– पंकज के. सिंह
भ्रष्टाचार एवं कालेधन से मुक्त एक संतुलित एवं स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए बैंकिंग सुधार एक आवश्यक शर्त है। विकसित देशों ने बैंकिंग सुधार की दिशा में काफी उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए सामयिक एवं प्रासंगिक बैंकिंग सुधार एक बड़ी चुनौती है। स्विटजरलैंड ने अपनी बैंकिंग प्रणाली से अवैध धन को दूर रखने के लिए इसकी निगरानी और अन्य कानूनी प्रयास तेज कर दिया है। भारत और कुछ अन्य देशों द्वारा स्विस बैंकों में छिपाकर रखे गए काले धन के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने की चेतावनी दिए जाने के बाद इस यूरोपीय देश ने इस मुद्दे पर सख्ती बरतने का फैसला किया है। वित्त बाजार पर्यवेक्षण प्राधिकरण के अनुसार, यह फैसला ऐसे समय लिया गया है, जब कई स्विस संस्थाओं को ग्राहकों द्वारा दी गई टैक्स संबंधी जानकारी गलत पाई गई है। वित्त बाजार पर्यवेक्षण प्राधिकरण को मनी लांड्रिंग पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी भी दी गई है।
स्विटजरलैंड इन दिनों टैक्स मामले पर भारत और कुछ अन्य देशों के साथ आपसी सहयोग बढ़ाने के प्रयास कर रहा है। कर चोरी के मामलों को लेकर कई स्विस बैंकों पर अदालतों में मामले चल रहे हैं। प्राधिकरण ने कहा कि सीमा पार से धन प्रबंधन को लेकर 2014 में अंतरराष्ट्रीय दबाव बना रहा। वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले वर्षो में भी वित्तीय क्षेत्र पर यह दबाव बना रहेगा। इसने कहा कि अमेरिका की तर्ज पर चलते हुए जर्मनी, फ्रांस, बेल्जियम और अर्जंेटीना ने हाई प्रोफाइल आपराधिक जांच की शुरूआत की है। साथ ही भारत और इजरायल ने आपराधिक जांच शुरू करने की धमकी दी है। नियामक संस्था स्वयं भी इन मामलों पर अपनी निगाह बनाए हुए है।
विदेशों में जमा कालेधन को देश में वापस लाने के लिए भारत द्वारा विभिन्न संभव तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। विश्व के अनेक देशों से इस संदर्भ में सूचनाएं साझा की जा रही हैं। विदेशों में जमा कालेधन के मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बेहद महत्वपूर्ण खुलासा हुआ है। इसके अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय एचएसबीसी बैंक के विश्वभर के एक लाख खाताधारकों के विषय में सूचनाएं लीक हुई हैं। इस घटना को स्विस लीक्स की संज्ञा दी गई है। इन विदेशी खाताधारकों की सूची में 1195 भारतीयों के भी नाम हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध अपराधी, तानाशाह, ड्रग माफिया और कुख्यात आतंकी संगठनों के खाते इस सूची में शामिल हैं। पिछले तीन वर्षों से गृह युद्ध की विभिषिका झेल रहे सीरिया के तानाशाह बसर-अल-असद के परिजनों के खाते भी इस सूची में शामिल हैं। चीन में 1989 में लोकतंत्र समर्थक नागरिकों का ‘थ्यान अन मन चैक’ पर नरसंहार कराने वाले तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री ली पेंग के परिजनों के नाम भी इस सूची में शामिल हैं।
ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के परिजनों के नाम भी इस सूची में शामिल हैं। फॉमूर्ला वन रेसर माइकल शूमाकर, मोरक्को के राजा मोहम्मद षष्ठ्म, बहरीन के प्रिंस सलमान बिन हमद तथा सऊदी अरब शाही परिवार के दर्जनों व्यक्तियों के नाम इस सूची में लाभार्थी या खाताधारक के रूप में दर्ज हैं। डाटा रूपी इस दस्तावेज को सबसे पहले एचएसबीसी के एक पूर्व कर्मचारी हर्वे फॉलसियानी ने हासिल किया था। बाद में वह व्हिसल ब्लोअर बन गया और उसने 2008 में इस डाटा को फ्रांस सरकार को सौंप दिया। इस सूची के आधार पर विश्व के शीर्ष 10 धनराशि जमाकर्ता देश क्रमशरू स्वीट्जरलैंड, ब्रिटेन, वेनेजुएला, अमेरिका, फ्रांस, इजरायल, इटली, बहामास, ब्राजील तथा बेल्जियम हैं।
विश्व में जहां एक ओर समृद्ध पश्चिमी देश विकास और खुशहाली की नई इबारत लिख रहे हैं, वहीं विश्व के डेढ़ सौ से अधिक देश आज भी भयंकर विपन्नता और भुखमरी से बेहाल हैं। अनेकानेक स्वास्थ्य समस्याओं और महामारियों के कारण निर्धन देशों की अर्थव्यवस्था और अधिक डावांडोल होती जा रही है। दक्षिण एशिया व पश्चिम अफ्रीका के अधिकांश देश विशालकाय टर्न-ओवर वाली फार्मास्युटिकल कंपनियों की प्रयोगशाला बनते दिखाई पड़ रहे हैं। ऐसा लगता है कि इन गरीब देशों के बदहाल नागरिकों को इन विशालकाय बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कंपनियों द्वारा एक बाजार के रूप में देखा जा रहा है। इन्हीं देशों में लगातार नई-नई महामारियों और रोगों का प्रकोप और विस्तार निरंतर बना ही रहता है।
संपूर्ण विश्व में आर्थिक और प्राकृतिक संसाधनों के असमान और अन्यायपूर्ण वितरण का दुष्प्रभाव सर्वत्र दिखाई पड़ता है। कई राष्ट्र जहां हैरतंगेज आर्थिक समृद्धि के शिखर पर पहुंच चुके हैं, वहीं सैकड़ों देश आज भी गरीबी, बीमारी, भुखमरी, बेरोजगारी और हिंसा से जूझ रहे हैं। पश्चिमी अफ्रीकी देश निर्धनता और महामारियों के दुष्चक्र से उबर नहीं पा रहे हैं। यह जांच का विषय हो सकता है कि आखिर क्यों विश्व में कहर बरपाने वाली अनेक महामारियों और वायरस की शुरुआत और जन्म इसी क्षेत्र से होता है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि इन देशों की गरीबी और लाचारी का लाभ उठाते हुए शक्तिशाली दवा निर्माता उद्योग ने इस क्षेत्र को अपनी प्रयोगशाला बना लिया है।
पश्चिमी अफ्रीकी देशों में कहर बरपाने वाली महामारी इबोला के एक बार फिर पांव पसारने की आशंका के चलते सिएरा लियोन में तकरीबन 20 लाख लोगों को तीन दिनों तक घरों में कैद रहने को कहा गया है। इस महामारी से अब तक पश्चिम अफ्रीकी देशों में 3700 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इससे इन देशों की स्वास्थ्य सुविधाएं चरमरा गई हैं। सिएरा लियोन के राष्ट्रीय इबोला प्रतिक्रिया केंद्र के प्रमुख पालो कोतेह ने कहा, ‘‘यह जानलेवा बीमारी और न फैले, इसलिए एहतियात के तौर पर 25 लाख लोगों को अपने घरों में रहने के लिए कहा गया है। सरकार और उसकी सहयोगी संस्थाओं को उम्मीद है कि इबोला के नए मामलों पर लगाम लगेगी।’’ डब्ल्यूएचओ ने इसे महामारी घोषित किया था। भारत के लिए यह बहुत आवश्यक है कि वह अपने नागरिकों को स्वास्थ्य समस्याओं और महामारियों से बचाए। यदि हम ऐसा कर सके, तो न केवल देश के आर्थिक संसाधनों को बचा सकेंगे, वरन मानव संसाधन और श्रम शक्ति का भी कहीं अधिक सदुपयोग राष्ट्र निर्माण के कार्यों में हो सकेगा। स्वस्थ नागरिकों वाला देश ही एक समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र बन सकता है। बीमार और रुग्ण नागरिकों से भरा हुआ देश भी कमजोर, अव्यवस्थित और दयनीय ही होगा।