रायबरेलीः जन सामना ब्यूरो। मैन पावर की कमी। आवश्यक उपकरणों का अभाव। शायद यही वजह है कि गाड़ियों की फिटनेस सिर्फ कागजों पर है। बावजूद इसके, जिले में दौड़ रहे लगभग एक चैथाई वाहनों का कागजी फिटनेस भी नहीं है। इन व्यावसायिक वाहनों में ट्रक, बस ही नहीं, बल्कि एंबुलेंस और स्कूली वाहन भी शामिल हैं। जर्जर वाहनों से सवारियां ढोई जा रही हैं, जिनकी वजह से सड़क पर चल रहे हर शख्स की जान को खतरा बना रहता है। खासकर हाइवे पर हो रहे हादसों में बड़ी संख्या में लोगों की जान इसी वजह से जा रही है। सड़क पर मौत दौड़ रही है। अधिकारी संसाधनों की कमी का हवाला दे रहे हैं। नियम कानूनों का खुलेआम मखौल उड़ाया जा रहा है। आमजन की जान सांसत में है। फिर भी, जिम्मेदार इस समस्या की ओर कतई ध्यान नहीं दे रहे हैं।
कोहरे और धुंध में होते हैं सबसे ज्यादा हादसे
ठंड शुरू हो गई है। सुबह और शाम के वक्त सड़क पर कोहरे और धुंध की वजह से वाहनों की रतार धीमी हो गई है। डेंजर स्पॉट पर सचेतक जरूर लगाए गए हैं। इसके बावजूद हादसों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसकी मुख्य वजह अनफिट गाड़ियां और इन पर रिफलेक्टर टेप का न होना पाया गया है। चंद रुपये बचाने के लिए वाहन स्वामी गाड़ियों को दुरुस्त नहीं करा रहे, जिसका खामियाजा हर आमोखास को भुगतना पड़ रहा है।
प्रतिमाह औसतन सौ वाहनों का चालान
वाहनों की जांच के दौरान हर माह लगभग सौ वाहनों का चालान और सीजर किया जा रहा है। ये वाहन बिना फिटनेस ही फर्राटा भरते मिल रहे हैं। कई बार ऐसे वाहन, जिन्हें देखने भर से उनकी खस्ताहाल का अंदाजा हो जाता है, उनका फिटनेस सार्टिफिकेट देखकर अधिकारी भी भौचक्क रह जाते हैं। चूंकि, उनके पास सार्टिफिकेट होता है। इसलिए कार्रवाई होना संभव नहीं होता।
महज तीन सौ में बन रही रसीद
गाड़ियों पर वाहन रिफलेक्टर लगवाने का खर्च औसतन 12 सौ रुपये आता है। लेकिन टेप लगवाने की जगह सिर्फ दुकान से रसीद बनवा ली जाती है। रसीद का चार्ज महज तीन सौ रुपये आता है। अगर ये रिफलेक्टर टेप लग जाए तो कहीं भी अगर गाड़ी खराब होती है, उस पर रोशनी पड़ने पर टेप चमकने लगता है। इससे आगे या पीछे से आ रहे वाहनों की रतारी धीमी करके हादसों से बचा जा सकता है।
यहां एंबुलेंस तक का फिटनेस नहीं
शहर में चल रहे कई नर्सिंग होम में लगी एंबुलेंस तक का फिटनेस प्रमाणपत्र नहीं बना है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि एंबुलेंस की आड़ लेकर इन्हें सड़कों पर दौड़ाया जा रहा है। क्योंकि आपातकालीन सेवा है, इसलिए अधिकारी भी इन्हें नहीं रोकते। बदस्तूर यही हाल स्कूली वाहनों का भी है। जिन शिक्षण संस्थानों में परिवहन की व्यवस्था नहीं है, वहां वाहन स्वामी प्रबंधन से साठगांठ करके अपने वाहनों से छात्रों को लाने ले जाने का काम कर रहे हैं क्योंकि वाहन पर स्कूली बच्चे होते हैं, इसलिए उन्हें नहीं रोका जाता। ये भी अपना फिटनेस नहीं बनवाते।
पचास रुपये रोजाना है जुर्माना
गाड़ी की अगर फिटनेस की अवधि खत्म हो गई है तो उस पर प्रतिदिन 50 रुपये जुर्माना लगाया जाता है। सामान्य फीस 850 रुपये है। सात सीटर और उसे बड़ी गाड़ी का ही फिटनेस बनता है। रायबरेली में गाड़ियों की फिटनेस एआरटीओ प्रशासन के जिम्मे है। यहां राजस्व निरीक्षक का पद रिक्त चल रहा है।