अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है की अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक मनमौजी और हरफनमौला राष्ट्रपति थे। वे लीक पर चलने वाले व्यक्ति नहीं थे। और ना ही किसी सिस्टम को अपनाने वाले हीए वे अनुभवी राजनेताओं की तरह न सोच कर, उनकी सोच काफी नई, तरोताजा हुआ करती थी? इसलिए उन्होंने कोई नई परंपरा स्थापित नहीं कीए,परंपराओं को मानने वाले व्यक्ति भी नहीं थे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दिए गए भाषण अक्सर उनके अधिकारियों द्वारा तैयार किए गए भाषणों से भिन्न हुआ करते थेए ऐसे में उनके भाषण से सरकारी अधिकारी भी आश्चर्यचकित रह जाते थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका एक सर्व शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है और वहां का राष्ट्रपति भी काफी वजनदार और अहमियत वाला व्यक्ति हुआ करता है। इसके फलस्वरूप दूसरे अन्य राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष उनसे बड़ी नफासत और वैश्विक प्रोटोकॉल को अपनाते हुए पेश आया करते थे। पर अन्य राष्ट्रपतियों की तुलना में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बढ़ेही अलग अंदाज में बड़ी बेफिक्री और बगैर तकल्लुफ के मिला करते थे। कई राष्ट्रपतियों को डोनाल्ड ट्रंप से मिलते समय यह निर्णय लेना मुश्किल हो जाता था की ट्रंप से बातें एजेंडा के बाहर कैसे और क्या की जाए, जर्मन के चांसलर को सिर्फ यही समझने में 4 साल रह गए की महोदय से क्या और कब कैसे बातचीत की जाए। छोटे राष्ट्रों जैसे नॉर्थ कोरियाए साउथ कोरिया नेता यह सोच कर आश्चर्य में पड़ जाते हैं कि इतने बड़े शक्तिशाली राष्ट्रपति से पर्सन टू पर्सन टेबल में आमने.सामने भी बातें हो सकती हैंद्य मूलत उत्तर कोरिया और अमेरिका एक दूसरे को फूटी आंखों भी नहीं सुहाते थे एऔर हर मौके पर एक दूसरे को नीचा दिखाने से कभी परहेज नहीं करते थेए उनकी बॉडी लैंग्वेज देखकर डोनाल्ड ट्रंप के बारे में यह अंदाजा लगाना अत्यंत अविश्वसनीय थाए कि डोनाल्ड ट्रंप अपने 4 साल के कार्यकाल में किसी से भी अपने स्वभाव के विपरीत युद्ध नहीं करेंगे। इसके विपरीत डोनाल्ड ट्रंप ने कभी बड़े फैसले लेने में किसी तरह की देरी अथवा हिचकिचाहट नहीं दिखाई साथ ही किए गए बड़े फैसलों को वह बड़ी आसानी से रोकने में भी सक्षम हुआ करते थे। किंतु भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की मित्रता दो विपरीत ध्रुवों की गाथा जैसे लगने लगे थे नरेंद्र मोदी जहां सोची समझी और दूरदर्शिता को लेकर विदेश नीति बनाने मैं माहिर हैं। वही डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति कोई खास गाइडलाइंस पर नहीं चली, पर पूरे विश्व में देखा की डोनाल्ड ट्रंप भारत जैसे विकासशील देश को और उनके प्रधानमंत्री को पूरी इज्जत एवं महत्व देते थे। डोनाल्ड ट्रंप किस बात के लिए अंदरूनी तौर पर कटिबंध थे की चीन जैसे खुराफाती शक्तिशाली राष्ट्र को एक सीमा में बांध कर कैसे रखा जाए और उन्होंने चीन के लिए बहुत सारी सीमा रेखा तय कर रखी थी। इसी तरह अरब की दुनिया में इजराइल जैसे देश के महत्व को अरब देशों के मध्य काफी बढ़ावा देकर महत्वपूर्ण बना दिया था। चीन के साथ उन्होंने व्यवसायिक युद्ध तो छेड़ ही दिया था और उनकी एक बाउंड्री वाल तय करके रख दी थीए जिससे चीन काफी बौखलाया हुआ था। उस पर अमेरिका की भारत से गहरी दोस्ती उसके लिए करेला ऊपर से नीम चढ़ा थी। और किसी के परिणाम स्वरूप चीन ने अपनी बौखलाहट में अनेक अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन कर पूरे विश्व को हैरत में डाल दिया था। अब नए राष्ट्रपति के सामने ट्रंप के व्यक्तित्व और छवि को मिटाने और नई चुनौतियों का सामना करने नई अंदरूनी तथा विदेश नीति पुख्ता तौर पर तैयार करनी होगीए तब जाकर अमेरिका अपना एक पैटर्न तैयार कर पाएगा।