Tuesday, November 26, 2024
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मजदूरों की मजबूरी समझें डॉ. मनोज वार्ष्णेय

विश्व में इस समय कोरोना का भय पूरी तरह फैला हुआ है। दुनिया कोरोना की गिरफ्त में हैं। सामान्य जन जीवन बाधित हुआ है। भारत भी कोरोना वायरस के संक्रमण से प्रभावित हुआ है। वायरस के संक्रमण को रोकने एवं सीमित करने की दृष्टि से मा. प्रधानमंत्री महोदय का पहले जनता कर्फ्यू और अब लॉकडाउन आदेश प्रशंसा योग्य है जिसकी पूरा विश्व सराहना कर रहा है परंतु जिस तरह से विदेश से भारतीयों को लाया गया है उससे कहीं ना कहीं हमने कोरोना से संक्रमित लोगों को अपने घर में लाकर लॉक डाउन कर दिया है क्योंकि विदेश से आने वाले भारतीय नागरिकों ने अपने आपको जांच से बचाने के लिए क्रोसिन, पेरासिटामोल जैसी दवाइयों को खाकर थर्मल जांच से बचने का प्रयास किया। इससे लगता है कि कहीं ना कहीं संक्रमण हमारे बीच ही है। दूसरी महत्वपूर्ण और चिंता करने वाली बात है हजारों मजदूरों का अपने घरों की ओर पैदल ही पहुंचने का प्रयास करना। उनके पास भोजन-पानी नहीं है। महिलाओं, बच्चों के साथ ये सुरक्षित जीवन की चाह में अपने गांवों की राह पर हैं। विचार करना होगा कि लॉकडाउन करने से पूर्व भारतीय मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने का समुचित प्रयास और प्रबंधन न कर पाना प्रश्नचिन्ह लगाता है। जो प्रयास विदेशों से भारतीयों को लाने के लिए किये गये। उसी तरह के उचित नियोजित प्रयास लाॅक डाउन लगाने से पूर्व मजदूरों को उनके घर पहुँचाने अथवा उसी स्थान पर ठहरने के लिये किये गए होते इसके अलावा राज्य सरकारों ने आपस में समन्वय स्थापित कर इस पर मंथन कर एक कार्ययोजना बनाकर देश के विभिन्न राज्यों के मजदूरों को उनके अपने-अपने स्थानों तक पहुंचने का इंतजाम कर लिया होता तो इन दैनिक मजदूरों को हजारों किलोमीटर की यात्रा पैदल नहीं करनी पड़ती। हालांकि अब व्यवस्थाएं की जा रही हैं पर बहुत देर हो चुकी है•••• लेखक शिक्षक-प्रशिक्षण कार्य से जुड़े हैं। वर्तमान में प्रवक्ता पद पर डायट आगरा में कार्यरत हैं।