जद्दोजहद में वे जिस अस्पताल में है और डॉक्टर में भगवान् का रूप देख रहे हैं, वे इस संकट काल में जीवन का सौदा करने में लगे हैं। ऐसी ख़बरों का आना निसंदेह एक चिंता का विषय हैं. दरअसल संक्रमण के खिलाफ जंग के लिए निर्णय क्षमता का अभाव हर समय नजर आया है। यही वजह है कि एक दिन कुछ आदेश जारी होते हैं और फिर अगले दिन वे आदेश वापस हो जाते हैं। क्या ये सब स्वास्थ्य की समस्या को संभालने की निर्णय की प्रक्रिया में स्वास्थ्य विशेषज्ञों को शामिल नहीं करने का परिणाम है।
Read More »आरक्षण के मामलों में कोर्ट के फैसले विरोधाभासी क्यों है ?? -प्रियंका सौरभ
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कुछ समुदायों को सीटों का आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। आरक्षण पर सुप्रीम कार्ट ने ये एक बड़ी टिप्पणी की है. शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि किसी एक समुदाय को सीटों का आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका जिसमे मेडिकल (नीट) की उन सीटों पर 50 फीसदी ओबीसी आरक्षण देने की मांग की गई थी पर सुनवाई से मना करते हुए यह बात कही है।इसे तमिलनाडु की सभी राजनीतिक पार्टियों ने दाखिल किया था। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए सभी राजनीतिक दलों की चिंता का हम सम्मान करते हैं। लेकिन, आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।
इससे पूर्व इस साल फ़रवरी माह में सरकारी नौकरियों में प्रमोशन के लिए आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण की मांग करना मौलिक अधिकार नहीं है। यह राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करता है कि उन्हें प्रमोशन में आरक्षण देना है या नहीं? कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की अपील पर यह फैसला सुनाया।