राजीव रंजन नाग; नई दिल्ली। दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के मामले में संविधान पीठ के फैसले के अगले ही दिन केजरीवाल सरकार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट के सामने सर्विसेज के सचिव के ट्रांसफर का मुद्दा उठाया गया है और कहा गया कि केंद्र, सचिव का ट्रांसफर नहीं कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार हो गया है। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वो अगले हफ्ते बेंच का गठन करेंगे। दिल्ली सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ये एक तरीके से अवमानना के समान है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की बेंच की गठन किया जाना चाहिए।
आम आदमी पार्टी की सरकार को बड़ी राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को सर्वसम्मति से फैसला दिया कि लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे विषयों को छोड़कर अन्य सेवाओं पर दिल्ली सरकार के पास विधायी तथा प्रशासकीय नियंत्रण है। उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने कहा कि नौकरशाहों पर एक निर्वाचित सरकार का नियंत्रण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का ‘विशेष प्रकार का’ दर्जा है और उन्होंने न्यायाधीश अशोक भूषण के 2019 के उस फैसले से सहमति नहीं जतायी कि दिल्ली सरकार के पास सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है।शीर्ष न्यायालय ने केंद्र तथा दिल्ली सरकार के बीच सेवाओं पर प्रशासनिक नियंत्रण के विवादित मुद्दे पर अपने फैसले में कहा, ‘केंद्र की शक्ति का कोई और विस्तार संवैधानिक योजना के प्रतिकूल होगा…दिल्ली अन्य राज्यों की तरह ही है और उसकी भी एक चुनी हुई सरकार की व्यवस्था है।’ उच्चतम न्यायालय ने 105 पन्ने के अपने आदेश में कहा, ‘सूची-2 के विशेष उल्लेखों (लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि) को छोड़कर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (एनसीटीडी) की विधानसभा के पास सूची-2 और सूची-3 का नियंत्रण है।’ शीर्ष अदालत ने कहा कि सहकारी संघवाद की भावना के मद्देनजर केंद्र को संविधान द्वारा तय सीमाओं के भीतर अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘एक ‘विशेष प्रकार’ का संघीय ढांचा होने के नाते एनसीटीडी को संविधान द्वारा इसे प्रदत्त कार्यक्षेत्र में कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए। केंद्र और एनसीटीडी एक अद्वितीय संघीय संबंध साझा करते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि एनसीटीडी को संघ की इकाई में केवल इसलिए शामिल किया गया है क्योंकि यह ‘राज्य’ नहीं है।’ संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल रहे।
उधर, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को फैसला केजरीवाल सरकार के पक्ष में आने के दूसरे दिन एक बार फिर से केंद्र के साथ टकराव की स्थिति पैदा होती हुई दिख रही है। इस फैसले के आने के बाद से ही केंद्र सरकार नए विकल्पों की तलाश में जुट गई है। कानून के जानकारों की मानें तो केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दाखिल कर सकती है।
इसके साथ ही केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह मामला बड़ी बेंच में भेजने की अपील भी कर सकता है। पुनर्विचार याचिका या बड़ी बेंच का केंद्र के पक्ष में फैसला नहीं आता है तो फिर केंद्र सरकार संसद में कानून लाकर इस फैसले को बदल सकता है। हालांकि, दिल्ली सरकार को इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में दोबारा से चुनौती देने का अधिकार रहेगा।