लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू), लखनऊ के फार्मास्युटिकल साइंसेज़ विभाग के विभागाध्यक्ष एवं संकायाध्यक्ष प्रो. पी.एस. रजनीकांत और उनकी शोध टीम को मधुमेह से ग्रसित रोगियों के घावों के उपचार के लिए एक नवीन नैनोफाइबर तकनीक विकसित करने के लिए पेटेंट प्रदान किया गया है। यह नवाचार भारत में अपनी तरह का पहला है, जो मधुमेह से प्रभावित रोगियों के लिए घाव की देखभाल और उपचार में एक बड़ी सफलता माना जा रहा है। इस उपलब्धि पर बीबीएयू के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने प्रो. रजनीकांत और उनकी टीम को बधाई दी और इसे विश्वविद्यालय के लिए अत्यंत गौरव का विषय बताया।
यह परियोजना भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (DST-SERB) द्वारा समर्थित रही है। पेटेंट की गई नैनोफाइबर तकनीक को विशेष रूप से मानव त्वचा की संरचना की नकल करते हुए तैयार किया गया है, जिससे घाव भरने की प्रक्रिया पारंपरिक तरीकों की तुलना में कहीं अधिक तेज हो जाती है। यह तकनीक विशेष रूप से क्रोनिक डायबिटिक फुट अल्सर से पीड़ित रोगियों के लिए आशाजनक विकल्प प्रदान करती है, जिनके लिए अब तक प्रभावी उपचार एक चुनौती रहा है। प्रो. रजनीकांत की टीम – जिसमें डॉ. स्नेहा आनंद, प्रशांत पांडेय और दिलीप कुमार शामिल हैं – इस परियोजना पर कई वर्षों से काम कर रही है। टीम का उद्देश्य उन्नत दवाओं और तकनीकी नवाचारों के माध्यम से चिकित्सा क्षेत्र की जटिल समस्याओं का समाधान करना है।
यह सफलता न केवल भारतीय बायोमेडिकल अनुसंधान में बढ़ते नवाचार की झलक देती है, बल्कि यह स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में नैदानिक अनुप्रयोगों और वाणिज्यिक विकास की संभावनाओं के नए द्वार भी खोलती है। विश्वविद्यालय अब इस तकनीक को बाजार में लाने के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षणों और औद्योगिक सहयोग की दिशा में प्रयास कर रहा है।
यह उपलब्धि बीबीएयू की अत्याधुनिक अनुसंधान क्षमता, नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं में सार्थक योगदान का प्रतीक है।
Home » मुख्य समाचार » बीबीएयू के प्रो. पी.एस. रजनीकांत को मधुमेह घावों के उपचार में नैनोफाइबर तकनीक की खोज के लिए मिला पेटेंट