महोब्बत के आगे जो ममता ले आती है। वो माँ कहलाती है।
जीत के लिए जो लड़ना सिखाती है। वो माँ कहलाती है।
परतव खुदा उसका घर फरिश्तों का वो अपने इस उरुज़ से वेपरवाह नज़र आती है।वो माँ कहलाती है।
कोख में पालना जन्म देना काम जननी का है।
जो जिन्दगी जीना सिखाती है।वो माँ कहलाती है।
जमाने की चकाचौंध में चेहरे कई है नजर में
अंधियारो में जिसको सदा बुलाती है। वो माँ कहलाती है।
किसी को चाह सूरत कि कोई सीरत पे मरता है।
एहसास था “साहब” एक जो तब से प्यार बरसाती है।वो माँ कहलाती है।
-अनिमेष मुँगारिया साहब