कानपुर: महेंद्र कुमार। पूरे देश में ही विजय दशमी त्यौहार बड़े ही हर्षोलास के साथ मनाया जाता है और इस अवसर पर कई जगह मेले का आयोजन भी किया जाता है, जहां भगवान राम और रावण के चरित्र को दर्शाने वाली रामलीला का आयोजन और लंकापति रावण का पुतला दहन किया जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर में एक ऐसी जगह है जहा दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है इतना ही नहीं यहाँ पूजा करने के लिए रावण का मंदिर भी मौजूद है जो केवल दशहरे के मौके पर खोला जाता है। शहर के शिवाला इलाके में बने सौ से भी ज्यादा वर्षो पुराने इस रावण मंदिर में विजयदशमी के रोज पूरे विधिविधान से दशानन का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रंगार किया जाता है। उसके बाद पूजन के साथ स्तुति कर आरती की जाती है। माना जाता है कि रावण जहाँ दुष्ट और पापी था, वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं, उसमे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो परन्तु उसके गुणों को विस्मृत नहीं किया जा सकता। ब्रह्म बाण नाभि में लगने के बाद रावण की मृत्यु से पहले प्रभु श्री राम ने भी लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरो की तरफ खड़े हो कर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो क्योकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा,रावण का यही स्वरूप पूज्यनीय है और इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर रावण के पूजन का विधान है। लोग हर वर्ष इस मंदिर के खुलने का इन्तजार करते है और मंदिर के पट खुलते ही पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना के साथ रावण की आरती भी की जाती है। शहर में मौजूद रावण के इस मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि यहाँ मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती है और लोग इसी लिए यहाँ दशहरे पर रावण की विशेष पूजा करते हैं।