राजीव रंजन नाग: नई दिल्ली। ‘यह एक अशांत संसद होने जा रही है और विपक्ष सरकार को आड़े हाथों लेने जा रहा है।’ विपक्ष के नेता के तौर पर उनकी यह भूमिका राहुल गांधी की क्षमता का भी परीक्षण करेगी। हालांकि वे 25 साल से ज़्यादा समय से राजनीति में हैं और पांच बार सांसद भी रह चुके हैं – लेकिन वे कभी मंत्री नहीं बने या अपनी पार्टी के लिए आम चुनाव नहीं जीते। ‘उन्हें आगे बढ़कर नेतृत्व करना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि उनकी पार्टी या विपक्षी गुट में कोई मतभेद न हो।’ ‘जो गलत होगा या फिर जो सही होगा उसके लिए वे जवाबदेह होंगे।’ जनता ने एक निरंकुश सत्ता के समानांतर एक मजबूत और जीवंत विपक्ष दिया। लिहाजा उन पर नजर रखी जायेगी।
2014 के बाद से, किसी भी विपक्षी दल ने लोकसभा में विपक्ष के नता पद पर दावा करने के लिए जरुरी 543 सीटों में से 10 प्रतिशत या 55 सीटें नहीं जीती थीं, लेकिन हाल के आम चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें जीतीं हैं। नरेंद्र मोदी सहयोगियों की मदद से सत्ता में बने हुए हैं, लेकिन उनकी पार्टी लगातार दो बार भारी जीत के बाद इस बार बहुमत से चूक गई।
कांग्रेस पार्टी ने कहा कि राहुल गांधी यह सुनिश्चित करेंगे कि केन्द्र सरकार हर समय जवाबदेह रहे। गांधी अब उन समितियों में शामिल होंगे जो महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ करती हैं और प्रधानमंत्री के प्रति संतुलन के रूप में कार्य करती हैं। कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि उनकी नियुक्ति भारत के लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत है – विपक्ष ने बार-बार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ;भाजपाद्ध पर सत्तावाद का आरोप लगाया है, हालांकि इस आरोप को वह नकारती रही है।
आम चुनाव से पहले राहुल गांधी ने पूरे भारत में दो लंबी पदयात्राओं का नेतृत्व किया। इन पदयात्रों से उनमें जमीन से जुड़ने की सीख मिली। राजनीतिक अनुभव विकसित हुआ और लोंगों से मिल कर समस्याओँ को करीब से समझने का अवसर मिला।
इंडिया गठबंधन सहयोगियों के साथ बैठक के बाद राहुल गांधी को विपक्ष का नेता ;एलओपीद्ध नियुक्त किया। गठबंधन ने आम चुनाव में उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया। इस गठबंधन ने 234 सीटें हासिल कीं। हालांकि यह नरेंद्र मोदी को सरकार बनाने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं था, लेकिन इसने सुनिश्चित किया कि भाजपा अकेले 272 के आंकड़े तक नहीं पहुंच सकती और उसे सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
लोक सभा स्पीकर के चुनाव के दिन 25 जून को गांधी अपनी नई भूमिका में पहली बार संसद में उपस्थित हुए। उन्होंने सदन के अध्यक्ष नियुक्त किए गए भाजपा के ओम बिरला को बधाई दी और उन्हें विपक्ष के समर्थन का आश्वासन दिया, लेकिन साथ ही विपक्ष की राय को भी सुनने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सहयोग विश्वास के आधार पर हो। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि विपक्ष की आवाज को इस सदन में प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जाए।’
एलओपी के रूप में, श्री गांधी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्च-स्तरीय समितियों का हिस्सा होंगे। ये समितियाँ भारत की शीर्ष अपराध जाँच एजेंसी के निदेशक और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, सतर्कता आयोग के साथ सीबीआई के निदेशक जैसे प्रमुख पदों की नियुक्ति में विपक्ष के नेता की अहम भूमिका होती है।
इस नई व्यव्स्था के बाद संसद में मजबूत विपक्ष बहस के लिए ज्यादा जगह प्रदान करेगा, जिससे सरकार के लिए बिना चर्चा के विधेयक पारित करना मुश्किल होगा। ‘सत्तारूढ़ बहुमत के लिए सांसदों को निलंबित करना और अयोग्य ठहराना भी आसान नहीं होगा, जैसा कि हाल के दिनों में देखा है।’
पिछले साल, कुछ प्रमुख विधेयक – जिनमें भारत के मौजूदा आपराधिक कानूनों को बदलने वाले विधेयक भी शामिल हैं – संसद में लगभग बिना किसी बहस के पारित हो गए थे। इससे पहले संसद में सुरक्षा उल्लंघन के खिलाफ विरोध करने के बाद 143 विपक्षी सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था।
सुगाता श्रीनिवास राजू, एक राजनीतिक पत्रकार जिन्होंने श्री गांधी पर एक किताब लिखी है, का कहना है कि उनकी नई भूमिका कांग्रेस नेता को एक नेता के रूप में अपनी छवि को फिर से बनाने में भी मदद करेगी। उन्होंने कहा, ‘यह नई जिम्मेवारी न केवल बहुत बड़ी जिम्मेदारी लेकर आई है, बल्कि श्री गांधी से संसद में अधिक व्यवस्थित, मेहनती और धैर्यवान होने की भी उम्मीद की जाएगी, जो कि पिछले 20 वर्षों में वे बिल्कुल नहीं रहे हैं।’
श्री गांधी 2017 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने, लेकिन 2019 के चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद उन्होंने पद छोड़ दिया। श्री मोदी और भाजपा द्वारा उन्हें अक्सर एक गैर-गंभीर राजनेता के रूप में मज़ाक उड़ाया जाता रहा है। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में देश भर में उनके द्वारा किए गए दो लंबे मार्च ने उन्हें उस छवि को बदलने में मदद की। उन्होंने दोनों संसदीय सीटों – केरल राज्य के वायनाड और उत्तर प्रदेश के रायबरेली – पर भारी बहुमत से जीत हासिल की। श्रीनिवासराजू का कहना था कि ‘नई भूमिका को स्वीकार करने का निर्णय उनके अंदर एक नए आत्मविश्वास का संकेत देता है।’
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