हार की हताशा और सत्ता की चाहत व्यक्ति को किस हद तक गिरा सकती है। इसका साक्षी 6 जनवरी 2021 दिन बुधवार बना। जब विश्व के सबसे पुराने लोकतन्त्र के मन्दिर अमेरिकी कांग्रेस में लोकतन्त्र की गरिमा तार.तार हुई, विश्व की एकमात्र महाशक्ति का मुखिया अपनी कुर्सी बचाने के लिए इस हद तक गिर जायेगा, ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो। एक व्यक्ति की उन्मादी महत्वाकांक्षा की कीमत अन्ततोगत्वा एक महिला सहित चार लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। यह आश्चर्यजनक और हतप्रत कर देने वाला है कि अपनी हार को जीत में बदलने की नाकाम कोशिश करते हुए अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति ने अपने ही देश की संसद पर हिंसक हमला करवा दिया। उनके इस कृत्य की निन्दा चहुँ ओर हो रही है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जहाँ इसे राजद्रोह की संज्ञा दी वहीँ पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे बेहद अपमान एव शर्मिन्दगी का पल बताया। ट्रम्प समर्थकों की हरकत से नाराज उप राष्ट्रपति माइक पेंस ने इस अप्रत्याशित घटना को अमेरिकी इतिहास के सबसे काले दिन की संज्ञा दी है। उपराष्ट्रपति के अलावा ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के अनेक सीनेटर भी इस घटना से बेहद खफा हैं। अमेरिकी मीडिया ने तो डोनाल्ड ट्रम्प को खतरा करार देते हुए कहा कि वह कार्यालय में रहने के योग्य नहीं हैं। इसलिए उन्हें तत्काल पद से हटाया जाये। मीडिया द्वारा राष्ट्रपति ट्रम्प को महाभियोग प्रक्रिया या आपराधिक मुक़दमे के तहत जिम्मेदार ठहराने की भी मांग की गयी है। जर्मन की अन्तर्राष्ट्रीय रेडियो सेवा डॉयच वेले की अमेरिकी ब्यूरो प्रमुख इनेस पोल ने इस घटना के बाद लिखा कि हम एक ऐसे राष्ट्रपति का आखिरी करतब देख रहे हैं, जिसने बार.बार उन लोगों में हिंसा भड़कायीए जो उसे अपना नेता मानते हैं। ऐसा लगता है कि ट्रम्प अपनी पार्टी और उसके साथ ही लोकतन्त्र की बुनियाद को भी जलाकर तबाह करना चाहते हैं। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने भी ट्वीटर के माध्यम से इस घटना पर दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि वाशिंगटन डीसी में दंगा और हिंसा की खबरें देखकर मैं व्यथित हूँ।शान्तिपूर्ण तरीके से सत्ता का क्रमबद्ध हस्तान्तरण जारी रहना चाहिए। लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को गैरकानूनी विरोध के माध्यम से दबाव में आने नहीं दिया जा सकता। चारो तरफ से निन्दा झेल रहे डोनाल्ड ट्रम्प अब भले ही अपनी हार स्वीकारते हुए 20 जनवरी को सत्ता हस्तान्तरण के लिए राजी हो गये हों। परन्तु इस घटना ने लोकतन्त्र के भविष्य की जो तस्वीर प्रस्तुत की हैए वह बेहद चिन्ताजनक है। इससे प्रतीत होता है कि भविष्य में सत्ता के लिए लोग कुछ भी करने में किसी भी प्रकार का संकोच नहीं करेंगे। चुनावों में हिंसा की घटनाएँ भारत में भी अक्सर होती हैं। हारने वाले जीतने वालों पर प्रायः बेईमानी का आरोप लगाते हैं। परन्तु हार को जीत में बदलने के लिए इस तरह का हथकंडा अपनाना, आश्चर्यचकित करता हैए वह भी अमेरिका जैसे देश के सर्वोच्च पद के लिए। इससे स्वस्थ्य लोकतन्त्र की आयु बहुत लम्बी नहीं दिखायी दे रही हैद्य लोकतन्त्र में जनादेश सर्वोपरि होता है। उसका सम्मान सभी को करना चाहिए। लेकिन जैसे.जैसे लोकतन्त्र का सफर आगे बढ़ रहा है, वैसे.वैसे इसका विकृत रुप भी सामने आ रहा है। व्यक्तिवाद और परिवारवाद से जकड़ते जा रहे राजनीतिक दलों में धीरे.धीरे लोकतन्त्र का अभाव हो रहा हैद्य हाईकमान की मर्जी और महत्वाकंक्षा परोक्ष रूप से राजतन्त्र की पृष्ठभूमि बना रही है। वैसे तो किसी संगठन के सदस्य मिलकर अपने पदाधिकारी का चुनाव करते हैंद्य लेकिन राजनीतिक दलों के पदाधिकारी प्रायः पार्टी हाईकमान द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। इसीलिए वह कभी आम आदमी के नहीं हो पाते है और मात्र हाईकमान के आदेश का पालन करना ही अपना धर्म समझते हैं। कदाचित यही अमेरिका में हुआ। जिस समय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए उन्हें भड़का रहे थेए उस समय वहाँ उपस्थित रिपब्लिकन पार्टी के किसी भी पदाधिकारी ने सम्भवता न तो राष्ट्रपति का विरोध किया और न ही उन्मादी भीड़ को रोकने का प्रयास किया। जिसका परिणाम सबके सामने है।डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति बनने के बाद कई बार विवादों के घेरे में आ चुके हैं। कोविड.19 के चलते साढ़े तीन लाख से भी अधिक अमेरिकी नागरिकों की मृत्यु के लिए सीधे तौर पर ट्रम्प की जिद को ही दोषी माना जा रहा है। एक दवा को लेकर वह भारत के लिए भी अनुचित शब्दावली का प्रयोग कर चुके हैं। हालाकि बाद में उन्होंने इसका खण्डन भी किया था। चीन और ईरान के साथ अमेरिका के तल्ख हुए रिश्तों के लिए डोनाल्ड ट्रम्प को सर्वाधिक जिम्मेदार बताया जाता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार डोनाल्ड ट्रम्प पिछ्ले एक साल से ऐसा कुछ कर रहे थेए जिससे नये राष्ट्रपति के सामने देश और विदेश स्तर पर मुश्किलें खड़ी होंद्य उन्होंने चीन.अमेरिका तथा ईरान.अमेरिका के बीच युद्ध शुरू कराने की भी हर सम्भव कोशिश की। ताकि उन्हें कुछ दिन और सत्ता में बने रहने का अवसर मिल जाये। परन्तु भाग्य ने उनका साथ नही दिया। हाँ, एक काम उनके कार्यकाल में यह अवश्य हुआ कि भारत और अमेरिका के रिश्तों को एक नया और मजबूत आयाम मिला। वह भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के अन्तरंग मित्र बन चुके थे। इस मित्रता का लाभ भारत ने कितना लिया यह शोध का विषय हैद्य लेकिन अमेरिका और व्यक्तिगत रूप से डोनाल्ड ट्रम्प ने अवश्य इसका पूरा लाभ उठायाद्य अमेरिका जहाँ भारत को अरबों डालर के हथियार बेचने में सफल रहा वहीं डोनाल्ड ट्रम्प हाउडी मोदी कार्यक्रम में नरेन्द्र मोदी के द्वारा अपना चुनाव प्रचार करवाने में सफल रहे। भले ही चुनाव के परिणाम ट्रम्प के विरुद्ध रहे हों परन्तु सत्ता में वापसी के लिए उन्होंने उचित.अनुचित कुछ भी करने में संकोच नहीं किया। जिसका अन्तिम और अविस्मर्णीय दृश्य बुधवार को प्रस्तुत हुआ|