Monday, November 25, 2024
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बदला न लेकर खुद को बदलने से होगा जीवन सफल………..

⇒विराट संत सम्मेलन के तीसरे दिन उमड़े अपार श्रद्धालु
⇒गीता सार का विस्तार से बताया संतों ने महत्व
फिरोजाबादः जन सामना संवाददाता। अखिल भारतीय सोहम महामण्डल शाखा के तत्वावधान में रामलीला प्रांगण में आयोजित भागवत कथा व विराट संत सम्मेलन में तीसरे दिन श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ती रही। इस दौरान भक्तों ने श्रीमद्भागवत कथा उसके बाद विराट संत सम्मेलन का धर्म लाभ उठाया।
सोहम पीठाधीश्वर स्वामी सत्यानंद महाराज के साथ स्वामी शिवचेतन महाराज, स्वामी शुक देवानंद, स्वामी ज्ञानानंद, स्वामी अनंतानंद, स्वामी निगमानंद, स्वामी परमानंद, स्वामी रामानंद, स्वामी प्रीतमदास ने प्रमुख रूप से गीता से जुड़े सार का महत्व बताया। बताया गया कि अर्जुन की हृदय की दुर्बलता दूर करते हुये भगवान श्रीकृष्ण ने कहा जब तक बुद्धि विवेक नहीं होगा, तब तक भावना विकसित नहीं होगी। सत्य, असत्य का विवेक होना चाहिये तेरे अंदर। कहा परमात्मा का जो नियम है उसी को स्वीकार कर उसी के अनुरूप चलना चाहिये, मगर यही कठिनाई है ऐसा हो नहीं पाता। ज्ञानानन्द महाराज ने शास्त्रों, पुराणों, रामायण, भागवत का सार जिसमें छिपा है उस मंत्र को बताया। उन्होंने कहा कि अगर जीवन में समय आता है तो किसी से बदला न लें हो सके तो अपने को बदल दें। जिन्होंने अपनो को बदला है उसी का साथ भगवान ने दिया है। दुर्योधन, द्रोपदी एक ही राशि हैं लेकिन भगवान ने किसका साथ दिया द्रोपदी का, जानते हो क्यों, उन्होंने बताया कि जब द्रोपदी का बदला लेने के लिये भगवान श्रीकृष्ण और पांडवों ने अश्वत्थामा को उनके समक्ष प्रस्तुत किया और कहा इसे पकड़कर लाये हैं तुम मार दो या हमें मारने की आज्ञा दो। इस पर द्रोपदी ने कहा इसके पिता है जबाव मिला नहीं, भाई है जबाव मिला नहीं, मां है हां, उन्होंने कहा कि मैं खुद एक मां हू और मां से बच्चे का बिछड़ने का दर्द जानती हूं, दूसरी मां को ये दर्द नहीं दे सकती। तब से भगवान श्रीकृष्ण द्रोपदी के साथ हैं। इसी तरह रामायण का उदाहरण देते हुये रावण के भाई विभीषण की प्रेरक बात बतायी। कहा जब तक बदला लेने का मन नहीं बदलोगे तब तक भावना नहीं बदलेगी। विराट संत सम्मेलन के दौरान काफी संख्या में महिला-पुरूष श्रद्धालुओं की भीड़ मौजूद रही।