पितृ पक्ष यानी यह वक्त ऐसा होता है जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं। हिंदू एवं अन्य भारतीय धर्मों में किया जाने वाला एक कर्म है जो पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने और उन्हें याद करने के निमित्त किया जाता है लेकिन बदलते वक्त के साथ-साथ अब लोगों की धारणाएं भी बदल रही है कहीं कहीं लोग पूरी विधि विधान के साथ पितरों को याद करते हैं। तर्पण 11, 21, 51 सामर्थ्यानुसार ब्राह्मण को भोजन, दान वगैरा करते हैं लेकिन अब आर्थिक सामर्थ्य के साथ साथ व्यहारिक परिदृश्य भी बदल गया है। लोग जरूरतमंद को दान करने लगे हैं, अनाथालय में भोजन खिलाने लगे हैं, गाय को चारा, चिड़िया को दाना इस तरह के कार्यों में ज्यादा विश्वास करने लगे हैं हालांकि यह तरीका गलत नहीं लगता क्योंकि जरूरतमंद की मदद करना दान की ही श्रेणी में आता है। पशु पक्षियों की देखभाल आज की जरूरत बन गई है।
यूं भी हमारे यहां माता-पिता, गुरु को देवतुल्य माना जाता है। पितरं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्वदेवता: यानि पितरों के प्रसन्न होने पर देवता प्रसन्न हो जाते हैं और उनके सम्मान में हम दान, भोजन या किसी की मदद करना ही क्यों ना हो वह श्राद्ध ही होता है। अपने प्रियजनों के स्मरण में हम वृक्षारोपण भी कर सकते हैं जो कि आज के समय की जरूरत है। वैसे मेरा है कि यदि हम मन से याद करते हैं अर्थात भाव दान देते हैं तो वह सबसे बड़ा श्राद्ध है क्योंकि आडंबर से ज्यादा श्रद्धा का महत्व है। मुझे लगता है कि भावधान कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि वही हमारे पूर्वजों तक पहुंचती है, भौतिक चीजें नहीं क्योंकि आत्मा का कोई स्वरूप नहीं है तो सम्मान पूर्वक याद किया जाना ही महत्वपूर्ण हैं जो उन तक पहुंचता है बाकी तो जो कुछ सांसारिक नियम बनाए गए हैं तो उनका पालन करना ही चाहिए।
ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वी लोक में देवता उत्तर गोल में विचरण करते हैं और दक्षिण गोल भाद्रपद मास की पूर्णिमा को चंद्रलोक के साथ साथ पृथ्वी के नजदीक से गुजरता है। इस मास की प्रतीक्षा हमारे पूर्वज सालभर करते हैं। वे चंद्रलोक के माध्यम से दक्षिण दिशा में अपनी मृत्यु तिथि पर अपने घर के दरवाजे पर पहुंच जाते हैं और वहां अपना सम्मान पाकर अपनी नई पीढ़ी को आशीर्वाद देकर वापस चले जाते हैं। फिर भी यही कहना चाहूंगी यदि परिवार के लोग मन से भाव दान करें तो यह उत्तम श्राद्ध और श्रद्धा होगी।
– प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात