Monday, November 25, 2024
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चुनावी बिसात पर सोदेबाजी के दौर शुरू

⇔कोई बिक रहा लाखो मे, तो कोई हजारो में
⇔चुनावी कांकसो ने बनाया प्रत्याशियों को चक्करघिनी
⇔काकसो की पोल खुलते ही प्रत्याशियों ने झाडा पल्ला
⇔मौकापरस्तो द्वारा धन की ठगाई का चुनावी चैरस पर खुला धंधा
हाथरसः नीरज चक्रपाणि। जनपद की सभी नगर पालिका और नगर पचायत सीटो पर चुनाव लड रहे पार्टीगत व निर्दलीय प्रत्याशियो के चुनावी दरबारो मे नामाकनं से लेकर आज तक अपने को वोटो का ठेकेदार बताकर जुडे रहे चुनावी काकसो की चकाचैध मे उस समय गिरावट आना शुरू हो गई, जब ऐसे लोगो की पोल प्रत्याशियो के समक्ष खुलना शुरू हो गई यही कारण है कि मौकापरस्तो को प्रत्याशी अब भाव नही दे रहे। इस तरह के यह प्रशशंक/ विजय श्री दिलाने वाले जादुई व्यक्तत्व के कथित धनी, इन लोगो द्वारा अजब गजब सूचना लाने वाले/सदेश बाहको व पल पल पर मतदाताओ के गाणित मे उलटफेर करने वाले गाणितज्ञो, स्वम जातिय मठाधीशो तथा अखबारी काॅलमो के द्वारा प्रत्याशियो को हराने जिताने वाले खबरचीयो के पिछलगूओ की संख्या से पार्टीगत व निर्दलीय प्रत्याशियो के दरबारो मे अब तक काफी भाव दिये गये लेकिन चुनावी चैरस पर भाजपा, सपा, बसपा, व निर्दलीय रूप से चुनाव लड रहे प्रत्याशियो की मजबूरी थी कि वह नामाकंन की बेला के बाद वह शहनशीलता, दयालुता तथा अतिथि देवो भव जैसे गीता ज्ञान पर खरे उतरे। और ऐसे लोगो की नगद नारायण से लेकर खानपान की व्यवस्था बनाये रखे, उक्त लोग आत्माओ के आवेदन पर तक्षण ही उपलब्ध करा पाये। मतदान की बेला ज्यो-ज्यो निकट आती जा रही है। प्रत्याशियो के बीच चुनावी बिसात के काकसो की पोल खुलती जा रही है। यही कारण है कि अपनी हारजीत के लिये लगातार रात दिन दिमागी मेहनत कर रहे, इन प्रत्याशियो के दिमागी मिजाज अपने पुराने अन्दाज मे आते जा रहे है। और अपनी थकान मिटाने को लेकर अधिकतर प्रत्याशियो ने अब अपनी हार को मददेनजर रखते हुये चुनावी खर्चे का हिसाब लगाने के लिये बंद कमरो के अदंर घुसकर अपने समर्थन का सौदा करने तथा ऐसे मौका परस्तो से निपटने उन्हें अलबिदा कहने के लिये दरबार मे अपने खास सिपेसलाहगारो को जिम्मेदारी सौप कर थकान मिटाने और सौदेबाजी के दौर जीतने बाले प्रत्याशियो से करने की चाले चली जा रही है। जिसके कारण मौकापरस्तो की इस बिरादरी के लोगो को करारा झटका लगा। और अब यह बेचारे मौका परस्त न घर के गिने जा रहे है न ही घाट के ? चुनावी चक्रव्यूह के द्वारा एक दूसरे का किला भेदने के लिये प्रत्याशी के समक्ष इन मौकापरस्तो ने सारे हथकडे अपनाये, चुनावी काकसो की इस बिरादरी के लोगो ने प्रत्याशियो को ठगने के तरह तरह के हथकडे अपनाये, सामूहिक भोज, रोग निदान दबा के नाम पर धन, जाति बिरादरी की दावत मे मुर्गा मुस्सलम व सुरा पिलाने के नाम पर जमकर मौज,। चुनावी काकसो का अब समय बदल गया तथा ऐसे चुनावी काकस अब इस बात पर नजर गडाये हुये है कि कौन सा प्रत्याशी जीत के निकट है और कब ऐसा मौका मिले कि वह एक बार फिर चमचागिरी के जरिये जीतने वाले से निकटता बना सके और पांच साल तक दूध मलाई खा सके।
छुटभईये नेताओ की मौज मस्ती
कोई बना विभीषण कोई बना खुफिया
हाथरस। नगर निकाय चुनावी महासग्राम मे छूटभइये नेताओ की मौज बन आई है। जब उनका प्रत्याशी उन्हें भाव नही दे रहा। तो वह रातो रात निष्ठा बदल कर दूसरे प्रत्याशी के पाले मे खडा दिखाई देता है। इस तरह के खेल मे धनबल का खेल भी निष्ठा बदलने के के साथ खेल मे खेला जा रहा है तो कही पर पार्टी मे महत्पवूर्ण पद देने का लालच दिया जा रहा है। जबकि कुछ लोग ऐसे भी सक्रिय है जो कि अन्दर खाने प्रत्याशियो के रणनीतिकारो द्वारा बनाई गई रणनीति के तहत दूसरे प्रत्याशियो के पक्ष मे ही पाला बदलते दिखाई देगे। इस तरह की रणनीति रणनीतिकारो ने कब ओर क्यो रची गई। इस बात का जबाब तो वही दे सकते है। लेकिन ऐसे लोगो के अन्दर क्या है बाहर क्या है। यह तो पब्लिक है उसे विकास की बात पर वोट देना है। अथवा उन लोगो को बोट देना है जो प्रत्याशी धनबल से दूर रहकर विकास की इच्छा धारण कर चुनावी मैदान मे उतरे है।