कानपुर, जन सामना ब्यूरो। मानवाधिकार सुरक्षा एवं संरक्षण आर्गेनाइजेशन द्वारा मंगलवार को निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए कानून में संशोधन करने हेतु विशाल जनसभा का आयोजन किया गया। मानवाधिकार सुरक्षा एवं संरक्षण आर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय महामंत्री तपन अग्निहोत्री ने बताया की वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार ने निजी स्कूलों पर अंकुश लगाने के लिए जो कानून बनाया है वह जनता को सिर्फ भ्रमित करने वाला है उसमे कोई ऐसे ठोस कदम नहीं उठाए गए है। जिससे अभिभावकों को सीधा फायदा मिल सके एक तरफ तो पुराने विद्यार्थियों के फीस बढ़ोत्तरी के तरीके में नकेल कसी है। वही दूसरी तरफ नए प्रवेश वाले विद्यार्थियों को लेकर उनको मनमानी करने की पूरी छूट दे दी गयी है। सरकार द्वारा बनाया गया कानून भ्रामक है वर्तमान कानून में सरकार ने जनता को सिर्फ गुमराह किया है। कानपुर प्रभारी विनोद वर्मा ने कहा की संस्था पूर्व में 22 अप्रैल 2017, से निजी स्कूलों की मनमानी को रोकने के लिए कानून बनाने के लिए मुहिम की शुरुवात की थी। इसके बाद 19 जुलाई 2017, से 22 सितंबर 2017, तक सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में हस्ताक्षर अभियान चलाया गया था। तदोपरांत 23 सितंबर 2017 को सरसईया घाट चैराहे से जिलाधिकारी कार्यालय तक हस्ताक्षर युक्त बैनर के साथ मानव श्रंखला बनाकर जिलाधिकारी कानपुर के माध्यम से मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन सौपा गया था। तदोपरांत 25 फरवरी 2018 से 20 मार्च 2018 तक उत्तर प्रदेश के 267 विधायकों एवं मंत्रियो को ज्ञापन सौपा गया था लेकिन इसके बाद भी सरकार की नियत कानून बनाने की न दिखने पर संस्था ने 01 अप्रैल 2018 को नानाराव पार्क फूलबाग कानपुर में फिर से धरना प्रदर्शन किया और सरकार को एक हफ्ते में कानून लाने के लिए कहा गया।
सुरेश सिंह ने बताया कि 01 अप्रैल 2018 के धरना प्रदर्शन के बाद ही सरकार ने निजी स्कूलों पर नकेल कसने के लिए विधेयक लाने पर मजबूर हुयी इसी विधेयक में थोड़ा सा बदलाव करते हुए सितंबर में इसे कानूनी जामा पहनाया गया, लेकिन सरकार की नियत में खोट के चलते उसको जनता के हित का नहीं बनने दिया गया सिर्फ जनता को झुंझना दिखाया गया।
पवन पाल ने बताया सरकार जनता को बेवकूफ न समझे की वो भ्रमित कानून देकर जनता का विश्वास जीत लेगी सरकार को वास्तव में ठोस कदम उठाने पड़ेंगे तभी इस कानून की सार्थकता सिद्ध होगी।
प्रतीक खन्ना ने बताया की सरकार द्वारा जो जिला स्तरीय कमेटी बनाई गयी है वो स्वागत योग्य है तथा इसके साथ फीस वृद्धि का तरीका भी स्वागत योग्य है। लेकिन एक ही कक्षा में दो तरह की जो फीस की व्यवस्था की गयी है वो हंसी का विषय बन गया है की सरकार ने स्कूल वालों को खुश करने के लिए कानून के साथ कैसा खिलवाड़ किया है।
संजय सोनी ने बताया कि क्योंकि ज्यादातर स्कूल राजनीतिक प्रतिनिधियों के है इसलिए कोई ठोस कानून नहीं बनाना चाहती है, लेकिन जनता सर्वोपरि है। सरकार को ये ध्यान रखना चाहिए जनता से सरकार है सरकार से जनता नहीं।
योगेश अग्निहोत्री ने बताया की हमे एक ऐसा कानून चाहिए जिससे जनता को सीधे फायदा मिले कानून सरल होना चाहिए न की इतना जटिल की आम जनता उसे समझ ही न सके और हमेसा भ्रम की स्थित में रहे। सरकार को जनता के हित में कानून बनाना चाहिए और शिक्षा को सरल एवं सस्ता बनाना चाहिए।
हरभजन सिंह भट्टी ने बताया की संस्था ने 22 अप्रैल 2017 को आम जन मानस से वायदा किया था की अप्रैल 2019 में वो निजी स्कूलों पर अंकुश लगाने वाला कानून सरकार से बनवा कर लागू करवा कर रहेंगे और हमारी संस्था इसे अप्रैल 2018 में ही बनवाने में एवं लागू करवाने में कामयाब रही ये बहुत बड़ी उपलब्धि है अब सिर्फ आम जनमानस के लिए हितकारी कानून संसोधन करवाकर बनवाना है।
संस्था की प्रमुख मांगे
1 कक्षावार अधिकतम वार्षिक शुल्क नियत किया जाये
कक्षा 1-5 तक की फीस 15000 रुपये वार्षिक, कक्षा 6-8 तक की फीस 18000 रुपये वार्षिक, कक्षा 9-10 की फीस 22000 रुपये वार्षिक एवं कक्षा 11-12 की फीस 25000 रुपये वार्षिक
2. प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबे 4 साल से पहले न बदली जाए तथा कापियों किताबों की सूची 60 दिन पहले वेबसाइट पर डाली जाए।
3. स्टेशनरी आदि किसी भी शिक्षण सामाग्री पर स्कूल आदि का नाम अंकित न किया जाए।
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